आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में
झुंझुनू, राष्ट्रीय साहित्यिक व सामाजिक संगठन आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में महिलाओं के सम्मान में 8 मार्च को ऑनलाइन महिला सशक्तिकरण साहित्य सम्मेलन आयोजित किया जायेगा। आदर्श समाज समिति इंडिया प्रयागराज जनपद की अध्यक्ष रेनू मिश्रा दीपशिखा, हरियाणा से फरीदाबाद मंडल की अध्यक्ष कमल धमीजा, हसनपुर अमरोहा से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष एडवोकेट मुजाहिद चौधरी और लखनऊ से कवयित्री अनुजा मिश्रा की अनुशंसा पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला सशक्तिकरण साहित्य सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। ऑनलाइन आयोजित किये जाने वाले सम्मेलन में देश के विभिन्न भागों से कवि, लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्यकार भाग लेंगे। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए, महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संपूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। साथ ही पुरुष वर्ग भी इस दिन को महिलाओं के सम्मान में समर्पित करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत आज से करीब एक सदी पहले समाजवादी आंदोलनों से हुई थी। महिला सशक्तिकरण साहित्य सम्मेलन की जानकारी देते हुए आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी ने कहा- महिलाओं के सम्मान को लेकर समाज के लोगों को जागरूक करने, महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन्हें प्रेरित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस सदी के आधुनिक कोने पर खड़े होकर हम आज फिर इसकी आधी आबादी के विषय में सोचने के लिए मजबूर हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस न जाने कितने मंचों पर आयोजित होगा, परिसंवाद, गोष्ठियाँ, चिंतन और विमर्श होंगे। नारी-स्वतंत्रता जैसे शब्दों को भाषणों में इतना घीसा जायेगा कि अंतत: ब्लेकबोर्ड पर चलते-चलते खत्म हो जाने वाले चॉक की तरह वे शब्द अपना अर्थ-गौरव ही खो बैठेंगे। महिला सशक्तिकरण की बात मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए तो करना बिलकुल बेमानी होगा क्योंकि आज भी महिलाओं का दुनियां में सबसे ज्यादा शोषण मुस्लिम देशों में ही होता है। जहां पर्दा और बुरके के अंदर महिलाओं को बांध कर रखा जाता है। अगर किसी गैर मर्द से आंखें लड़ गईं या किसी विवाहिता की आवाज उठ गई तो यह देश उस स्त्री को सरेआम मौत दे देते हैं। तुगलकी फरमानों का सितम हमेशा महिलाओं पर ही टूटता है। इन देशों में न जाने कब महिला सशक्तिकरण की बयार चलेगी? जो लोग महिलाओं की जागरुकता की बात करते हैं, वह कभी इन देशों में जाते ही नहीं हैं और न ही इनकी बात करते हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि इन देशों में महिला सशक्तिकरण एक सपना है, जिसे पूरा करने के लिए एक क्रांति की जरुरत है। अगर हम भारत के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण की बात करें तो हालत कमोबेश लचर ही है। भारत में महिला सशक्तिकरण की राह में वैसे तो कई उल्लेखनीय कदम उठाए गए हैं। यहाँ कई ऐसी महिलाएं हैं जो सशक्त नारी की रुपरेखा निर्धारित करती हैं। भारत में महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए और उन्हें सशक्त करने के लिए बहुत पहले से कार्य किये जा रहे हैं। इस कार्य की शुरुआत राजा राममोहन राय, केशव चन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानन्द, एनी बेसेंट, महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने की थी, जिनके प्रयासों से नारी में संघर्ष क्षमता का आरम्भ होना शुरू हो गया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता तभी सही मायने में हो सकेगी, जब हम अपने समाज में कन्या भ्रूण हत्या, दहेज़, बलात्कार, यौन हिंसा आदि से महिलाओं को बचा सकेंगे।अन्यथा महिला दिवस भी महज एक रस्म अदायगी बनकर ही रह जायेगा। महिला सशक्तिकरण के बिना आदर्श समाज की संरचना संभव नहीं है। आदर्श समाज निर्माण को चुनौती के तौर पर लिए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए नारी जीवन परिस्थिति प्रत्येक आयाम को शक्ति संपन्न करना होगा।