लम्पी स्कीन डिजीज के बढते प्रकोप को देखते हुए
चूरू, जिले के मवेशियों में लम्पी स्कीन डिजीज के बढते प्रकोप को देखते हुए पशुपालन विभाग की ओर से एडवाजयरी जारी की गई है। पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि सभी पशुपालक व गौशाला प्रबन्धन समितियों से अनुरोध किया गया है कि उनके यहां कोई भी मवेशी लम्पी स्कीन डिजीज से ग्रसित पाया जाता है तो उसे तुरन्त प्रभाव से स्वस्थ पशुओं से अलग कर साफ-सुथरे बाड़े में पृथक से रखा जाए एवं उन्हें चारा-पानी भी स्वस्थ पशुओं से अलग दिया जाए। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए तथा अपने नजदीकी पशु चिकित्सा संस्थान से सम्पर्क कर आवश्यक उपचार की कार्यवाही कराएं। पशुपालक अपने बाड़ों में तथा गौशाला प्रबन्धन समितियां गौशालाओं में कीटनाशक घोल का छिड़काव कर साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। साथ ही बाड़ों में नीम व गूगल आदि से धुंआ कर मक्खी, मच्छर व अन्य कीट पतंगों को बाड़ों से दूर रखने का प्रयास करें। विभाग द्वारा जारी एडवाईजरी की पूर्ण पालना करें एवं किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर निकटतम पशु चिकित्सा संस्था अथवा कार्यालय संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग, चूरू के दूरभाष नम्बर 01562-294237 पर सम्पर्क करें। डॉ शर्मा ने बताया कि लम्पी त्वचा रोग गाय-भैंस में एक घातक वायरसजन्य रोग है, जो वैक्टर यानि मच्छर मक्खी व चींचड़ों के काटने से फैलता है। इन वैक्टर के द्वारा पशुओं को काटने पर वायरस एक से दूसरे पशु में फैलता है। इसमें 2-3 दिवस तक हल्का बुखार रहता है। बुखार के पश्चात् 2-5 सेन्टीमीटर आयामीटर के सख्त व गोलाकार उभरे हुए नॉड्यूल (गांठ) पशु के शरीर पर हो जाते हैं। मुंह व श्वास नली आदि अंगों में इसके लीजन पाये जाते हैं। रोग के शुरू होते ही कंधे एवं गर्दन के नीचे के लीम्प नोड में सूजन आती है। पैरों पर सूजन आना एवं दुग्ध उत्पादन में अचानक कमी एवं कभी-कभी ग्याभिन पशुओं में गर्भपात भी हो सकता है। अतः पशुपालक पूर्व में भी अपने पशुओं का बारीकी से निरीक्षण कर नजदीकी पशु चिकित्सक से सलाह मशवरा कर रोग की पहचान कर सकते हैं। बचाव के लिए रोगग्रस्त पशुओं को तुरन्त प्रभाव से अन्य पशुओं से अलग रखा जाना आवश्यक है। आइसोलेट किए गए पशुओं का स्थान साफ-सुथरा एवं एन्टीसेप्टिक छिड़का हुआ होना चाहिए। रोगग्रस्त पशु एवं स्वस्थ पशुओं को अलग-अलग आहार एवं पानी की व्यवस्था की जाये एवं अलग-अलग बाड़ों में रखा जाए। पशु बाड़ों को वैक्टर यानि मक्खी, मच्छर, चींचड़ी आदि से मुक्त रखा जाये, इसके लिए वैक्टर को दूर भगाने वाले साधनों का प्रयोग करें तथा बाड़ों में धुंआ जलाकर जलाकर मक्खी व मच्छर को सुबह शाम दूर भगाने के समुचित उपाय किये जाए। मवेशियों को पशु मेला, चारागाहों से दूर रखा जाये एवं खरीद-फरोख्त से बचना चाहिए। पशु मेले, पशु प्रदर्शनी एवं खरीद बिक्री हेतु पशु हाट आदि का आयोजन नहीं किया जाए। बाड़ों की साफ-सफाई व एन्टीसेप्टिक दवा का छिडकाव किया जाये एवं मृत पशुओं के निस्तारण के लिए पीपीई किट एवं आवश्यक सावधानियां रखकर ही कार्य किया जाये। सम्पूर्ण बाड़े की (स्वस्थ व अस्वस्थ पशु अलग-अलग) समुचित सफाई व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए बाहर के पशुओं एवं वाहनों का प्रवेश निषेध किया जाए। पशु चिकित्सा अधिकारी/पशु चिकित्सा कर्मी की देखरेख में ही Ether 20%, Choloroform, Formalin 1, Phenol 2% 15 minutes, Sodium hypochlorite 2-3% Iodine Compounds 1:33 Dilution, Quaternary Ammonium Compundir 0-5% से सावधानीपूर्वक कीटाणुशोधन (Disinfection) छिड़काव किया जाए। रोग प्रकोप की अवस्था में तुरन्त अपने नजदीकी पशु चिकित्सा संस्था से सम्पर्क कर सूचित करें एवं अपने पशु का उपचार करवायें। पशु को खाने में तरल सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार प्रदान करें। पशु की सही प्रकार देखभाल करने एवं उपचार से पशु 02-03 सप्ताह में स्वस्थ हो जाता है।