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पशुपालन – नवजात बछडा या बछडी का आहार प्रबन्धन

          डॉ सूर्यप्रकाश सीरवी

नवजात बछडे या बछडी को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछडा या बछडी के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछडा या बछडी के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछडा या बछडी को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछडा या बछडी को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछडा या बछडी वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछडा या बछडी को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछडा या बछडी को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।बछडा या बछडी को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

खिलाने की व्यवस्थाः-

बछडे को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है –

बछडे को पूरी तरह दूध पर पालना।

  1. मक्खन निकाला हुआ दूध देना।
  2. दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना।
  3. दूध के विकल्प देना।
  4. काफ स्टार्टर देना।
  5. पोषक गाय का दूध पिलाना।
  6. पूरी तरह दूध पर पालना।

50 किलो औसत शारीरिक वजन के साथ तीन महीने की उम्र तक के नवजात बछडे की पोषण आवश्यकता इस प्रकार है-

1.सूखा पदार्थ (डीएम) 1.43 किलो

2.पचने योग्य कुल पोषक पदार्थ (टीडीएन) 1.60 किलो

3.कच्चे प्रोटीन 3.15 किलो

यह ध्यान देने योग्य है कि टीडीएन की आवश्यकता डीएम से अधिक होती है क्योंकि भोजन में वसा का उच्च अनुपात होना चाहिए। 15 दिनों बाद बछडा घास टूंगना शुरू कर देता है जिसकी मात्रा लगभग आधा किलो प्रतिदिन होती है, जो 3 महीने बाद बन्द कर 5 किलो हो जाती है। इस दौरान हरे चारे के स्थान पर 1-2 किलो अच्छे प्रकार का सूखा चारा (पुआल) बछडे का आहार हो सकता है जो 15 दिन की उम्र में आधा किलो से लेकर 3 महीने की उम्र में डेड किलो तक दिया जा सकता है।  3 सप्ताह के बाद यदि संपूर्ण दूध की उपलब्धता कम हो तो बछडे को मक्खन निकाला हुआ दूध, छाछ अथवा अन्य दुग्धीय तरल पदार्थ दिया जा सकता है।

बछडे को दिया जाने वाला मिश्रित आहार-

बछडे का मिश्रित आहार एक सांद्र पूरक आहार है जो ऐसे बछडे को दिया जाता है जिसे दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों पर पाला जा रहा हो। बछडे का मिश्रित आहार मुख्य रूप से मक्के और जई जैसे अनाजों से बना होता है। जौ, गेहूं और ज्वार जैसे अनाजों का इस्तेमाल भी इस मिश्रण में किया जा सकता है। बछडे के मिश्रित आहार में 10 प्रतिशत तक गुड का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक आदर्श मिश्रित आहार में 80 प्रतिशत टीडीएन और 22 प्रतिशत सीपी होता है।

नवजात बछडे के लिए रेशेदार पदार्थ

अच्छे किस्म के तनायुक्त पत्तेदार सूखे दलहनी पौधे छोटे बछडे के लिए रेशे का अच्छा स्रोत हैं। दलहन, घास और पुआल का मिश्रण भी उपयुक्त होता है। धूप लगाई हुई घास जिसकी हरियाली बरकरार हो, विटामिन-ए, डी तथा बी-कॉम्प्लैक्स विटामिनों का अच्छा स्रोत होती है। 6 महीने की उम्र में बछडे 1.5 से 2.5 किग्रा तक सूखी घास खा सकता है। उम्र बढने के साथ-साथ यह मात्रा बढती जाती है। 6-8 सप्ताह के बाद से थोडी मात्रा में साइलेज अतिरिक्त रूप से दिया जा सकता है। अधिक छोटी उम्र से साइलेज खिलाना बछडे में दस्त का कारण बन सकता है। बछडे के 4 से 6 महीने की उम्र के हो जाने से पहले तक साइलेज को रेशे के स्रोत के रूप में उसके लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता। मक्के और ज्वार के साइलेज में प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त नहीं होते हैं तथा उनमें विटामिन डी की मात्रा भी कम होती हैं।

पोषक गाय के दूध पर बछडे को पालना

2 से 4 अनाथ बछडो को दूध पिलाने के लिए उनकी उम्र के पहले सप्ताह से ही कम वसा-युक्त दूध देने वाली और दुहने में मुश्किल करने वाली गाय को सफलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है।सूखी घास के साथ बछडे को सूखा आहार जितनी कम उम्र में देना शुरू किया जाए उतना अच्छा। इन बछडे का 2 से 3 महीने की उम्र में दूध छुडवाया जा सकता है।

बछडे को दलिए पर पालना

बछडे के आरंभिक आहार (काफ स्टार्टर) का तरल रूप है दलिया। यह दूध का विकल्प नहीं है। 4 सप्ताह की उम्र से बछडे के लिए दूध की मात्रा धीरे-धीरे कम कर भोजन के रूप में दलिया को उसकी जगह पर शामिल किया जा सकता है। 20 दिनों के बाद बछडे को दूध देना पूरी तरह बंद किया जा सकता है।

काफ स्टार्टर पर बछडे को पालना

इसमें बछडे को पूर्ण दुग्ध के साथ स्टार्टर दिया जाता है। उन्हें सूखा काफ स्टार्टर और अच्छी सूखी घास या चारा खाने की आदत लगाई जाती है। 7 से 10 सप्ताह की उम्र में बछडे का दूध पूरी तरह छुडवा दिया जाता है।

दूध के विकल्पों पर बछडे को पालना

यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नवजात बछडे के लिए पोषकीय महत्व की दृष्टि से दूध का कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, दूध के विकल्प का सहारा उस स्थिति में लिया जा सकता है जब दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों की उपलब्धता बिल्कुल पर्याप्त न हो।

दूध के विकल्प ठीक उसी मात्रा में दिए जा सकते हैं जिस मात्रा में पूर्ण दुग्ध दिया जाता है, अर्थात् पुनर्गठन के बाद बछडे के शारीरिक वजन का 10{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} पुनर्गठित दूध के विकल्प में कुल ठोस की मात्रा तरल पदार्थ के 10 से 12{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} तक होती है।

दूध छुडवाना

बछडे का दूध छुडवाना सघन डेयरी फार्मिंग व्यवस्था के लिए अपनाया गया एक प्रबन्धन कार्य है। बछडे का दूध छुडवाना प्रबन्धन में एकरूपता लाने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बछडे को उसकी आवश्यकता अनुसार दूध की मात्रा उपलब्ध हो और दूध की बर्बादी अथवा दूध का आवश्यकता से अधिक पान न हो। अपनाई गई प्रबन्धन व्यवस्था के आधार पर जन्म के समय, 3 सप्ताह बाद, 8 से 12 सप्ताह के दौरान अथवा 24 सप्ताह में दूध छुडवाया जा सकता है। जिन बछडो को सांड के रूप में तैयार करना है उन्हें 6 महीने की उम्र तक दूध पीने के लिए मां के साथ छोडा जा सकता है। संगठित रेवड में, जहां बहुत संख्या में बछडो का पालन किया जाता है जन्म के बाद दूध छुडवाना लाभदायक होता है।

जन्म के बाद दूध छुडवाने से छोटी उम्र में दूध के विकल्प और आहार अपनाने में सहूलियत होती है और इसका यह फायदा है कि गाय का दूध अधिक मात्रा में मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है।

दूध छुडवाने के बाद

दूध छुडवाने के बाद 3 महीने तक काफ स्टार्टर की मात्रा धीरे-धीरे बढाई जानी चाहिए। अच्छे किस्म की सूखी घास बछडे को सारा दिन खाने को देना चाहिए। बछडे के वजन के 3{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} तक उच्च नमी वाले आहार जैसे साइलेज, हरा चारा और चराई के रूप में घास खिलाई जानी चाहिए। बछडे इनको अधिक मात्रा में न खा ले इसका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसके कारण कुल पोषण की प्राप्ति सीमित हो सकती है।

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