मुनि श्री विश्रान्त सागर महाराज प्रात: कालीन धर्म सभा में सकल दिगंबर जैन समाज को संबोधन करते हुए कहा कि हमारा जीवन एक ऐसी खुली किताब होना चाहिए जिसका प्रत्येक पृष्ठ खुला हुआ हो जिसकी प्रत्येक पंक्ति स्पष्ट हो और पढ़ी जा सके। पापाचार से अर्जित लक्ष्मी मित्र व कुटुंबियो को दुख प्रदात्री है वह मृतक के विमान की शोभा के सम्मान बंधु जनों के दुख का कारण है। आगे मुनि श्री ने कहा की बच्चों का हृदय सरल होता है इसी प्रकार बुढ़ापे में हृदय सरल हो जाए तो बुढ़ापा सुधर जाता है समस्या तो बुढ़ापे में भी आयेगी कभी शिकायत नहीं करना क्योंकि भगवान ऐसा डायरेक्टर है जो सबसे कठिन रोल हमेशा बेस्ट एक्टर को ही देता है। लोगों के लिए आप तब तक अच्छे हो जब तक आप उनकी उम्मीदों को पूरा करो और सब लोग अच्छे तब तक है जब तक आप उनसे कोई उम्मीद ना करो इसलिए जीवन में कभी किसी से उम्मीद मत करना वरना उम्मीद पूरी नहीं होने पर मन दुखता है।