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बोर्ड परीक्षा के मध्यनजर विद्यार्थियों में बढ़ते तनाव, चिंता और इसके प्रबंधन को लेकर कार्यशाला आयोजित

शिक्षा विभाग और पीरामल फाउंडेशन के सयुक्त तत्वाधान से

झुंझुनू, शिक्षा विभाग और पीरामल फाउंडेशन के सयुक्त तत्वाधान से “बोर्ड परीक्षा में मध्यनजर विद्यार्थियों में बढ़ते तनाव, चिंता और इसके प्रबंधन में सामाजिक भावनात्मक और नैतिक कौशल की उपयोगिता विषय” पर 04 ब्लॉक के 110 पंचायत शिक्षा अधिकारियों के साथ “प्रोफेशनल लेंर्निंग कम्युनिटी” के माध्यम से ऑनलाइन चर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस कार्यक्रम मे मुख्यत: मानव शरीर मे तनाव और चिंता के बढ़ने और कम होने वाले हार्मोन और उन हार्मोन को नियंत्रित करने वाले तत्व, भौतिक, शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के बारे मे विस्तार से चर्चा की गई । कॉर्टिसॉल हार्मोन जो की तनावपूर्ण माहौल मे बढ़ता है और उचित देखभाल वाले माहौल मे सामान्य/कम रहता है बच्चों मे इसके प्रभाव से न केवल कामकाज प्रभावित होता है बल्कि ध्यान केंद्रित करने की अवधि भी घटती है । सेरोटिनीन हार्मोन जो की शारीरिक गतिविधि से कम या ज्यादा होता है जो मुख्यत मूड को बढ़ाता है डिप्रेशन को कम करता है और बच्चों मे सामाजिक व्यवहार और मानसिकता को प्रभावित करता है । इसी तरीके से ऑक्सीटोसिन, डोपामाइन, एन्डरोपिन इत्यादि हार्मोन के कम या ज्यादा होने और उनके प्रभाव के बारे मे विस्तृत चर्चा करी गई । इसी कार्यशाला के माध्यम से शरीर मे होने वाली सवेदना को महसूस करना, भावनाओं को पहचानना और भावनाओं को सरेखांकित करने की विभिन्न गतिविधियों का अभ्यास किया गया । मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी पितराम सिंह काला ने बताया की स्कूल और परिवार महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई है जो सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य और उनके कल्याण के साथ जुड़ी हुई है । स्कूल की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वे छात्रों के शारीरिक सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करें और इसे बेहतर बनाएं । समय रहते हुए विभिन्न तरह के मानसिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों की पहचान करना और उसके रोकथाम अनिवार्य रूप से पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । समग्र शिक्षा के अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक विनोद जानू ने बताया की बोर्ड परीक्षाओं के मद्देनजर बच्चों शिक्षकों और अभिभावकों में उपजे तनाव और अवसाद के कारणों उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इनके प्रबंधन के लिए विभिन्न भावनात्मक कौशल के बारे में की गई चर्चा से संस्था प्रधान न केवल व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित होंगे,बल्कि इस ऑनलाइन प्रशिक्षण के उपरांत वह अपने विद्यालय में भी इस तरह के उपायों को लागू करने में विशेष मदद कर रहे होंगे । समग्र शिक्षा के अतिरिक्त परियोजना समन्वयक राजेन्द्र कपूरिया ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2016 के आंकड़ों को दर्शाते हुए बताया कि हमारे देश में लगभग 150 मिलियन नागरिक हैं, जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य कल्याण की देखभाल और सहायता की आवश्यकता होती है । इसके अतिरिक्त यह भी पता चला है कि इनमें से 70 से 90% लोग सही समय पर गुणवत्ता युक्त सहायता और प्राप्त नहीं कर सके ।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किशोर आयु समूह में आत्मशक्ति वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक पाई गई है। अधिकांशत शारीरिक बीमारियों के लिए भावनात्मक तनाव चिंतन और अवसाद जैसी चिंताएं प्रमुख कारण है । समग्र शिक्षा के डा नवीन ढाका ने सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया श्लोक के माध्यम से शिक्षक, संस्था प्रधानों के विद्यार्थीयों और समाज के प्रति पारस्परिक दायित्व के निर्वहन को याद दिलाया । इसी तरीके से पीरामल फाउंडेशन के गजेन्द्र सिंह ने कोलम्बिया विश्वविद्यालय के 2015 मे हुए शोध से सामाजिक भावनात्मक और नैतिक शिक्षण की उपयोगिता को दर्शाया और बताया की सामाजिक भावनात्मक और नैतिक शिक्षण, आकदमिक कौशल को 11 प्रतिशत तक बढ़ाने के साथ सकारात्मक सामाजिक व्यवहार मे मदद करता है । इसी तरह ये कौशल भावनात्मक कष्ट को 10 प्रतिशत तक कम भी करता है ।कार्यक्रम मे पीरमल फाउंडेशन के राजेन्द्र राजपूत, मनीष कुमार, निशा रानी, साद आलम, योगिता और कीर्ति लुहार ने सत्र आयोजन किया ।

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