सूरजगढ़, आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वावधान में गाँधी फार्म हाउस सूरजगढ़ में देश की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली स्वतंत्रता सेनानी और महान सामाजिक कार्यकर्ता, हिंदुस्तान सेवादल महिला विंग की प्रथम अध्यक्ष उमाबाई कुंदापुर की जयंती और पत्रकारिता के पुरोधा, कुशल राजनीतिज्ञ, मानवता के मसीहा, क्रांतिकारी समाचार पत्र प्रताप के संपादक, निडर व निष्पक्ष पत्रकार, समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस मनाया। दोनों स्वतंत्रता सेनानियों के छायाचित्रों पर पुष्प अर्पित करते हुए स्वाधीनता आंदोलन और राष्ट्र के निर्माण में उनके योगदान को याद किया। उमाबाई कुंदापुर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने कहा- नारीवादी विचारधारा को गति देने और महिला उत्थान के क्षेत्र में जिन लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसमें उमाबाई कुंदापुर का नाम गर्व से लिया जा सकता है। यह इतिहास की परतों में दबी एक ऐसी गुमनाम शख्सियत का नाम है, जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई। कर्नाटक के मंगलौर में पैदा हुईं उमाबाई कुंदापुर ने न केवल महिलाओं को शिक्षित करने का काम किया बल्कि उन्हें स्वाधीनता आंदोलन के लिए भी प्रेरित किया। वह निराश्रित सेनानियों की भी मदद करती थीं जिससे आजादी के संघर्ष को गति मिलती रहे। आजादी के बाद भी उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। सरदार भगत सिंह की फाँसी के दो दिन बाद कानपुर में हिंदू- मुस्लिम दंगों में शहीद हुए गणेश शंकर विद्यार्थी के बारे में धर्मपाल गाँधी ने बताया कि गणेश शंकर विद्यार्थी क्रांतिकारी समाचार पत्र प्रताप के संपादक और एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार थे। इसके साथ ही वे एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में उनका नाम अजर-अमर है। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हुए हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेश शंकर विद्यार्थी भी ऐसे ही पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेज़ी शासन की नींव हिला दी थी। अपने छोटे से जीवन काल में उन्होंने उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था और अन्याय के खिलाफ निडर होकर आवाज़ उठाई। गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गाँधी के अहिंसक आंदोलन के समर्थक थे और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आज़ादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे। वे पत्रकारिता के माध्यम से किसानों की आवाज बुलंद करने के साथ ही क्रांतिकारी भगत सिंह और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों के विचार अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करते थे। वे क्रांतिकारियों और उनके परिवारों की हर संभव मदद करते थे। ऐसे महान देशभक्त की मृत्यु 25 मार्च 1931 को कानपुर में सांप्रदायिक दंगों में लोगों को बचाने के दौरान हुई। महात्मा गाँधी सहित देश के बड़े नेताओं ने उनकी मौत पर गहरा शोक जताया। धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़े ऐसे वीर बलिदानी को हम नमन करते हैं। इस मौके पर समाजसेवी इंद्र सिंह शिल्ला, धर्मपाल गाँधी, चाँदकौर, उम्मेद सिंह शिल्ला, राजेंद्र कुमार गाँधी, सतीश कुमार, सोनू कुमारी, सुनील गाँधी, पिंकी, दिनेश, अंजू गाँधी, इशांत, हर्ष गाँधी आदि अन्य लोग मौजूद रहे।