सूरजगढ़, राष्ट्रीय साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थान आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में विवेकानंद स्कूल काजड़ा में शिक्षाविद् मनजीत सिंह तंवर के नेतृत्व में विश्व विख्यात महान सामाजिक कार्यकर्ता, कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष, लेखक प्रभावी वक्ता, भारत की भूमि से अद्भुत प्रेम करने वाली भारत प्रेमी महिला, काशी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना करने वाली प्रसिद्ध शिक्षाविद्, आयरन लेडी के नाम से मशहूर भारत की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी डॉ. एनी बेसेंट की पुण्यतिथि मनाई। इस मौके पर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में देश की आजादी के लिए अल्पायु में प्राणों की आहुति देने वाली वीरबाला के नाम से विख्यात शहीद वीरांगना कनकलता बरुआ व भारत के प्रसिद्ध समाज सुधारक नारायण गुरु की पुण्यतिथि भी मनाई।नारायण गुरु केरल भारत के एक आध्यात्मिक नेता, संत और समाज सुधारक थे। वह आध्यात्मिकता, सामाजिक समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे में विश्वास करते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर दिया। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नारायण गुरु के बारे में लिखा है- “मैंने विश्व के विभिन्न स्थानों की यात्रा की है। इन यात्रा के दौरान मुझे अनेक संतों और विद्वानों के दर्शन करने का अवसर मिला है। लेकिन मैं यह स्पष्ट रूप से स्वीकार करता हूँ कि मुझे अभी तक कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो केरल के स्वामी श्री नारायण गुरु से आध्यात्मिक रूप से अधिक महान हो अथवा आध्यात्मिक उपलब्धियों में उन के समकक्ष भी हो।” गुरुदेव टैगोर और स्वामी श्री नारायण गुरु की भेंट 1922 में हुई थी। भारत की आजादी में एनी बेसेन्ट के योगदान को याद करते हुए मनजीत सिंह तंवर ने कहा- एनी बेसेंट का भारत की भूमि और भारत के लोगों से गहरा लगाव था। आयरन लेडी एनी बेसेंट की गिनती उन महिलाओं में की जाती है, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने भारत में रहकर बाल विवाह, विधवा विवाह और जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में काम किया। एनी बेसेंट एक समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, सुप्रसिद्ध लेखिका, थियोसोफिस्ट व राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और एक प्रभावी प्रवक्ता थी। एनी बेसेंट ने शोषित और गरीब लोगों की दशा सुधारने के लिए जीवनपर्यंत काम किया।
उन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और काशी में महिलाओं की शिक्षा के लिए अनेक स्कूल कॉलेज खड़े किये। देशवासियों ने उन्हें माँ बसंत कहकर सम्मानित किया तो महात्मा गाँधी ने उन्हें बसंत देवी की उपाधि से विभूषित किया। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने शहीद वीरांगना कनकलता बरुआ के बारे में जानकारी देते हुए कहा- वीरबाला के नाम से विख्यात कनकलता बरुआ भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हुई भारत माता की ऐसी पुत्री थी, जो भारतीय वीरांगनाओं की लंबी कतार में जा मिली। मात्र 18 वर्षीय कनकलता बरुआ अन्य बलिदानी वीरांगनाओं से उम्र में छोटी भले ही रही हो लेकिन त्याग व बलिदान में उनका कद किसी से कम नहीं था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 20 सितंबर 1942 को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया था। तिरंगा फहराने आई हुई भीड़ पर गोलियां दागी गई और यहीं पर कनकलता बरुआ ने शहादत पाई। कनकलता बरुआ का बलिदान और देश के लिए उनका संघर्ष इस रूप में याद किया जाना चाहिए कि देश के लिए देशभक्ति और अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए ना तो उम्र की कोई बाधा होती है और ना ही उसे पर परिवेश की बंदिशें से होती हैं, जिसमें आप पले-बढ़े हैं। कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने तीनों महान विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन किया। इस मौके पर प्रताप सिंह तंवर, धर्मपाल गाँधी, मनजीत सिंह तंवर, जगदीश सैन, राय सिंह शेखावत, सरजीत कुमावत, राकेश पूनियां, अशोक कुमावत, अभिलाषा मान, सुनीता प्रजापति, बबीता शिल्ला, धर्मेंद्र सिंह आदि अन्य लोग मौजूद रहे।