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चुड़ैला स्थित श्री जेजेटी विश्वविद्यालय तथा राजस्थान संस्कृत अकादमी के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन

 सीकर के सांसद स्वामी सुमेधानन्द ने कहा कि गीता में दुनिया की हर समस्या का समाधान है, हर कल्पना को साकार करने का आधार है, हम जो बात सोच सकते हैं, उसे पूरा करने का मार्ग दर्शन है। भारत में युवाओं की इतनी संख्या है जितनी दुनिया के कई देशों की आबादी भी नहीं है। हमारे युवाओं के हाथों में गीता और कर्म में संस्कारों के साथ आधुनिकता का समावेश कर दिया जाए तो सिर्फ पांच वर्ष में भारत फिर से दुनिया का सिरमौर बन सकता है। वे रविवार को चुड़ैला स्थित श्री जेजेटी विश्वविद्यालय तथा राजस्थान संस्कृत अकादमी के तत्वावधान में गीता रू ज्ञान-विज्ञान का स्रोत विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करने के बाद पहले सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गीता को पुस्तक के रूप में ही न मान कर उसमें दी गई बातों को आत्मसात करने की जरूरत है। सतत् स्वाध्याय से मनुष्य देव बुद्धि की प्राप्ति कर सकता है। उन्होंने संस्कृत का महत्व रेखांकित करते हुए कहा कि दुनिया की हर भाषा में कहीं न कहीं संस्कृत समाहित है। उनमें से संस्कृत के शब्द निकाल दिए जाएं तो वे भाषाएं लूली-लंगड़ी हो जाएंगी। संस्कृत केवल भाषा ही नहीं है, पूरा जीवन दर्शन है। इसमें हर सवाल का जवाब है, जरूरत सिर्फ उसे पढऩे और आत्म सात करने की है। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी के सदस्य एवं राजस्थान डूंगर विश्वविदयालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विक्रम जीत सिंह ने संस्कृत में उद्बोधन देते हुए कहा कि श्रीमदभगवद् गीता अध्यात्म का ग्रंथ है, दर्शन का ग्रंथ है। हम विज्ञान के तमाम सूत्रों को गीता में तलाश सकते हैं। संस्कृत शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. भास्कर श्रोत्रिय, विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट बालकिशन टीबड़ेवाला, एक्स प्रेसिडेंट डॉ. अविनाश मेहता, कुल सचिव सीएल शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। महाकवि डॉ. शंभूदयाल पांडेय ने वंदना प्रस्तुत की। संस्कृत के विद्यार्थियों ने स्वस्ति वाचन किया। राजस्थान संस्कृत अकादमी की सदस्य तथा संगोष्ठी की समन्वयक डॉ. चंद्रलेखा शर्मा ने आयोजन के बारे में जानकारी दी। दूसरे सत्र में डा. गुरुप्रसाद, भारत संस्कृत परिषद के प्रदेश संगठन मंत्री रामकृष्ण शास्त्री, अलीगढ़ के धर्म समाज महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. द्वारिकानाथ त्रिपाठी के सान्निध्य में शोध पत्रों को वाचन किया गया।

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