प्रख्यात विचारक एव स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा है कि ‘मी टू’ के रूप में देश में एक सुंदर अभियान की शुरुआत हुई है, जिसकी तार्किक परिणीति इस रूप में हो कि गलत करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के खिलाफ आवाज उठे। यादव सोमवार को शहर के सनसिटी होटल के द हाइट हाॅल में प्रयास संस्थान की ओर से आयोजित पंडिता रमाबाई व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि औरतों पर हिंसा के आधे से ज्यादा मामले उनके साथ अपने घर में होते हैं और जिस समाज में औरत अपने घर में सुरक्षित नहीं है, वह सड़ा हुआ समाज है। हमें इस समाज को बदलने के लिए आगे आना होगा। उन्होंने पंडिता रमाबाई के योगदान पर चर्चा करते हुए कहा कि यदि किसी महापुरुष को याद करना है तो कुछ़ कड़वा होने का साहस करना होगा। आज मीडिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में हुए यौन उत्पीड़न पर चर्चा हो रही है लेकिन राजनीति से लेकर हर गांव-गली में हो रहे गलत पर भी आवाज उठानी होगी। किसी भी गलत घटना पर हमें औरत को दोष देने की प्रवृत्ति बंद करनी होगी और गलत को गलत कहने का साहस जुटाना होगा। उन्हांेंने कहा कि कानून के अलावा पीड़ा भी सत्य की एक कसौटी होता है और हम पीड़िता की आंख में झांककर देखें तो साफ दिखता है कि ये कहानियां मनघड़ंत नहीं है। यह समाज में नई मर्यादा स्थापित करने का आंदोलन है, केवल किसी की टोपी उछालने का कार्यक्रम नहीं है। पुरुष को सीखना होगा कि एक औरत से स्वस्थ संबंध कैसे बनाए रख सकते हैं। इंसान होने के नाते औरत का जो अस्तित्व है, उसे स्वीकार करना होगा। औरतों की शिक्षा से ज्यादा पुरुषों की संस्कार शिक्षा की जरूरत है। अपनी बुद्धि, हिम्मत और संस्कार से हम यह तय कर सकते हैं कि औरत इस देश को दिशा दे और यह देश दुनिया को दिशा दे। व्याख्यानकार प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि आज पूरी दुनिया में एक माहौल बन रहा है कि हमें अपने घेरे में दूसरों को नहीं घुसने देना है, एक दीवार चारों तरफ बनती जा रही है। अगर हम दायरे में संकुचित हांेंगे तो हमने एक दूसरे के बीच एक बड़ी खाई खोद दी है। उन्होंने कहा कि अगर इक्कीसवी सदी में भारत को आगे ले जाने वाला स्वर होगा तो वह औरत का स्वर होगा। औरतों के खिलाफ पूरी दुनिया के मर्दो में एक पूर्वाग्रह है और हमने औरतों पर बहुत पाबंदियां लगा रखी हैं, जो औरतें इन पाबंदियों को तोड़कर आगे निकल रही हैं, वे बड़ी ताकतवर महिलाएं हैं। पंडिता रमाबाई को गांधी की पूर्वज बताते हुए उन्होंने कहा कि रमाबाई ने गांधी से भी पहले विदेषों में जाकर काम किया और गांधी के आश्रम से पहले पूना मंे आश्रम स्थाापित कर दिया था। औरत का पढ़ना और लिखना उस जमाने मे बहुत बड़ी घटना थी। रमाबाई का यह कहना कि वह अपने लिए खुद सोच सकती है और यदि उसके बदले कोई पुरुष सोचे, यह उसे स्वीकार नहीं है, महत्वपूर्ण बयान है। पंडिता रमाबाई ने औरत को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश की। विषक प्रवर्तक लेखक-संपादक पूर्वा भारद्वाज ने पावर पाइंट प्रजेंटेशन के जरिए रमाबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि वे न कभी डरी और न ही कभी पश्चाताप किया। वर्तमान माहौल में रमाबाई की जिंदगी बहुत सीखाती है। इस दौरान व्याख्यान के लिए प्रो. अपूर्वानंद को प्रयास संस्थान की ओर से एक लाख रुपए का मानदेय चैक प्रदान किया गया। संस्थान अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने आयोजकीय पृष्ठभूमि की जानकारी देते हुए बताया कि प्रख्यात गणितज्ञ डाॅ घासीराम वर्मा की प्रेरणा एवं आर्थिक सहयोग से प्रतिवर्ष यह आयोजन किया जाएगा। भंवर सिंह सामौर ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किए। संस्थान के सचिव कमल शर्मा ने आभार जताया। संचालन डाॅ कृष्णा जाखड़ ने किया।