वर्तमान की प्रतिकूल परिस्थितियों में तनाव से उबरने के लिए प्रसिद्ध मनोचिकित्सक लालचंद ढाका की राय
झुंझुनू, कोरोना संक्रमण हमारी जिंदगी में बिन बुलाए मेहमान की तरह आ धमका जो सोचा नहीं था उन परेशानियों का सामना पिछले कुछ महीनों में ही हर आदमी को करना पड़ा। जैसे ही कोरोना ने किया वार उसी के साथ लोगों पर पड़ी लॉकडाउन की मार लिहाजा लोग इस लॉक डाउन की विषम परिस्थितियों से मानसिक रूप से उबरने में आज तक लगे हुए हैं। जिसमें कई उदाहरण तो ऐसे हैं जो इस कोरोना के तनाव की भंवर में अपनी जिंदगी ही खो बैठे हैं। बात पढ़ने वाले बच्चों की करें तो अचानक से लॉकडाउन के चलते उनका पढ़ाई से संबंध टूट गया। परीक्षाएं अधूरी रह गई और यकायक ही लॉक डाउन के बाद परीक्षाएं सामने आ गई जिससे बच्चे अपने आप को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाए। पिछले दिनों ढाणी स्वामीवाला निवासी नौरंगपुरा के सरकारी विद्यालय के 12वीं की छात्रा ने परीक्षा के 3 घंटे पहले कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली। परीक्षा और कोरोना के इस तनाव को कैसे समझा जाए। क्या कोरोना के चलते हमारी जीवन की कंटीन्यूटी टूट गई है जिसके चलते तनाव हमारे मनोवृति में घर कर गया है या फिर आज के बच्चों में सहनशीलता घट रही है। वही कोरोना के चलते लोगों के रोजगार धंधे छूट गए आजीविका चलाने के लिए भी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में युवाओं में रोजगार को लेकर भी तनाव है ऐसी स्थिति को कैसे संभाला जाए। इसके लिए आज हमने झुंझुनू के प्रसिद्ध मनोरोग विशेषज्ञ लालचंद ढाका से मुलाकात की। जिन्होंने वर्तमान परिस्थितियों के कारण तथा इनसे बचने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं उनका मार्गदर्शन दिया है। वही हम आपको बताना चाहेंगे कि अभिभावक ऐसे समय में अपने बच्चों से जुड़े। अपनी महत्वाकांक्षाओं का बोझ अपने बच्चों पर ना डालें। उनकी क्षमताओं को आकलन करके ही उनके कैरियर का कोई फैसला करें। इसके साथ ही घर के जो बूढ़े बुजुर्ग हैं वह भी कोरोना के चलते घरों में कैद हो चुके हैं ऐसी स्थिति में उनके अंदर भी मनोविकार आना संभावित है। कोरोना की इस विपरीत परिस्थिति को हम एक अवसर के रूप में बदल सकते हैं जहां हमारा जीवन मोबाइल और टीवी तक सीमित हो चुका है। हमें चाहिए कि परिवार के बच्चे अपने बड़े बूढ़े बुजुर्गों के पास बैठे और एक दूसरे की विचारों से आदान प्रदान करें जिनका फायदा दोनों तरफ से होगा। वही किसी भी प्रकार का तनाव लेने से बचें ज्यादा से ज्यादा अपने को व्यस्त रखने का प्रयास करें अनावश्यक व्यर्थ की चिंता ना करें। कोरोना हमारी जिंदगी का अंतिम पड़ाव नहीं है यह भी एक मंजर है जो ऐसे ही गुजर जाएगा।