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Video News – सांसदों को मैदान में उतारने से भाजपा में दूसरी पक्ति के नेताओ का घुटने लगा दम !

इन नेताओ के लिए – जिंदा हो तो जिंदा नजर आना भी जरूरी होता है

झुंझुनू, भारतीय जनता पार्टी ने कल राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए अपने 41 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी जिसमें 7 सांसदों को टिकट दी गई है जो कि अपने आप में बहुत बड़ी संख्या है। महज 41 प्रत्याशियों में ही सात सांसदों को मैदान में उतार दिया गया है जबकि अभी पिक्चर तो पूरी बाकी है। भाजपा द्वारा सांसदों को मैदान में उतारने से एक अजीब सा मैसेज लोगों के बीच जा रहा है कि भाजपा डरी हुई है या फिर सधी हुई है। इतनी बड़ी संख्या में सांसदों को मैदान में उतारा जा रहा है जिसके चलते लग रहा कि भाजपा डरी हुई है वही यह भी लगता है कि भाजपा किसी भी तरीके से राजस्थान को फतह करना चाहती है जिसके चलते सधी हुई भी प्रतीत होती है। रणनीति के तहत उन्होंने सांसदों को मैदान में उतारा है लेकिन इससे पहले एक तरफ प्रधानमंत्री की जयपुर की रैली से यह संदेश गया कि दूसरी पंक्ति के नेताओं को प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी आगे लाना चाहते हैं। इसी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी किनारे किया गया वहीं दिया कुमारी को आगे लाया गया। लेकिन जहां से सांसदों को टिकट दी गई है उन विधानसभा क्षेत्र में सांसदों को मैदान में उतरने से भाजपा के दूसरी पंक्ति के जो नेता हैं उनका दम घुटना शुरू हो गया है, जो जायज भी है।

क्योंकि इन नेताओं ने अपने क्षेत्र में उनके सांसद बनने के बाद लंबे समय तक जी तोड़ मेहनत की थी लेकिन हासिल कुछ भी नहीं हुआ। वहीं भाजपा ने सांसद के पुत्रों या संबंधियों को टिकट नहीं दी जिसके चलते वंशवाद से तो वह अपने को दूर रखने में कामयाब हुई लेकिन जाने अनजाने में उसने इन क्षेत्रों में देखा जाए तो परिवार विशेष को ही बढ़ावा दिया है। यदि यहाँ से सांसद जीतने में कामयाब हो जाते है तो इन क्षेत्रो में इनके परिवार विशेष की ही तूती बोलने लगेगी। बात झुंझुनू जिले के मंडावा विधानसभा क्षेत्र की करें तो तत्कालीन विधायक नरेंद्र खीचड़ के सांसद बनने के उपरांत दूसरी पंक्ति के जो नेता थे जिनमें सुशीला सीगड़ा, इंजीनियर प्यारेलाल ढूकिया, राजेश बाबल, गिरधारी खीचड़ ने अपने क्षेत्र में भाग दौड़ करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी लेकिन अब पार्टी ने विधानसभा चुनाव में दोबारा से एक बार सांसद को ही मैदान में उतार दिया है जिसके चलते टिकट के आशार्थी अपने आप को हक्का-बक्का ही महसूस कर रहे हैं। वही इसमें राजेश बाबल वह नाम है जो झुंझुनू में छात्र राजनीति से लेकर अब तक लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं लेकिन इनका संघर्ष है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता है। जब जब किसी बड़े चुनाव की बात आती है चाहे वह नगर परिषद हो या जिले की ग्रामीण सरकार का मामला हो उनको पीछे धकेल ही दिया जाता है।

इसी प्रकार इस क्षेत्र से गिरधारी खीचड़ भी लगातार टिकट के लिए प्रयासरत थे, उन्होंने बड़ी सभाएं भी आयोजित की थी लेकिन इन लोगों को सफलता हासिल हुई नहीं हुई। आपने वह मोटिवेशनल वाक्य तो सुना ही होगा कि यदि जिंदा हो तो जिंदा नजर आना भी जरूरी होता है यानी आपको साहस भी दिखाना होता है और इस बात पर मुहर लगाने के लिए आपको झुंझुनू जिले से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। पिछले चुनाव में नवलगढ़ से विक्रम जाखल और झुंझुनू से बबलू चौधरी ने भाजपा के सामने ही निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था। और इन्होंने अपनी ताकत से पार्टी को अवगत करवा दिया, जिसके चलते ही इनको पार्टी को इस बार उम्मीदवार बनाना पड़ा है। दोनों ही उम्मीदवारों ने हिम्मत दिखाते हुए निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था और हिम्मत की ही कीमत होती है। लेकिन भाजपा के मंडावा विधानसभा क्षेत्र के जो दावेदार हैं उनमें से अधिकांश ने साहस नहीं दिखाया जिसके चलते छोटे से चुनाव से लेकर ऊपर विधानसभा तक के चुनाव में उनको समय समय पर पीछे धकेल दिया जाता है।

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