अनाधिकृत कब्जों से मुक्त करवाकर
दांतारामगढ़, [प्रदीप सैनी ] वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुरेन्द्र कौशिक ने कस्बा खूड के बस स्टेण्ड पर अवस्थित संत चेतनदासजी की धर्मशाला को अनाधिकृत कब्जों से मुक्त करवाकर श्री गुलाबदासजी का अखाड़ा सीकर को सौंपने का फैसला सुनाया हैं। साथ ही अवैध रूप से काबिज रहे प्रतिवादियों को कब्जा अवधि के किराये का भुगतान करने को भी कहा है। जानकारी के अनुसार वादी मोहनदास द्वारा वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष इस आशय का वाद दायर किया था कि सीकर में गुलाबदासजी का अखाड़ा सांगलिया साम्प्रदाय की एक पीठ हैं, जिसके संस्थापक पीठाधीश्वर गुलाबदास थे। उनके शिष्य आत्माराम और आत्माराम के शिष्य गुलजीदास थे। उनके बाद स्वर्गीय लादूदास उक्त अखाड़े के पीठाधीश्वर हुए, जिनके एक अन्य शिष्य खींवादासजी थे। चेतनदासजी की मृत्यु के उपरांत उनके शिष्य मगनदास थे, जिन्होंने अपने जीवन काल में किसी को भी अपना शिष्य नहीं बनाया, परिणामस्वरूप उनके गुरु भाई खींवादासजी ने गुलाबदास जी के अखाड़ा की प्रबंध व्यवस्था अपने हाथ में ले ली थी, क्योंकि चेतनदासजी के खींवादासजी एकमात्र गुरू भाई थे। खींवादासजी ने अपने जीवनकाल में ही कानदास को अखाड़े का महंत बना दिया था। उन्होंने मोहनदास को यह जिम्मेदारी दी, तब से वे ही अखाड़े का महंत पीठाधीश्वर चला आ रहा हैं और वही चेतनदासजी का एकमात्र उत्तराधिकारी हैं। चेतनदासजी ने कस्बा खूड़ में खूड़ के बस स्टेण्ड पर 18 अगस्त 1966 को भूमि क्रय कर उस पर धर्मशाला बना दी थी, लेकिन प्रतिवादीगण ने धर्मशाला के दक्षिण दिशा की तरफ अस्थाई टीनशेड लगा दिये तत्पश्चात उन्होंने पुख्ता निर्माण कर दुकानें बनवा ली और अवैध लाभ अर्जित करने लगे, जिस पर मोहनदासजी ने दावा दायर कर प्रतिवादीगण को धर्मशाला से बेदखल कर कब्जा वापस करने का आग्रह किया। विद्वान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की दलील और प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर सुनवाई करते हुए उक्त फैसला सुनाया हैं। उन्होंने डिक्री कर तीन महीने में दुकानों से अवैध कब्जा हटाने को कहा हैं। वादी की ओर से एडवोकेट नन्दलाल धायल ने पैरवी की।
धर्म की सदा जय होती है-मोहनदास
न्यायालय द्वारा ऐतिहासिक फैसला आने पर गुलाबदासजी के अखड़े से जुड़े श्रद्धालुओं में हर्ष की लहर छा गई। उन्होंने संतों की समाधियों व बाबाजी के बंगले में धोक व परिक्रमा आदि लगाकर पीठाधीश्वर मोहनदासजी महाराज का आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर मोहनदासजी महाराज ने कहा कि धर्म की सदा ही जय होती है। सत्यरूपी सूरज के सामने भले ही बादल अंधकार का अहसास कराते है, परंतु उन्हें हटना ही पड़ता हैं। धर्म भी सदा सूर्य की तरह सच्चाई के आसमान पर चमकता रहता हैं।