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शिक्षक दिवस पर विशेष : स्वाभिमानी शिक्षक की कहानी, लिखा सिंह की जुबानी

शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा, वह दहाड़ेगा

दांतारामगढ़,[ लिखा सिंह सैनी ] शिक्षक दिवस देशभर 5 सितम्बर को मनाया जाता है । एक अगस्त 1964 को ग्राम- खीचड़ों की ढाणी (सूलियावास) पोस्ट- बानूड़ा तहसील- दांतारामगढ़ जिला- सीकर के निवासी निम्नमध्यमवर्गीय किसान चौधरी मोहन राम खीचड़ की पत्नी चंद्री देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम केशर सिंह रखा गया। केशर सिंह बचपन से ही विनम्र, आज्ञाकारी और कुशाग्रबुद्धि था। ढाणी की राजकीय विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। मैट्रिक परीक्षा बानूड़ा के सरकारी स्कूल से 1981 में पास की जिसमें माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की मेरिट में छठा स्थान प्राप्तकर अपने कृषक परिवार, ढाणी और गांव का नाम पूरे इलाके में रोशन किया। स्कूली जीवन में फर्स्ट क्लास स्काउट रहने के साथ-साथ कबड्डी, वॉलीबॉल, फुटबॉल, हॉकी और कुश्ती जैसे खेलों में भी उनकी समान रूप से रुची थी। सत्र 1980-81 में विद्यालय में हुए स्कूल यूनियन के चुनाव में भारी बहुमत से अध्यक्ष चुने गए। चुनौती स्वीकार करना उनके स्वभाव में था। स्कूल यूनियन में प्रेसिडेंट के पद का चुनाव लड़ने से रोकने के लिए एक गुरु जी ने चुनौती देते हुए कहा कि यदि चुनाव लड़े तो तुम दसवीं बोर्ड की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास नहीं कर पाओगे। मन ही मन में गुरु जी की चुनौती पर खरा उतरने के लिए संकल्प कर लिया। पिताश्री निरक्षर थे लेकिन बेहद समझदार और शिक्षा के महत्व को जानने वाले थे। आज्ञाकारिता स्वभाव में होने के कारण चुनाव लड़ने के लिए पिताश्री की अनुमति अपेक्षित ही नहीं अनिवार्य थी। मांगते ही पिताजी ने अनुमति दे डाली। ऊपरी मन से उन्होंने अपने पिताजी से कहा कि चुनाव में पैसे भी खर्च होंगे। पिताजी का अनुपम उत्तर था, “जितने पैसे खर्च होंगे, उतनी अक्ल आ जाएगी।” उच्च शिक्षा श्री गंगा शार्दुल राजकीय संस्कृत पीजी कॉलेज बीकानेर से अंग्रेजी साहित्य वैकल्पिक विषय के साथ शास्त्री परीक्षा 1985 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। राजस्थान विश्वविद्यालय से एम ए संस्कृत और केंद्रीय विद्यापीठ जयपुर से बी ईडी करने के बाद गांव गरीब के हर बच्चे को शिक्षित और सुयोग्य नागरिक बनाने का सपना लेकर केशर सिंह शिक्षक बना।
वह बताते है की शिक्षक पद के कर्तव्य के प्रति निष्ठा का संकल्प उनके पिताश्री की देन है।

केशर सिंह खीचड़ ने दिनांक 31 दिसंबर 1987 को शिक्षा विभाग के रा उच्च प्राथमिक विद्यालय अमरपुरा दांता में अध्यापक के पद पर कार्य ग्रहण किया। हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत तीनों भाषाओं के शिक्षक के साथ ही स्काउट शिक्षक और शारीरिक शिक्षक का दायित्व भी निष्ठा के साथ निभाया।

बीकानेर मंडल चूरू के अधीन वरिष्ठ अध्यापक अंग्रेजी के पद पर सीधी भर्ती से प्रथम रैंक पर चयनित होकर 22 जनवरी 1990 को नव क्रमोन्नत राजकीय माध्यमिक विद्यालय रूपगढ़ दातारामगढ़ में वरिष्ठ अध्यापक अंग्रेजी के रिक्त पद पर कार्यग्रहण किया। इसी विद्यालय में 6 जुलाई 1990 को क्षेत्र के सुप्रसिद्ध गणित शिक्षक श्री प्रताप सिंह चौधरी सहकर्मी वरिष्ठ शिक्षक के रूप में उनको मिले। अंग्रेजी और गणित के वरिष्ठ अध्यापकों की जोड़ी ने समर्पित एवं समन्वित प्रयासों से गुणात्मक शिक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य लेकर ग्रामीण अंचल के विद्यार्थियों को शिक्षित करने का अभियान शुरू किया। सन् 1991 का विद्यालय का प्रथम बोर्ड परीक्षा परिणाम 22% रहा। सन् 1992 में 54% और 1993 में 72% परीक्षा परिणाम रहने के बाद आधारभूत मेहनत ने परिणाम देना शुरू किया और इस विद्यालय का बोर्ड परीक्षा परिणाम 90 से 100% के बीच अमूमन रहने लगा।
अगस्त 2022 में उपनिदेशक माध्यमिक शिक्षा के पद से सेवानिवृत होने वाले जयपुर निवासी श्री राजवीर सिंह ताखर वर्ष 1994 में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य आरंभ किया जो M.Sc B.Ed योग्यता धारी थे। अंग्रेजी और गणित शिक्षकों की जोड़ी को मार्गदर्शक प्रधानाध्यापक के रूप में विज्ञान शिक्षक का सुनहरा साथ मिला। इस शिक्षक त्रिमूर्ति ने 1995 में संकल्प लिया कि वर्ष 2000 से पहले इस विद्यालय को उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत करवाना ही हमारा लक्ष्य होगा। लक्ष्य प्राप्ति के लिए विभिन्न नवाचारों को अपनाते हुए बनाई गई प्रभावी रणनीति पर दिन रात अथक परिश्रम किया जाने लगा। सत्र 1997 – 98 में रूपगढ़ विद्यालय के भौतिक शैक्षिक एवं सहसैक्षिक विकास में चार चांद लगने लगे। सुदूर ग्रामीण अंचल में पहाड़ी के तलती पर स्थित 200 घरों वाले गांव रूपगढ़ के इस विद्यालय में सीकर, नागौर, अजमेर, जयपुर और चुरु जैसे 5 जिलों के मूल निवासी विद्यार्थी अध्ययन करने लगे। माध्यमिक स्तर के विद्यालय की छात्र संख्या 500 से अधिक हो गई थी। शिक्षक त्रिमूर्ति के नेतृत्व में सरकारी विद्यालय को आवासीय विद्यालय के रूप में विकसितकर विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया जाने लगा। रूपगढ़ विद्यालय का नाम जिले के नामचीन विद्यालयों में गिना जाने लगा । जुलाई 2000 में प्रधानाध्यापक श्री राजवीर सिंह स्थानांतरित होकर जयपुर चले गए। वरिष्ठ अध्यापक अंग्रेजी एवं गणित दोनों की व्याख्याता पद पर पदोन्नति की चर्चा विभागीय सूत्रों से विद्यालय एवं गांव तक पहुंच गई। शिक्षक त्रिमूर्ति के स्थानांतरण एवं पदोन्नति की खबरों से बेचैन आमजन ने पदोन्नति होने वाले शिक्षकों को रूपगढ़ ही रखने के लिए विद्यालय को उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत करवाने का पुरजोर प्रयास किया। रलावता, दुधवा, रूपगढ़, सुलियावास, मुंडियावास, गोठड़ा तगेलन एवं बानूड़ा ग्राम पंचायत के निवासियों की जरूरत बन चुकी रूपगढ़ विद्यालय की उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नति की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय अशोक गहलोत ने दातारामगढ़ की एक जनसभा में सितंबर 2000 में की। 18 दिसंबर 2000 को विद्यालय का उद्घाटन श्रीमान हरेंद्र मिर्धा तत्कालीन सार्वजनिक निर्माण मंत्री राजस्थान सरकार द्वारा किया गया। अंग्रेजी के वरिष्ठ अध्यापक श्री केसर सिंह खीचड़ ने पदोन्नति पर व्याख्याता संस्कृत के पद पर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अजीतगढ़ श्रीमाधोपुर में दिनांक 25 जनवरी 2001 को कार्य ग्रहण कर लिया। 14 नवंबर 2002 तक दो पारी में चलने वाले इस बहुत बड़े विद्यालय में उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं को संस्कृत साहित्य का अध्यापन श्री सिंह ने निष्ठा और मनोयोग से किया। निर्धन और जरूरतमंद विद्यार्थियों को निशुल्क ट्यूशन वो अपने आवास पर करवाते थे। उनके तत्कालीन विद्यार्थियों में से कई शिक्षा विभाग में प्रिंसिपल के पद पर भी आरूढ़ है। अजीतगढ़ से कार्य मुक्त होकर दिनांक 15 नवंबर 2002 को श्री सिंह ने राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रूपगढ़, दांतारामगढ़ में दूसरी बार कार्य ग्रहण कर लिया। सत्र 1999-2000 में रूपगढ़ विद्यालय उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत होने के बावजूद विद्यालय में एक भी व्याख्याता अब तक कार्यरत नहीं था।
15 नवंबर 2002 से दिसंबर 2006 तक एकल व्याख्यातावाला विद्यालय ठीक तरह से चलता रहा। इन वर्षो में 11वीं एवं 12वीं प्रत्येक कक्षा में 100 से 154 तक विद्यार्थी अध्यनरत रहे। विद्यालय को नई ऊंचाइयां प्रदान करने वाले त्रिमूर्ति में से अकेले व्याख्याता संस्कृत ही कार्यरत रहे। ग्राम दांता में आयोजित 2005 की स्कूली बालिका क्रीडा प्रतियोगिता में पहली बार बालिकाओं की कबड्डी टीम मैदान में उतारी। पहले ही मैच की हार ने बालिकाओं को हर खेल में सहभागिता करने और विजेता बनने तक जीतोड़ मेहनत करने का संकल्प करा दिया। पाठ्यसहगामी गतिविधियों में स्काउटिंग के साथ बालक और बालिका दोनों वर्गों के कबड्डी और खो खो के कोर्ट साल भर विद्यालय समय पश्चात भी अभ्यास रथ खिलाड़ियों के पसीने से तरबतर रहते। रूपगढ़ की टीम 2006 की जिला स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता बालक वर्ग में विजेता और बालिका वर्ग में जिला स्तरीय प्रतियोगिता के फाइनल मैच की उपविजेता रही। बालक और बालिका वर्ग के कबड्डी और खो खो खेलों में विद्यालय के 11 विद्यार्थी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में सीकर जिले का प्रतिनिधित्व करने के लिए चयनित हुए। कबड्डी बालक और बालिका दोनों वर्गों में एक छात्र और एक छात्रा ने राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिता में राजस्थान की टीम में सहभागिता की। इसके बाद एक दशक से अधिक समय तक सीकर की जिला स्तरीय प्रतियोगिता में
दोनों ही वर्गों में कबड्डी और खो खो खेलों में रूपगढ़ का दबदबा बना रहा। शैक्षिक सहशैक्षिक और भौतिक विकास में विद्यालय ने उल्लेखनीय प्रगति की। एकल व्याख्याता रहते हुए अंग्रेजी एवं हिंदी अनिवार्य के साथ संस्कृत साहित्य का अध्यापन कराने के साथ-साथ प्रभावी खेल प्रशिक्षक की भूमिका निर्वहन करने के साथ ही राजस्थान राज्य भारत स्काउट व गाइड स्थानीय संघ दांता के सहायक सचिव का दायित्व भी श्री सिंह ने कुशलता पूर्वक निभाया। लगभग 14 वर्ष तक शानदार ढंग से विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सुनिश्चित करने के लिए अनथक प्रयास किया। इस क्रम में अतिरिक्त कक्षा, खाली पीरियड वाले शिक्षकों द्वारा साथी शिक्षकों का पर्यवेक्षण कर स्पष्ट रिपोर्ट देना और मध्यांतर में एवं विद्यालय समय पश्चात उस पर विचार विमर्शकर निष्कर्ष पर अमल करना, घर पर विद्यार्थियों के स्वाध्याय का कार्यक्रम बनवाकर उसका पालन सुनिश्चित करवाना, सीसीटीवी कैमरे का प्रभावी पर्यवेक्षणिय उपयोग और विद्यार्थियों की परिवहन सुविधा के लिए 5 बसें 52 सीटर लगाना जैसे
अनेकअनेक नवाचार कर रूपगढ़ विद्यालय को जिले के सिरमौर विद्यालयों में अग्रणी पंक्ति में खड़ा करने में प्रभावी भूमिका निभाई। तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रोफेसर वासुदेव देवनानी की अगुवाई में सरकारी विद्यालयों को बेहतर बनाने की मुहिम चलाई गई। उसी के तहत विद्यालय में समाज के प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए स्टाफ के समन्वित प्रयासों से जुलाई 2015 में विद्यालय का नामांकन 800 पर पहुंच गया। शासन के स्तर से विभाग में सुनिश्चित की गई गतिशीलता के चलते दिनांक 29 जुलाई 2015 को प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति हो गई और दिनांक 30 जुलाई 2015 को नवक्रमोन्नत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कोलू, बायतु, बाड़मेर में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य ग्रहण कर लिया। इस समय विद्यालय की छात्र संख्या 400 थी। मालाणी के निवासियों में शिक्षा के लिए ललक और शिक्षकों के प्रति सम्मान देखने लायक था। छात्रों और अभिभावकों में शिक्षकों के प्रति सम्मान और श्रद्धा के भाव ने उनकी कार्य क्षमता द्विगुनित कर दी। सत्र 2015-16 में भौतिक और मानवीय दोनों ही संसाधनों के अभाव के बावजूद विद्वत स्टाफ, विद्यार्थी और अभिभावकों के समन्वित प्रयासों से सत्र 2016-17 में नामांकन 615 हो गया। 26 जनवरी 2016 को गणतंत्र दिवस के समारोह पर विद्यालय के भौतिक विकास के लिए 2.25 लाख रुपए क्राउड फंडिंग हुई। 18 अक्टूबर 2016 को दोपहर बाद सिंह को कोलू बायतु से दांता सीकर स्थानांतरण का आदेश प्राप्त हुआ।

दिनांक 21 अक्टूबर 2016 को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय दांता सीकर में प्रधानाचार्य पद पर कार्य ग्रहण किया। छत पर उगी हुई कमर तक लंबी घास और प्रयोगशाला एवं कक्षा कक्षों की छत टपकने से विद्यालय परिसर की जर्जर हालत देखकर उनका मन बहुत दुखी हुआ।

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय दांता कई दशकों तक सीकर जिला ही नहीं बल्कि शेखावाटी के श्रेष्ठतम विद्यालयों में से एक था जिसमें कला, वाणिज्य और विज्ञान तीनों संकाय के लगभग सभी विषय संचालित थे। विद्यालय से सटा हुआ शानदार छात्रावास हुआ करता था जिसमें सीकर नागौर जयपुर झुंझुनू जैसे सीमावर्ती जिलों के विद्यार्थी अध्यनरत थे। 21 अक्टूबर 2016 को विद्यालय की छात्र संख्या 197 अर्थात 200 से कम
और स्टाफ की संख्या 33 थी। विद्यालय भवन की छत वर्षा काल में टपकने के कारण भवन की हालत जर्जर और खराब हो चुकी थी। एसडीएमसी के कार्यवाही पंजिका में भवन की छत के मरमत कार्य का प्रस्ताव 2005 से अगस्त 2016 तक की हर वर्ष की बैठक में लिया हुआ था लेकिन कार्य नहीं हो पाने के कारण भवन दुर्दशा से मुक्ति नहीं पा सका। ऐसी स्थिति में न्यून छात्र संख्या और विद्यालय भवन और परिसर के निराशाजनक वातावरण का कारण ही खोज का विषय बन गया। विद्यालय परिवार से विचार विमर्श और चिंतन का निष्कर्ष था कि विद्यालय से समाज की विमुखता ही इसका प्रमुख कारण है। समाज की सक्रिय सहभागिता किसी भी संस्थान की सफलता और प्रगति की पहली शर्त होती है। सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों का सम्मेलन सखा संगम एवं गुरु सम्मान समारोह आयोजित करने का विचार लेकर तैयारियां शुरू कर दी। 1969 से 2005 तक के सभी पूर्व विद्यार्थियों को सूचीबद्ध किया गया। अधिकतम पूर्व विद्यार्थियों के फोन नंबर लेकर व्हाट्सएप ग्रुप निर्माण किया और व्हाट्सएप ग्रुप में सखा संगम और गुरु सम्मान समारोह के आयोजन पर विचार विमर्श शुरू किया गया। संपर्क किए गए सभी पूर्व विद्यार्थियों ने ऐसी उत्सुकता जोश और जुनून प्रदर्शित किया कि 17 मई 2017 को सार्वजनिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए रामबाण साबित हुए इस सखा संगम एवं गुरु सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। 2005 से पूर्व इस विद्यालय में काम करने वाले सेवानिवृत हो चुके सभी शिक्षकों को सखा संगम एवं गुरु सम्मान समारोह के लिए आमंत्रित किया गया। वृहद् स्तर पर पूर्व विद्यार्थियों और गुरुओं के मिलन और सम्मान समारोह में 1000 से अधिक शिष्यों और 40 से अधिक गुरुओं का अनूठा मिलन दांता विद्यालय के परिसर में हुआ। प्रातः काल 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक चलने वाले इस अनूठे कार्यक्रम की उपलब्धियां भी अनूठी ही रही। श्री बनवारी लाल मित्तल जैसे पूर्व विद्यार्थी ने जापानी तकनीक से भवन की छत मरमत के लिए 5 लाख 51 हज़ार रुपए के आर्थिक सहयोग की घोषणा मोबाइल पर संदेश देकर की क्योंकि वह भौतिक रूप से कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाए। सभी संभागी पूर्व विद्यार्थियों ने दिल खोलकर विद्यालय विकास के लिए लाखों का आर्थिक सहयोग दिया। भवन एवं परिसर की स्वच्छता और सुंदरता
विद्यार्थियों को अपनी तरफ आकर्षित करने लगी। विद्यालय में समाज के भागीदारी बढ़ने लगी। जुलाई 2017 में छात्र संख्या 372 जुलाई 2018 में 639 और जुलाई 2019 में 900 से ऊपर पहुंच गई। जुलाई 2017 से सितंबर 2019 तक विद्यालय में कभी अवकाश का दिन नहीं आया। स्टाफ शिक्षक साथियों की कर्तव्यपरायणता पूरे क्षेत्र में मिसाल बन गई। इस अवधि में भौतिक शैक्षिक सहसैक्षिक स्काउटिंग खेलकूद् आदि सभी क्षेत्रों में विद्यालय ने नए कीर्तिमान स्थापित कर अपने पुरातन गौरव की पुनर्स्थापना की। विद्यालय के प्रार्थना स्थलीय कार्यक्रम में गाई गई विद्या की है देवी मैया प्रार्थना इंटरनेट पर लाखों लोगों की पसंद बन गई। 2018 की बोर्ड परीक्षा की 12वीं विज्ञान के परिणाम में तीन छात्र एक साथ टॉपर रहे जिनके प्रत्येक के प्राप्तांक प्रतिशत 98.33 थे। आईआईटी नीट और चार्टर्ड अकाउंटेंट की फाऊंडेशन क्लासेस चलने लगी। फाऊंडेशन क्लास की सभी फैकेल्टी को पूर्व विद्यार्थी श्री बी एल मित्तल द्वारा आकर्षक पारिश्रमिक दिया जाता। मित्तल परिवार आज भी इस विद्यालय के लिए लाखों रुपए खर्च कर गुणात्मक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है। ऐसे महान दानवीर पूर्व विद्यार्थी परिवार के प्रति श्री सिंह श्रद्धा से झुक जाते हैं।

इस बार श्री सिंह को 30 सितंबर 2019 को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मूठली सिवाना बाड़मेर स्थानांतरण आदेश सुबह प्राप्त हुआ। इसी दिन दांता से कार्यमुक्त होकर इन्होंने दिनांक 1 अक्टूबर 2019 को मूठली सिवाना में कार्यग्रहण कर लिया जहां पर 600 का नामांकन था। उल्लेखनीय है कि 1 अक्टूबर 2019 से 9 अक्टूबर 2019 तक प्रधानाचार्य के स्थानांतरण को रुकवाने की मांग को लेकर छात्रों का आंदोलन चला जिसमें 9 दिन तक दांता स्कूल में तालाबंदी रही तथा तीन दिन तक नगर पालिका क्षेत्र के बाजार बंद रहे। जुलाई 2020 में मूठली सिवाना में नामांकन 825 हो गया। दिनांक 12 नवंबर 2020 को ब्रेन स्ट्रोक के कारण उनकी पत्नी लकवा ग्रस्त हो गई। अर्धांगिनी की तीमारदारी कर गृहस्थी बचाने के लिए 27 जनवरी 2021 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री माननीय श्री गोविंद सिंह डोटासरा को पड़ोसी जिले नागौर की टोडास स्कूल में स्थानांतरण हेतु उन्होंने निवेदन किया। माननीय शिक्षा मंत्री ने शिक्षक के सम्मान और गरिमा को बढ़ाते हुए निवेदन स्वीकार कर मूठली सिवाना बाड़मेर से टोडास कुचामन नागौर स्थानांतरण आदेश जारी करवा दिए। दिनांक 4 फरवरी 2021 को टोडास कुचामन में कार्यग्रहण किया। 13 फरवरी 2021 से 28 जून 2022 तक क्षेत्र के अहंकारी राजनेताओं ने अपने अहम की तुष्टि के लिए उनको छह बार एपीओ स्थानांतरण आदेश जारी करवाई। हर बार माननीय ट्रिब्यूनल न्यायालय से स्थानांतरण आदेशों पर स्थगन आदेश जारी हुए। ट्रिब्यूनल के स्थगन आदेश के बावजूद दिनांक 23 जून 2022 को दौलतपुरा डीडवाना
एवं 28 जून 2022 को सिवाना बाड़मेर के लिए ट्रांसफर आदेश जारी हो गए। 12 जुलाई 2022 को माननीय उच्च न्यायालय ने उक्त दोनों आदेशों पर स्टे जारी किया जो अभी तक जारी है। माननीय हाई कोर्ट के स्थगन आदेश से लाचार हुए तथाकथित जननायकों ने 14 अक्टूबर 2022 को राजीव गांधी ग्रामीण ओलंपिक खेलों में विभागीय निर्देशों की अवहेलना के बहाने प्रधानाचार्य के निलंबन आदेश जारी करवा दिए। राजनीति के उदंड और बेशर्म नाच के कारण विषम परिस्थितियों के होते हुए भी टोडास विद्यालय की कक्षा 10 और 12 के बोर्ड परीक्षा परिणाम सत्र 2022 और 2023
में उत्कृष्ट एवं शत प्रतिशत रहे। इस दौरान विद्यालय का नामांकन भी लगभग 40% बढ़ा। 20 लख रुपए का जन सहयोग मुख्यमंत्री जन सहभागिता योजना में पांच कमरे निर्माण के लिए एसडीएमसी के खाते में जमा करवाये गये । क्षेत्र के विद्यालयों में स्काउटिंग और गाइडिंग जैसी चरित्र निर्माण करने वाली प्रवृत्ति को दोबारा से शुरू करवाया। खेलों के प्रति चेतना और रुचि जागृतकर विद्यार्थियों को खेलों के अभ्यास के लिए समुचित वातावरण प्रदान करने का प्रयास किया।

उल्लेखनीय है कि प्रधानाचार्य श्री सिंह ने अपने संपूर्ण सेवा काल में अपनी कर्तव्यनिष्ठा मेहनत और समर्पण के बल पर सभी कार्य स्थलों पर समान रूप से विद्यार्थियों और स्थानीय निवासियों का भरपूर सम्मान और स्नेह प्राप्त किया है। सार्वजनिक शिक्षण को बचाने के लिए अनेक नवाचार करने वाले बहुआयामी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी आदर्श शिक्षक ने जीवन भर अपने विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए दृढ़संकल्प होकर स्वाभिमान और समर्पण पूर्वक राष्ट्र निर्माता के दायित्व को पूरा किया है।
वर्षों की नहीं, 10 महीने और 25 दिन की सरकारी सेवा शेष है जिनकी, ऐसे प्रधानाचार्य ने राष्ट्र निर्माण के कांटों भरे मार्ग पर अनथक और अनवरत चलकर हजारों छात्रों के जीवन निर्माण के महायज्ञ में अपने प्रयासों की आहुति दी है। शिक्षा, संयम, समर्पण, स्वाभिमान और संघर्ष के प्रतीक श्री सिंह ने शिक्षा और शिक्षार्थी के बेहतर भविष्य के लिए अलख जगाई है। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा है, “शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा, वह दहाड़ेगा।”

“मार्गदर्शक शिक्षक, आत्मसम्मान का प्रतीक,
उनकी शिक्षा से सब दिशाओं में चमकता जीवन।”

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