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झुंझुनू कलेक्ट्रेट से बाहर आया दस्तावेज, आरटीआई कार्यकर्त्ता पर लगा घात तो जिम्मेदारी लेगा कौन ?

आरटीआई कार्यकर्त्ता ने जिला कलेक्टर को सौपा ज्ञापन

प्रतिलिपि मुख्य न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय खंडपीठ जयपुर, सूचना आयुक्त सूचना आयोग राजस्थान जयपुर, मुख्य सचिव राजस्थान सरकार जयपुर, प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली, केंद्रीय सूचना आयुक्त सूचना आयोग नई दिल्ली, जिला पुलिस अधीक्षक झुंझुनू को भी भेजी

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को जातिगत चश्मे से देखने का किया कुप्रयास

ना ही तो प्रत्यक्ष ना ही अप्रत्यक्ष धमकियों से मैं डरने वाला हूं मैं सत्य का सिपाही हूं जब चाहो जैसे चाहो सामना करने के लिए तैयार हूं क्योकि में सिर्फ समक्ष और सत्य में ही विश्वास रखता हूँ।

झुंझुनू, किसी भी जिला मुख्यालय का जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय शासन प्रशासन का सर्वोच्च केंद्र होता है और इस कार्यालय से संबंधित दस्तावेजों को रखने का सबसे सुरक्षित स्थान भी यही होता है। लेकिन जब इसी कार्यालय के दस्तावेज जो कि गोपनीय हो और उसको सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाए तो उस पूरे कार्यालय की कार्यशैली और कर्ताधर्ताओं के ऊपर भी सवाल उठना लाजमी है। हम बात कर रहे हैं झुंझुनू जिला मुख्यालय की। चंद रोज पहले ही झुंझुनू जिला कलेक्टर के समक्ष सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आरटीआई का आवेदन किया गया था। शासन प्रशासन में ही बैठे हुए अधिकारियों के संबंधित ही यह आरटीआई थी लिहाजा आरटीआई का जवाब तो आएगा तब आएगा यह तो अलग बात है लेकिन उससे पहले ही इस गोपनीय आरटीआई के मूल आवेदन पत्र की फोटो खींचकर व्हाट्सएप के कुछ ग्रुप में इन अधिकारियों के निजी लाभ लेने के लिए और सस्ती सहानुभूति ग्रहण करने के लिए वायरल कर दी गई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आरटीआई कार्यकर्ता एवं पत्रकार नीरज सैनी के द्वारा एक आरटीआई झुंझुनू जिला कलेक्टर के समक्ष लगाई गई थी जो कि प्रशासन में बैठे हुए अधिकारियों से संबंधित ही थी वही दोनों ही अधिकारी/कर्मचारी एक ही जाति से निकले और सभी प्रकार से आरटीआई कार्यकर्ता पर दबाव डालने के उपरांत जब बात नहीं बनी तो सामाजिक स्तर पर सहानुभूति अर्जित करने के लिए इसको वायरल करवाया गया और अपने ही पिट्ठुओं द्वारा कुछ ऐसे कमैंट्स भी इस आवेदन के साथ करवाए गए। इसी को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता एवं पत्रकार नीरज सैनी ने कल झुंझुनू जिला कलेक्टर के समक्ष अपना ज्ञापन प्रस्तुत किया। जिसकी प्रतिलिपि मुख्य न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय खंडपीठ जयपुर, सूचना आयुक्त सूचना आयोग राजस्थान जयपुर, मुख्य सचिव राजस्थान सरकार जयपुर, प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली, केंद्रीय सूचना आयुक्त सूचना आयोग नई दिल्ली, जिला पुलिस अधीक्षक झुंझुनू को भी भेजी गई है। ज्ञापन में आरटीआई आवेदन की गोपनीयता भंग होने एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डालने तथा कार्यकर्ता पर विभिन्न प्रकार से दबाव बनाने के संबंध में कार्रवाई करने की मांग की गई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आवेदन की फोटो जिस भी अधिकारी /कर्मचारी के द्वारा वायरल करने में संलिप्तता पाई जाती है उसको सस्पेंड करने एवं आरटीआई कार्यकर्ता की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की मांग भी की गई है। वहीं जो यह पूरा मामला अधिकारी/ कर्मचारी या एक आरटीआई कार्यकर्ता अथवा एक पत्रकार के बीच का था उसको जातिगत रंग देने की नाकाम कोशिश की गई है। लेकिन सैनी समाज का बुद्धिजीवी वर्ग इन सभी बातों को अच्छी प्रकार से समझता है। लेकिन चंद उनके पिट्ठू लोगों द्वारा ही उस पर जो टीका टिप्पणी की गई है वह निश्चित रूप से अशोभनीय और निंदनीय है। क्योंकि आरटीआई के संदर्भ में लगाई गई उसके पीछे के कारण क्या थे दोनों पक्षों को जानने के बिना ही एक पक्ष सुनने के बाद जाति की भावना में बहकर या इन अधिकारी कर्मचारियों के प्रति अपनी स्वामी भक्ति दर्शाने के लिए ही व्हाट्सएप ग्रुप में कमेंट किए गए हैं।

यह था पूरा मामला

पत्रकार नीरज सैनी ने अपनी पहली आरटीआई जिला सूचना केंद्र झुंझुनू में लगाई थी जिसमें उन्होंने जिला मुख्यालय पर कार्यरत सभी पत्रकारों की सूची और यदि उनके पी आर ओ लेटर या आई कार्ड भी जमा है तो उनकी फोटो कॉपी भी मांगी थी। लेकिन सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू ने अपनी राजनीतिक ऊंची पहुंच के अभिमान के चलते समय व्यतीत होने तक भी आरटीआई कार्यकर्ता को सूचना उपलब्ध नहीं करवाई। जिसके उपरांत प्रथम अपील निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग जयपुर को की गई। जिसकी सुनवाई 16 जून को होनी तय हुई थी लेकिन इस दिन झुंझुनू पीआरओ सुनवाई में नहीं पहुंचे जबकि अपील करने वाले पत्रकार नीरज सैनी निदेशक के समक्ष उपस्थित हुए। वहां पर भी इनको काफी जद्दोजहद और टालमटोल के उपरांत अपील कार्रवाई करने तथा यह जानकारी दी गई कि झुंझुनू पीआरओ ने हमें पत्र लिखकर सूचित किया है कि झुंझुनू जिला कलेक्टर ने आज उनकी ड्यूटी किसी आवश्यक कार्य में लगा रखी है इसलिए वह सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सकते। सुबह से शाम तक आरटीआई कार्यकर्ता को अपनी बात पर अडिग रहने और नियमों का हवाला देने के चलते निदेशक कार्यालय को सुनवाई पर फैसला देते हुए झुंझुनू जिला सूचना जनसंपर्क अधिकारी को निर्देशित किया गया कि आरटीआई कार्यकर्ता को इनकी मांगी गई जानकारी बिंदुवार दी जाए। वही निर्देश और कानूनों के चलते जो सूचना परिवादी को सौंपी गई वह भी आधी अधूरी अपूर्ण थी जिसके चलते उन्होंने सूचना आयुक्त राजस्थान सूचना आयोग जयपुर को अपनी दूसरी अपील प्रस्तुत कर दी। बस इन अधिकारी साहब को यह बात नागवार गुजरी, इस दौरान भी येन केन प्रकरेण आरटीआई कार्यकर्ता को दबाने का प्रयास किया गया। लेकिन प्रयास नाकाम। इसी बीच झुंझुनू जिला कलेक्टर के समक्ष आरटीआई कार्यकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर भी निवेदन किया कि 16 जून को जिस दिन प्रथम अपील की सुनवाई थी आपने झुंझुनू पीआरओ कि कहीं पर ड्यूटी लगाई थी इसकी जानकारी दी जाए लेकिन जानकारी नहीं मिलने पर इस कार्यालय में भी झुंझुनू जिला कलेक्टर के समक्ष कार्यकर्ता द्वारा एक और आरटीआई लगाई गई जो कि वर्तमान में सोशल मीडिया ग्रुप में वायरल की जा रही है। इसमें आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा यह जानकारी भी मांगी कि झुंझुनू जिला कलेक्ट्रेट में कितने ऐसे सरकारी अधिकारी या कर्मचारी हैं जो कि डेपुटेशन पर कार्यरत हैं। क्योकि गहलोत सरकार ने हाल ही में डेपुटेशन को लेकर नए आदेश निकाले थे। जिसके सन्दर्भ में पत्रकार द्वारा एक स्टोरी तैयार की जा रही है उसमे इन तथ्यों की आवश्यकता थी। कलेक्टर के समक्ष आरटीआई के मूल आवेदन की प्रति की फोटो जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय से खींचकर ही व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल किए जा कर आरटीआई कार्यकर्ता को हतोत्साहित करने के लिए कमैंट्स करवाए जा रहे हैं। वही यह भी लिखा जा रहा है कि किसी दूसरे समाज विशेष के बहकावे में आकर यह कार्य करवाया जा रहा है। इन कम जानकारी रखने वाले कूप मंडूक प्रवृत्ति के जो लोग ग्रुप में कमेंट कर रहे हैं इनको पूरे मामले की जानकारी है ही नहीं या फिर है तो जानबूझकर इन कर्मचारी अधिकारियों के प्रति अपनी स्वामी भक्ति दर्शाने के लिए ही ऐसे कमेंट किए जा रहे हैं।

इसमें मजे की बात यह है कि जब दोनों ही व्यक्ति समाज के हैं तो क्या इनका यह कर्तव्य नहीं बनता कि कुछ भी धारणा अपने मन में बनाने से पहले एक बार पूरे मामले की जानकारी कर ली जाए फिर ही कमेंट किया जाए और दूसरी बात आरटीआई कार्यकर्ता या जो पत्रकार होता है वह जाति धर्म देखकर कार्य नहीं करता बल्कि जो लीगल रूप से तथ्य सामने आते हैं उनको देखकर ही काम किया जाता है।

अपने आप को कथित पत्रकार और कथित शिक्षाविद कहने वाले लोगों से मेरा सवाल है कि पत्रकार किसी भी जाति या धर्म का नहीं होता है वह एक लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का सिपाही होता है। उसकी दृष्टि में ना कोई जाति ना कोई धर्म सम्मुख होता है और अपने आप को कथित बुद्धिजीवी कथित शिक्षाविद कहने वाले लोग इस मामले को जातिगत नजर के चश्मे से देखते हैं तो इससे बड़ी हास्यास्पद स्थिति भी क्या हो सकती है। वही एक महाशय ने कमेंट किया था कि समाज के नाम पर दुकान चलाते हैं उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं केंद्र के सरकार के द्वारा अनुमति प्राप्त एक मीडिया कंपनी चला रहा हूं और राजस्थान के गिने-चुने वही शेखावाटी का पहला ऐसा न्यूज़ पोर्टल और न्यूज़ वेब चैनल मेरा है जो कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अंतर्गत डिजिटल मीडिया के रूप में काम करता है। दूसरी बात इन कथित पत्रकारों और कथित शिक्षाविदों को यदि कोई मुगालता है तो वह निकाल ले की देश और प्रदेश के कई नामचीन समाचार पत्र और समाचार चैनलों और प्रदेश के ही नहीं देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों के सानिध्य में काम करने का अनुभव रखता हूं। उस समय से मैंने डिजिटल मीडिया शुरू कर दिया था जब शुरुआती दौर में लोग हंसते थे कि इस क्षेत्र में कामयाबी कैसे मिलेगी आज उनके लिए मैं मिसाल हूं। पत्रकारिता करना मेरी जरूरत नहीं जुनून है। क्योंकि जितनी शैक्षणिक योग्यता और काबिलियत मै रखता हूं उससे किसी भी बड़े समाचार समूह या किसी भी बड़े शिक्षण संस्थान में टीचिंग करवा सकता हूं। क्योंकि क्योंकि शिक्षण क्षेत्र और पत्रकारिता दोनों ही क्षेत्रों में प्रैक्टिकल और शैक्षणिक रूप से योग्यता भी रखता हूं। शिक्षण की बात करे तो वह विज्ञान विषय। इसलिए अपनी कूप मंडूक प्रवृत्ति से बाहर आइए किसी को जाने बिना ही या जानबूझकर कमेंट कर देना आपकी विद्वता नहीं बल्कि आपको व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का विद्वान ही साबित करता है, ऐसे लोगों को खुली चुनौती देता हूं कि शिक्षण की विधाओं पर या पत्रकारिता के आयामों पर किसी भी सार्वजनिक मंच से मेरे सामने आकर डिबेट कर ले। कितने बड़े शिक्षाविद और कितने बड़े विद्वान हैं दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा और एक बात और मैं पत्रकारिता अपने जीवन यापन करने के लिए नहीं कर रहा हूं। यदि यह मेरे जीवन यापन का जरिया होता तो बहुत सारे विकल्प मेरे पास उपलब्ध है और जो लोग यह कहते हैं कि सैनी समाज विज्ञापन देने में ऐसे लोगों का बाय काट करे। तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं मेरे लिए सभी समाजों के लोग आदरणीय हैं और सैनी समाज का विज्ञापन देने में सालाना यदि मेरे संस्थान को अनुपात निकाला जाए तो 1% से भी कम योगदान आप लोगों को मिलेगा बाकी सर्व समाज लोगों ने भरपूर प्यार स्नेह सहयोग दिया है।

इस आरटीआई लगाने के बाद में विभिन्न माध्यमों द्वारा मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का कार्य किया गया है और अप्रत्यक्ष रूप से जो जो धमकियां मुझे दी गई है उसका ज्ञापन मैंने जिला कलेक्टर को सौंपा है जिसमे मैंने पूरा विवरण दिया है। ना ही तो प्रत्यक्ष नाही अप्रत्यक्ष धमकियों से मैं डरने वाला हूं मैं सत्य का सिपाही हूं जब चाहो जैसे चाहो सामना करने के लिए तैयार हूं क्योकि में सिर्फ समक्ष और सत्य में ही विश्वास रखता हूँ।

वही जिला कलेक्टर झुंझुनू को भी ज्ञापन देकर यह सूचित करवा दिया गया है कि इस आरटीआई को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर जिस व्यक्तियों के द्वारा वायरल किया गया है उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए अन्यथा किसी भी प्रकार से मेरा यदि कोई नुकसान होता है तो उसकी सीधी सीधी जिम्मेदारी झुंझुनूं जिला कलेक्टर कार्यालय की होगी। समय आभाव के चलते ही आज इतना ही जरूरत पड़ी तो फिर कभी। सत्यमेव जयते

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