मै अकेला ही चला था जानिब ए मजिल मगर लोग साथ आते गए कारवां बनता गया ये शेर माखर इस्लामपुर के चन्द युवकों पर सटीक बैठता है जिनकी सोच व कुछ कर गुजरने के जज्बें ने कस्बें मे श्री कल्याण गौशाला की नींव रख डाली। बडें बडें सेठ साहुकार भी एक बार तो इस काम को करने के लिए सोचते है। परन्तु अंगुलियों पर गिने जाने वाले कुछ युवको ने ही गौसेवा के प्रण को अपने बुलन्द हौसलों के चलते अपनी सोच को धरातल पर साकार कर दिखाया है। आज गौ माता के नाम पर लोग राजनितिक रोटियां सेकते है। लेकिन रोगग्रस्त एवं बीमार गायों का कोई धोर धणी नही है। गाय जब तक दुधारू होती तब तक उसकों घर मे रखते है। उसके बाद स्वार्थी लोगों द्वारा उसे दुत्कार दिया जाता है। ऐसे मे लम्बें समय से लोगों के द्वारा क्षेत्र मे गौशाला स्थापित करने का विचार तो मन मे आ रहा था परन्तु आगे बढ के पहल कोई नही कर रहा था। चन्द दिनो पहले युवको द्वारा एक गाय से शुरू हुई यह गौशाला आज ग्यारह रोगग्रस्त असहाय दुर्बल गायों का आश्रय स्थल बन चुकी है। साथ ही क्षेत्र मे जब किसी कमजोर रोगग्रस्त गाय की सूचना जब इन युवको को मिलती है। तो वे तुरन्त उस स्थान पर पहुच कर गौ वंश को गौशाला के परिवार मे ले आते है। यहां पर युवको द्वारा उनका ईलाज करवाया जाता है। तथा उनकी सेवा की जाती है। पिछले दिनो एक गंभीर रूप से बीमार गाय का चार घण्टे तक ओपरेशन चला था। जिसमे राजकीय पशु चिकित्सालय के डाॅ सतबीर दलाल ने अहम भूमिका निभाई थी। युवकों के साथ डाॅ दलाल भी कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रहे है। कस्बें के भामाशाह माहेश्वरी परिवार द्वारा ही गौशाला के लिए स्थान उपलब्ध करवया गया है। वही इस गौशाला से जुडे ये युवक तन मन धन से गौ वंश की सेवा करने मे लगे है। जैसे जैसे गौशाला मे असहाय व बीमार गायों की संख्या बढती जा रही है। तथा संसाधनों का अभाव इन गौसेवको के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। ऐसे मे क्षेत्र के भामाशाह आगे आकर गौशाला रूपी इस यज्ञ मे आर्थिक सहायता की आहुतियां देकर पुण्य के भागीदार बन सकते है।