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झुंझुनू जिले में है भारत का दूसरा वृन्दावन

मरुधरा की माटी शौर्य और भक्ति का अटूट संगम मानी जाती है शेखावाटी क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर, सालासर धाम, श्री रानी सती मंदिर स्थित है। वही आज हम आपको भारत के दूसरे वृंदावन से अवगत कराएंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं झुंझुनू जिले के इस्लामपुर के निकटवर्ती वृंदावन धाम की। इसको भारत का दूसरा वृंदावन कहा गया है इसके पीछे एक बहुत बड़ी कथा भी है जो बाबा पुरुषोत्तम दास जी से जुड़ी हुई है। स्थानीय लोगों, पुजारी गणों एवं श्रद्धालुओं से मिलकर हमें जो जानकारी प्राप्त हुई उसके अनुसार इस वृंदावन धाम को बाबा पुरुषोत्तम दास ने ही स्थापित किया था। बाबा पुरुषोत्तम दास का जन्म सिधमुख ग्राम में 16 मार्च 1525 को हुआ था वहीं कम उम्र में ही इनका विवाह कर दिया गया लेकिन बाबा का मन सदा हरि भक्ति में लीन रहता था और यह मथुरा जाकर हरिदास जी महाराज के शिष्य बन गए। वहां पर इनकी भक्ति परायणता को देखकर हरिदास जी महाराज ने इन्हें आदेश दिया कि एक नया वृंदावन जाकर बसाओ तब पुरुषोत्तम दास जी महाराज अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी से गुजरने वाली काटली नदी के क्षेत्र में आए और इस नदी को इन्होंने यमुना के समान माना और यहां पर ही अपना स्थान बनाने का फैसला किया। इन्होंने यहां पर एक वृक्ष देखा जिसकी 5 शाखा निकली हुई थी इसी के नीचे इन्होने साधना शुरू की जो कि आज साधना स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। बाबा पुरुषोत्तम दास ने इस स्थान पर आकर अपना धुना जलाया। उस दौरान पास के गांव इस्लामपुर की गाए यहाँ चरने आती थी गाय के थन के नीचे बाबा अपना कमंडल रख देते थे और गायो के थन से स्वतः ही दूध निकलने लगता था। बाबा इसे अपने जीवन यापन में इस्तेमाल करते थे। उस दौरान यहाँ पर शेर जैसे खूंखार जानवर भी विचरण करते थे। दिनप्रतिदिन बाबा पुरुषोत्तम दास के चमत्कारों की कथा लोगो तक पहुंचने लगी। 15 से 20 किलोमीटर के क्षेत्र में निवास करने वाले धनाढ्य सेठ साहूकार बाबा के मुरीद होते गए। कालांतर में जो विदेश एवं देश के अन्य इलाको में व्यापार के लिए चले गए। सैकड़ो सालो बाद भी उनकी पीढ़ियो के सदस्य बाबा के जन्मोत्सव पर फाल्गुन में यहाँ पर पहुंचते है। बाबा पुरुषोत्तम दास ने 4 नवम्बर 1650 को जीवित समाधि लेकर देवलोक को गमन किया। यहाँ का पंच पेड़ और बाबा बिहारी जी का मंदिर आज धार्मिक रूप से तो अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं साथ ही अब एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होते जा रहे हैं। एकादशी के 1 दिन पूर्व आसपास के कई गांवों और कस्बों से पदयात्राए चलकर वृंदावन पहुंचती है। एकादशी के दिन विश्व शांति के लिए यहां हवन एवं मंगल पाठ किया जाता है प्रतिदिन यहां पर हवन चलता रहता है फाल्गुन की बारस को यहां फागोत्सव आनंदोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में यहां पर एकादशी को बाबा का 11 वां जन्मोत्सव एवं बारस को 23 वां फागोत्सव मनाया जा रहा है जिसका आयोजन श्री बिहारी जी मित्र मंडल  द्वारा किया जाता है। फाल्गुन की एकादशी पर 3 दिन तक चलने वाले इस उत्सव के लिए देश विदेश से श्रद्धालु भी यही पहुंचते हैं नेपाल से आए मुरारका परिवार के श्रद्धालुओं ने बताया कि यह हमारे कुल गुरु हैं और हमारे पूर्वज इनको मनाते आ रहे हैं और वह हर साल फाल्गुन की एकादशी को जनकपुर धाम नेपाल से चलकर 25 साल से लगातार यहां आ रहे हैं। इसके अलावा भारत के अन्य दूरदराज प्रदेशों से भी यहां श्रद्धालुगण जन्मोत्सव के दौरान उपस्थित होते हैं। इस अवसर पर उन्होंने अपने से जुड़े हुए विभिन्न संस्मरणों से भी अवगत करवाया। आज 17 मार्च को पंच पेड़ के नीचे हवन एवं दीपोत्सव तथा महा आरती का आयोजन किया जा रहा है वही कल 18 मार्च को फागोत्सव मनाया जाएगा जिसमें फूलों और गुलाल से होली खेली जाएगी। इसके बाद पंच पेड़ के नीचे ही महाप्रसाद किया जाएगा तथा बिहारी जी के मंदिर से लेकर पंच पेड़ तक एक शोभायात्रा भी निकाली जाएगी। बिहारी जी के मंदिर में इस अवसर पर छप्पन भोग की झांकी भी सजाई जाएगी। गौरतलब है कि वृंदावन धाम बिहारी जी के मंदिर से जुड़े श्री बिहारी मित्र मंडल द्वारा वर्ष पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जिनमें प्रमुख हैं हनुमान जयंती, निर्जला उत्सव, गुरु पर्व, शरद उत्सव, अन्नकूट महोत्सव, बाबा बारात, नव वर्ष के रंगारंग कार्यक्रम एवं श्री कृष्ण जन्मोत्सव इत्यादि धूमधाम से मनाया जाता है इसके साथ ही मासिक शुक्ल की एकादशी को पिछले 25 वर्षों से यहां कीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है।

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