स्थानीय लाम्बा कोचिंग कॉलेज के निदेशक शुभकरण लाम्बा ने कहा कि प्रकृति हमारी मां है उसे दुर्गा न बनने दे। वे कॉलेज परिसर में पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित एक गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण गत अनेक वर्षो से मौसम में अप्रत्याशित और औचक परिवर्तन दिखाई दे रहा है तथा मौसम की असमान्यता मानव जीवन के लिये भीषण खतरा एवं चुनौती बन रही है। उन्होंने कहा कि जीव मंडल में जल मंडल, स्थल मंडल एवं वायुमंडल भी समाहित है जो एक दूसरे के परिपूरक है। इनमें से एक भी प्रभावित होता है तो वह अन्य को प्रभावित करता है तथा इन तीनो मंडलो में पर्याप्त ऊर्जा का समुचित प्रयोग ही पर्यावरण संरक्षण है एवं दुरूपयोग प्रदूषण कहलाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य ने अपने तुच्छ स्वार्थ एवं अंहकार से जब धरती को माता न मानकर उसे शोषण करने वाली वस्तु माना एवं निमर्मता से उसका शोषण एवं दोहन किया तो पर्यावरण में संतुलन एवं साम्य दोनो में बिखराव आ गया। उद्योगों के अपशिष्ट से वायु, जल एवं स्थल सभी प्रदूषित होने लगे। उन्होंने कहा कि प्रकृति, पर्यावरण एवं मनुष्य सभी एक दूसरे के परिपूरक है और जब उनके बीच का सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध टूटता है तो वर्तमान समय में मौसम की अनिश्चिता के रूप में सामने आता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति तो माता है। अथर्ववेद के बारहवें वेद का प्रथम सूक्त, पृथ्वी सूक्त के नाम से विख्यात है यानि यहां पर ऋषियों ने भूमि को माता और स्वयं को पृथ्वी का पुत्र कहा है। उन्होंने कहा कि केवल चिंता चताने से कुछ नही होगा वरन् हम सब को कत्र्तव्य निष्ठ संतान के रूप में धरती को पोषण, संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करनी होगी व इस जागरूकता से ही प्रकृति के इस महासंघारक रूप से बचा जा सकता है और मानव को सुरक्षित रखा जा सकता है। गोष्टी को टेकचंद शर्मा, रतनलाल पायल, लियाकत अली खां आदि ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रशिक्षणार्थी उपस्थित थे।