शहीदे आजम भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव भारतीय क्राति के अग्रदूत थे। 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, राजगुरू एवं सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा दी थी और उन्होने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चुमा था। भगतसिंह पर प्रत्येक्ष और परोक्ष रूप से जोर पड़ा था कि वे माफी मांग ले तो फांसी से बच जायेंगे, लेकिन उन्होने इन्कार ही नहीं किया बल्कि फांसी के फंदे को चुम लिया। उपरोक्त शब्द लाम्बा कोचिंग कॉलेज के निदेशक शुभकरण लाम्बा ने बलिदान दिवस पर कहे। वे संस्था परिसर में शहीदे आजम भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव के बलिदान दिवस पर सेना भर्ती अभ्यर्थियों को सम्बोधित कर रहे थे। सीकर जिले के क्रान्तिकारी नेता गणपत सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि सरदार भगतसिंह आजादी के पर्याय थे। अपने सम्बोधन में पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी लियाकत अली ने कहा यदि भगतसिंह जैसे लोग भारत में पैदा नही होते तो भारत आज भी गुलाम रहता। भगतसिंह मंच के जिलाध्यक्ष कामरेड फूलचंद ने अपने सम्बोधन में कहा कि शिक्षा का उद्देश्य आदमी को मजबूत करना है लेकिन वर्तमान शिक्षा पदति नौजवानों को कमजोर व निकम्मा बना रही है। समारोह में सैकड़ो लोग उपस्थित थे।