सुख-समृद्धि की कामना के साथ शहर सहित जिलेभर में सोमवार को तीज का त्यौहार मनाया गया। महिलाओं और युवतियों ने सौलह श्रृंगार कर तीज माता की पूजा अर्चना की। किदवन्ती कथा के अनुसार तीज श्रावण शुक्लपक्ष के तीसरे दिन मनायी जाती है इस दिन भगवती पार्वती सौ वर्षो की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थी इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है। राजस्थान में एक बड़ी ही प्यारी लोक कहावत प्रचलित है। तीज तीवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर…यानी सावनी तीज से आरंभ पर्वों की यह सुमधुर श्रृंखला गणगौर के विसर्जन तक चलने वाली है। सारे बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, श्राद्ध-पर्व, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली का पंच-दिवसीय महापर्व आदि…तीज माता की भव्य सवारी निकाली जाती है जिसको देखकर मन खुशी से झूम उठता है। इसी क्रम में श्री गोपाल गौशाला द्धारा निकाली गयी तीज की सवारी गौशाला से रवाना होकर लावरेश्वर मंदिर, झुंझनूं एकेडमी, लावरेश्वर श्याम मन्दिर, चुणा का चौक होते हुए करीब पाँच बजे छावनी बाजार पहुंची। छावनी बाजार में तीज माता की वरिष्ठ समाजसेवी भामाशाह बजरंगलाल सौलानेवाला ने आचार्य पडिंत अनील शुक्ला के सानिध्य में पूजा अर्चना कराई। जोशियों का गट्टा, गुदडी बाजार, कपड़ा बाजार होते हुए तीज की सवारी गाजे-बाजे के साथ समस तालाब- शंकरदासजी महाराज आश्रम पहुंची जहां पूजा अर्चना की गई।