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जीव जब परमात्मा से मिलने के लिए उतावला होता है तो उसे प्रभु कृपा से संत मिलते है- संत राघव ऋषि

सुभाष चौक स्थित लोहिया हवेली में ऋषि सेवा समिति की ओर से आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन मंगलवार को कथावाचक संत राघव ऋषि कहा कि आत्मीय भक्तिभाव स्पंदन से बंधन में परमात्मा ऐसे बंध जाते हैं कि उन्हें अपने भक्त के पास आना ही पड़ता है। ऋषि ने शुकदेव आगमन, सती चरित्र और शिव विवाह प्रसंग पर विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि परीक्षित को शाप मिला तो उन्हें भय मुक्त करने के लिए शुकदेव आते है। क्योंकि प्रभु मिलन की आतुरता से ही संत मिल जाया करते है तो जीव जब परमात्मा से मिलने के लिए उतावला होता है तो उसे प्रभु कृपा से संत मिलते है। उन्होंने कहा कि जन्म, मृत्यु-जरा, व्याधि के दु:खों पर यदि व्यक्ति विचार करता है तो उसे वैराग्य की इच्छा होगी। संत ने कहा कि निद्रा और विलासिता में रात गुजर जाती है और धन प्राप्ति व कुटुम्ब पालने में दिन गुजर जाते है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह वर्तमान में जीए और सदाचार युक्त कर्म कर जीवन के मर्म को समझे। उन्होंने ध्रुव प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि ध्रुव जीव ही उत्तानपाद है सुरुचि और सुनीति दो पत्नियां है, सुरुचि मनुष्य को अच्छी लगती है ध्रुव से सुरुचि से मिलता है, धु्रव अर्थात अविनाशी जो निष्काम भक्ति से युक्त है। उन्होंने कहा कि जब तक नारद रूपी संत नहीं मिलते हैं तो तब तक प्रभु की प्राप्ति नहीं होती। संत ही प्रभु से मिलाते हैं तो भगवान ध्र्रुव को दर्शन भी देते हैं। संत ने देश पर चर्चा करते हुए कहा कि इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। वह इसलिए कि भरत जो कर्म करते थे, वह कर्मफल परमात्मा को अर्पित कर देते थे। क्योंक कर्मफल परमात्मा को अर्पण करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है। संत ने कथा में अनेक प्रसंगों की विविध व्याख्या कर श्रद्धालुओं को मानवीय मूल्यों की स्थापना और भारतीय संस्कृति के साथ साथ सत्यनिष्ठ आचरण के साथ जीवन जीने का संदेश दिया।

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