झुंझुनूं, स्थानीय लाम्बा कोचिंग कॉलेज के निदेशक शुभकरण लाम्बा ने कहा है कि महात्मा बुद्ध शांति और अंहिसा के अग्रदूत बनकर इस धरा पर अवतरित हुए थे। वे सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा पर आयोजित समारोह को कॉलेज परिसर में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब महात्मा बुद्ध का प्रादुर्भाव हुआ उस वक्त संपूर्ण भारत हिंसा, अशांति, अंधविश्वास, अधर्म और रूढि़वादिता की बेडिय़ों में जकड़ा हुआ था। महात्मा बुद्ध का आगमन एक ऐसे युग प्रवर्तक के रूप में हुआ जिन्होंने न सिर्फ भारत में अपितु विश्व के अनेक देशों में अपने ज्ञान की ज्योति से जनमानस को लाभान्वित किया। महात्मा बुद्ध का जन्म सन् 1569 ई. पूर्व लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था । वे कपिलवस्तु के क्षत्रिय राजा शुद्धधोधन के पुत्र थे। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। बचपन में ही माता का देहावसान हो जाने के उपरांत पिता शुद्धोधन ने उन्हें अपार स्नेह प्रदान किया । बचपन से ही बुद्ध अत्यंत गंभीर व शांत विचारों के थे। वे अत्यंत जिज्ञासु थे तथा अपने आस-पास होने वाली समस्त घटनाओं का वे गहन अवलोकन करते थे। जैसे-जैसे बालक सिद्धार्थ बड़े हुये तो समय के साथ-साथ वे और भी गंभीर व दार्शनिक प्रवृत्ति के होते चले गये। उन्हे राजसी भोग-विलास आकृष्ट न कर सका तथा वे धीरे-धीरे वह वैराग्य की और बढ़ते चले गये। पिता उनके वैरागी स्वभाव से अत्यंत चितिंत हुए तथा अपनी इस चिंता के निवारण के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उनका विवाह यशोधरा नामक एक सुंदरी से करा दिया गया तथा महल में ही सिद्धार्थ के विलास के सभी साधन उपलब्ध कराए गए। मगर उनकी सांसारिक अनिच्छा और सत्य को जानने की तीव्र उत्कंठा में कभी नहीं आई। एक बार वे गया में वट-वृक्ष के नीचे समाधिरत थे तथा उसी वृक्ष के नीचे अकस्मात उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ । ज्ञान प्राप्ति के उपरांत वे गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। गया में ज्ञान प्राप्ति के उपरांत उनका संपूर्ण जीवन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हो गया। गौतम बुद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जगह-जगह भ्रमण करते रहे। उनके अनुयायियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई तथा उनकी ख्याति चारों और फैल गई। अंगुलिमाल जैसा डाकू भी अपनी आसुरी प्रवृत्ति को छोडक़र उनका शिष्य बन गया । उन्होंने जगत को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। उनके अनुसार अहिंसा ही परम धर्म है। पूर्व आईएएस विजय भारती ने कहा कि गौतम बुद्ध के उपदेश व शिक्षाएँ विश्व में बौद्ध धर्म के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने बताया कि वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। यह गौतम बुद्ध की जयंती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। समारोह को लियाकत अली खान, प्रो.रतन पायल, शिक्षाविद् टेकचंद शर्मा आदि ने सम्बोधित किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रशिक्षणार्थी उपस्थित थे। संचालन महावीर प्रसाद ने किया।