कारगिल विजय दिवस आज…..यूहीं नही बनते है गांवों में स्मारक
दांतारामगढ़ (लिखासिंह सैनी) राजस्थान की भूमि वीर प्रस्तुता रही है। उसको कोख से वीर रत्नों के साथ- साथ अनेक संतों ने भी जन्म लिया है। अमर सेनानियों का गौरवशाली इतिहास जहां हमें मातृभूमि के लिए, बलिदान का संदेश देता है। वही कर्तव्य परायता कि. सीख भी मिलती है। यहाँ अनेक जातियों में वीर हुए हैं। वीर सैनिक अदम्य साहस वतन की खातिर अपने प्राण न्योछावर करना, शरणागत की रक्षा के लिए शीश कटा सकते हैं लेकिन शीश झुका नहीं सकने वाले वीरों के इतिहास से पता चलता है कि वतन की रक्षा के लिए बचपन से ही घुट्टी पिलाई जाती है। गांवों में वीर सैनिकों के स्मारक यूहीं नही बने है मां भारती के लिए वतन पर जान देनेवाले जांबाज सैनिकों के बने है ,जो लोटकर घर नहीं आये ऐसे ही वीरता पूर्ण शहादत की कथाएं है वीर बहादुर कारगिल सैनिकों की है।
शहीद श्रवण सिंह शेखावत
आंतरी के कारगिल शहीद श्रवण सिंह शेखावत हमेशा फौज में जाने की बाते करता था जब 1995 में फौज में भर्ती हुए तो पिता ने यह कहकर भेजा था कि कभी पीठ मत दिखाना लेकिन पता नहीं था कि पिता की बात को अपने प्राण देकर पूरी करेंगा भारत, पाकिस्तान सेना के बीच हुए कारगिल युद्ध में 12 राजपूत रेजीमेण्ट के सेना मेडल विजेता सैनिक श्रवणसिंह शेखावत 24 साल की आयु में 4 मई 1999 को देश के लिए शहीद हो गये । आंतरी गांव में शहीद श्रवण सिंह शेखावत का स्मारक बना हुआ है और गांव में शहीद के नाम से स्कूल शहीद श्रवण सिंह शेखावत माध्यमिक विद्यालय में सैकड़ों बच्चे अध्ययनरत हैं।
शहीद सुरेंद्र सिंह शेखावत
हुडील गांव के देश में कारगिल युद्ध के समय 127 सैनिक मातृभूमि रक्षार्थ सीमा पर दुश्मन से लोहा ले रहे थे इस गांव के ठाकुर देवीसिंह के पुत्र सुरेंद्र सिंह खेलकुद व पढाई में होशियार थे। सुरेंद्र सिंह ने खेल प्रतियोगिता मैं शहीद उदम सिंह के नाटक का मंचन किया इस नाटक में उदम सिंह का शानदार किरदार निभाकर दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी। बाल्यावस्था में इस नाटक का उन
पर गहरा असर हुआ वे इससे प्रेरणा लेकर सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के समय सुरेंद्र सिंह की ड्यूटी कश्मीर के दराश क्षेत्र में भी जो कि भारत-पाक की सीमा पर है 3 मई 1999 में दोनों देशों में आर-पार की लड़ाई जारी थी। भारत पाक के मध्य जंग में सुरेंद्र सिंह अपने टैनपैरा कमांडो के साथ 7 जवानों के साथ टुकड़ी में थे। वहां पर टुकड़ी की सहायता मिलना असंभव था, परंतु देशभक्ति का जज्बा देश की रक्षा के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना अपने माता-पिता का नाम रोशन करने की अभिलाषा राजस्थान का शौर्य याद कर सुरेंद्र सिंह दुश्मनों के छक्के छुड़ाते रहे लेकिन अकेला सैनिक कब तक सैकड़ों सैनिकों से लड़ता । अंतिम समय में भी तीन दुश्मनों को धराशाई कर दिया, परंतु दुश्मन की गोलियों उनकी जांघों पर लगी जिससे 19 मई 1999 को सुरेंद्र सिंह शेखावत वतन की खातिर शहीद हो गया। शहीद होने के ट्रेड माह बाद 4 जुलाई 1999 को शहीद कमांडो का शव तिरंगे में लिपटे हुए सैनिक टुकड़ी के साथ हुडील पहुंचा तो चारों ओर सन्नाटा छा गया । आसपास के हजारों ग्रामीणों ने अंतिम यात्रा में शामिल होकर सच्ची श्रद्धाजलि दी।
शहीद श्योदाना राम बिजारणियां
लोसल के निकटवर्ती गांव हरिपुरा के श्योदाना राम बिजारणियां 28 अप्रैल 1991 को 17 जाट बटालियन में शामिल हुए थे। फौज में भर्ती होने के बाद भी श्योदाना राम ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और सेना में रहते हुए गणित विषय से स्नातक डिग्री हासिल की और सैन्य अधिकारी बनने हेतु जुट गए। इसी दौरान श्योदाना राम ने रॉकेट लॉचिंग विशेषज्ञता हासिल को दिसंबर 1997 में ऑपरेशन रक्षक में बेहतर प्रदर्शन कर चुके थे। कारगिल बुद्ध के समय श्योदाना राम अपनी यूनिट के साथ सात जुलाई 1999 को मौका पहाड़ी स्थित पाकिस्तानी घुसपैठियों का आसान निशाना होने पर भी दुर्गम चट्टानों को पार करते हुए इस जांबाज ने अपनी पलटन के साथ एक के बाद एक 15 घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन, जैसे ही वह सैनिक चौकी पर भारतीय झंडा फहराने की कोशिश कर रहे थे, इसी दौरान दुश्मन के एक आरडी बम के धमाके से स्योदाना राम शहीद हो गए। विगत 3- 4 वर्षों से हरिपुरा विकास समिति के युवाओं के द्वारा शहीद स्वोदाना राम की शहादत पर वृक्षारोपण रक्त दान शिविर कार्यक्रम करवाया जा रहा है साथ ही राज्य सरकार द्वारा शहीद श्योदानाराम राजकीय प्राथमिक विद्यालय आंका की तलाई, हरिपुरा भी संचालित है।
शहीद सीताराम कुमावत
पलसाना निवासी विदुराम कुमावत के पुत्र कारगिल शहीद सीताराम कुमावत को बचपन से ही बास्केटबॉल से दीवानगी की हद तक प्यार था, इसी की बदौलत जब खेल कोटे से सेना में भर्ती हुए तो कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ बास्केटबॉल के खेल में सीखे हुए मल्टीपल थ्रो के द्वारा दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए शहीद सीताराम कुमावत 18 ग्रेनेडियर कि अपनी टीम के साथ दास सेक्टर में दुश्मनों की तीन चौकियों को तबाह किया और चौथी चौकी को तबाह करने के लिए आगे बढ़ा ही रहे थे कि दुश्मन द्वारा दागी गई मिसाइल का शिकार होकर 13 जून 1999 को शहीद हो गए।