सूरजगढ़ [कृष्ण कुमार गाँधी ] पेट की आग क्या से क्या करवा दे यह कहना मुश्किल है जो उम्र पढऩे व खेलने खाने की होती है उसी उम्र में गरीब परिवारों के बच्चे अपने व परिवार का पेट भरने के लिए जान हथेली पर रखकर जाबांज कारनामें करने को मजबुर होते है। सोमवार को कस्बे के मंडी में एक दस साल की बच्ची अपने मां बाप के साथ दो वक्त का भोजन जुटाने के लिए जानलेवा हैरत अंगेज कारनामें कर रही थी जहां पर तमाशबीनों की भीड़ लगी हुई थी। लडक़ी करीब पन्द्रह फिट उंचे दो बांस पे बंधी रस्सी पर बिना किसी सहारे के जान हथेली पर रखकर चल रही थी लडक़ी का ध्यान और संयम देखकर दर्शक दांतों तले उंगली दबा रहे थे इस कला में कलाकार का ध्यान भंग होने का मतलब है गिरते ही जान से हाथ धोना। इतनी जोरदार कला दिखाने के बाद भी वह लडक़ी करतब खत्म होने के बाद लोगों से याचक बनकर अपनी कला की कीमत भीख के रूप में मांग रही थी। लडक़ी की कला को देखकर भीड़ में बाते हो रही थी सरकार को ऐसे कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए कुछ सहायता मुहैया करवानी चाहिए।