चिकित्साताजा खबरसीकर

सीकर में विश्व दमा दिवस की पूर्व संध्या पर संवाददाता सम्मेलन

 

विश्व दमा दिवस की पूर्व संध्या पर शहर के चिकित्सकगण एक साथ एकत्रित होकर जनता को दमा (अस्थमा) का पता लगाने तथा इसके नियंत्रणकारी उपचार के विषय में जागरुक करने के लिये आगे आये हैं। दमा के जिन रोगियों का सही उपचार नहीं होता, उनमें दमा के आक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है और अक्सर उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है। कभी-कभी यह जानलेवा भी साबित होता है। यदि दमा के उपचार में आवश्यक दिशा-निर्देशों का पालन किया जाये तो दमा को नियंत्रित करने की कीमत में काफी कमी लाई जा सकती है। इससे मरीज और सरकार दोनों को फायदा होता है। सर्वाधिक प्रभावी दमा उपचार इनहेलेशन थेरेपी है, जो भारत में 4 से 6 रुपये प्रतिदिन की निम्न कीमत में उपलब्ध है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस दवा का वर्ष भर का खर्चा अस्पताल में एक रात्रि के भर्ती से भी कम है। सिपला की एक जन सेवा पहल ब्रीदफ्री द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुये डॉक्टरों ने यह कहा कि भारत में दमा को लेकर जागरुकता का घोर अभाव है और इसे शुरुआती चरण में पता लगाना संभव नहीं हो पाता। इस देश के 30 मिलियन दमा रोगियों में से अधिकांश इससे अनभिज्ञ हैं एवं उनके रोग का ठीक से पता नहीं चल पाया है और उनके उपचार का स्तर भी काफी निम्न है। इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया है कि दमा के उपचार की निरंतरता भी बहुत निम्नस्तरीय है और यह बच्चों तथा वयस्कों दोनों में ही कुछ माह के बाद उभर कर आ जाताहै तथा इसके नॉन-ऐडहरेंस की दर लगभग 70 प्रतिशत अनुमानित की गई है। भारत में दमा के वर्तमान परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुये डॉ. देवेन्द्र दाधिच एव डॉ. मनीष अग्रवाल ने कहा, ’’दमा एक असाध्य रोग है, जिसमें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। अधिकांश रोगी जब दवा के सेवन से बेहतर महसूस करने लगते हैं, तब वे कुछ सप्ताह के उपरान्त ही उपचार बंद कर देते हैं। इससे रोग की पुनरावृत्ति का खतरा बढ़ जाता है और रोगी दमा के अटैक से ग्रस्त हो सकता है। रोगियों द्वारा दवा बंद कर देने के अनेक कारण होते हैं, इसमें साइड इफेक्ट्स का अनावश्यक भय, इनहेलर उपकरणों के विषय में भ्रांतियां, सामाजिक लज्जा एवं कभी-कभी दवा की कीमत शामिल है। इसके अतिरिक्त इसमें अनेक शारीरिक बाध्यताओं का भी सामना करना पड़ता है, जो चिकित्सा पेशेवरों के प्रति असंतुष्टि, अनुचित उम्मीदों, व्यक्ति की स्थिति को लेकर क्रोध, रोग की स्थिति की गंभीरता को लेकर बेखबरी और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही जैसे निषेधों को जन्म देती हैं। इस प्रकार यदि हम दमा को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो हमें इनहेलेशन थेरेपी और इसके प्रति समझ की महत्ता को तरजीह देनी पड़ेगी और इस रोग से संबंधित बाधाओं पर विजय प्राप्त करनी होगी। उन्होंने आगे कहा, दमा का शुरुआती चरण में पता लगाना बहुत महत्वपूर्ण है, इससे फेफड़े की स्थिति को नियंत्रित रखने में सहायता मिलती है। दमा को सामान्यतया खांसी, सीने में जकडऩ एवं सांसों की घरघराहट जैसे लक्षणों से पकड़ा जा सकता है, लेकिन दमा की सही जानकारी के लिये महत्वपूर्ण है कि इन लक्षणों को लेकर यथाशीघ्र चिकित्सक से संपर्क कर इसका पता लगाया जाये। पीकफ्लो मीटर जैसे सरल उपकरण दमा का पता लगाने तथा इस पर निगरानी रखने के लिये उपलब्ध हंै। वर्तमान समय में परामर्शित उपचारों के इस्तेमाल से दमा पर पूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है और दमे से पीडि़त रोगी पूरी तरह से एक सक्रिय जीवन जी सकते हैं।

 

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