मंडावा व खींवसर उप चुनाव के संदर्भ में
एक बार फिर से वंशवाद की चपेट में चुनाव
वंशवाद का ग्रहण लोकतंत्र पर जारी
झुंझुनू , आजादी के बाद से जब से लोकतंत्र की शुरुआत हुई तो आमजन को लगा कि अब वंशवाद या परिवारवाद का अंत होगा। अब राजा मां के पेट से जन्म नहीं लेगा कम से कम अब तो हमारी प्रतिनिधि हम में से ही चुना जाएगा या हम में से ही बनेगा पर तरीके बदले मुखोटे बदले वंशवाद आज भी हावी है। वर्तमान में बात राजस्थान की करे तो खींवसर मंडावा दोनों जगह के विधायक सांसद बन गये। दोनों पहली बार ही सांसद बने और दोनों जगह की उपचुनाव की तारीख निश्चित हो गई। दोनों जगह ही भाजपा या भाजपा के सहयोगी दल रालोपा के विधायक को सीट छोड़नी पड़ी है और खींवसर से गठबंधन का उम्मीदवार होगा सांसद हनुमान बेनीवाल का छोटा भाई नारायण बेनीवाल और मंडावा से नरेंद्र कुमार के पुत्र अतुल कुमार खीचड़ । जिस पार्टी ने स्थापना के साथ ही वंशवाद जातिवाद का विरोध किया। यह हाल उस पार्टी का है जो भाजपा एक भारत अखंड भारत का नारा दे रही है। उस भाजपा की यह भी हिम्मत नहीं हो रही है कि कंडीडेट बदल सके या किसी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ा सकें। बिना यह देखे कि वह कार्यकर्ता किस जाति से आता है और किसका बेटा है । भाजपा ने अपने सिद्धांतों को तिलांजलि देकर शायद दोनों टिकटे दी हैं श्याम प्रसाद मुखर्जी या पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पार्टी भी कांग्रेस, सपा, राजद ,बसपा जैसे दलों की तरह ही चल रही है। आज तो पूरे देश में भाजपा का परचम लहरा रहा है फिर भी ऐसी क्या मजबूरी थी अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़ा। यह देखकर हर कार्यकर्ता हताश है वो क्यों पार्टी की सेवा करेगा। अच्छा इस उपचुनाव में भाजपा ही नहीं वंशवाद के जहर से बर्बाद हुई कांग्रेस भी सुधरने को तैयार नहीं है। भाजपा ने भी दोनों जगह जातिवाद और वंशवाद के आधार पर ही टिकट देने की ठान रखी। क्योंकि खींवसर से भाजपा गठबंधन रालोपा का उम्मीदवार जाति से जाट है और हनुमान बेनीवाल का भाई है तो कांग्रेस ने भी उम्मीदवार तय करते समय सबसे पहले जाति का ध्यान रखा और जाट उम्मीदवार ही उतारा है। और मिर्धा परिवार के कद्दावर नेता रहे रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेंद्र मिर्धा की उम्मीदवारी तय है। इसी तरह मंडावा में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे रामनारायण चौधरी की बेटी रीटा चौधरी को ही हरी झंडी देखी है। जो कि पहले 2 चुनाव लगातार हार चुकी हैं तथा जो चुनाव उन्होंने जीता है वह भी 405 वोट से। पर कांग्रेस में फिर वंशवाद-जातिवाद हावी है। और रही सही कसर पूरी करने की भाजपा ने सोच रखी है भाजपा भी वही जातिवाद और वंशवाद के फार्मूले में ही टिकट देना चाहती है और लगभग अतुल कुमार खीचड़ को तय कर रखा है। भाजपा ने भी संगठन को दरकिनार कर दिया है। कार्यकर्ता उपेक्षा का शिकार है जो भाजपाई पिछले कई दिनों से भाजपा की टिकट की दावेदारी कर रहे थे। वे क्या चुपचाप उम्मीदवार के साथ हो जाएंगे या पिछले चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार रीटा चौधरी को कांग्रेस के प्रधान व जिला परिषद सदस्य ने चुनाव हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वैसे ही भूमिका ये नो भाजपाई भी भाजपा के अंदर रहकर निभा सकते हैं।