झुंझुनूं के राजकीय भगवानदास खेतान अस्पताल में पार्किंग,लापरवाही,चोरी,अभद्रता की घटना कोई नई बात नहीं है। ऐसी घटनाएं कोई नई बातों में शुमार नहीं है जिला मुख्यालय पर स्थापित जिले के सबसे बड़े अस्पताल में मरीजों व मरीज के परिजनों के मोबाइल चोरी होते रहते है तो कभी सरकारी अस्पताल की बेडसीट, बीडीके अस्पताल से कई बार मोटरसाइकिल, स्कूटी गायब होने की भी कई घटनाएं घटित हो चुकी है। लेकिन इसकी जिम्मेदारी में अस्पताल प्रशासन रहा है नाकाम। राजकीय अस्पताल के नर्सिंग कर्मी व डॉ.अपने वाहन अवश्य अपनी निगरानी के अलावा रखतें है सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में अपने कमरों के बाहर।
बीती रात झुंझुनूं बगड़ रोड़ पर बीहड़ में अंधेरे में खड़े ट्रोले में राजस्थान रोड़वेज की बस ट्रोले के अंदर 10 फीट तक जा घुसी जिससे दो दर्जन के आसपास यात्रियों को चोटें आई जिसमें से चार को जयपुर रैफर किया गया। जिसमें बस के परिचालक ने दम तोड़ दिया। दुर्घटना में घायल यात्रियों को जब सरकारी अस्पताल में लाया गया तो वहां वार्ड तक जाने में घायल यात्रियों के परिजनों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा कारण रहा राजकीय अस्पताल के नर्सिंग कर्मियों व अन्य स्टाफ की स्कूटी,मोटरसाइकिल अस्पताल परिसर में बने हुए पार्किंग स्थल की बजाय वार्ड में जाने वाले रास्तों के बीच खड़ी थी, हालांकि इस तरह की घटनाएं राजकीय भगवान दास खेतान के लिए नया कारनामा व चर्चा का विषय नहीं है, ऐसी घटनाएं आम बात है खेतान अस्पताल के लिए। क्योंकि जिले का सबसे बड़ा अस्पताल राज्यस्तरीय कायाकल्प योजना में प्रथम रहने के साथ सहित कई अवार्ड प्राप्त कर चुका है। राजकीय भगवान दास खेतान अस्पताल में डॉक्टरों की डॉक्टरी के अलावा नेतागिरी भी कुछ कम नहीं है। यह उनके रोजमर्रा के कार्यों में शुमार है। डॉक्टर्स भी पार्किंग व्यवस्था होने के बावजूद अपने वाहन पार्किंग में ना खड़े करके सरेराह बेतरतीब बर्न और ट्रॉमा वार्ड को जाने वाले रास्ते को हमेशा रोके रखते है। अपने वाहनों को अवैध पार्किंग करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानने लगें है। हालांकि इस बाबत अभी तक अस्पताल प्रशासन कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है लेकिन जिले के संवेदनशील जिला कलेक्टर रवि जैन ने भी राजकीय अस्पताल का औचक निरीक्षण कर वहां बहुत सी खामियां नजर आई जिनको दुरुस्त करने के लिए आदेश भी दिए गए लेकिन क्या कनेक्शन है कि खेतान अस्पताल के डॉक्टरों व चिकित्सा कर्मियों का की वे सुधरने की कोशिश ही नहीं करतें। फ़िल्म अभिनेता असरानी की फिल्म ‘हम नहीं सुधरेंगे’ के नाम को चरितार्थ करते हुए यह कहना चाहते हैं कि हम नहीं सुधरेंगे, हम है यहां के राजकुमार। देखना यह है कि व्यवस्था सुधारने के लिए जिला कलेक्टर क्या कदम उठाते हैं। वही यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि कई डॉक्टर अस्पताल में कम अपने घर पर पेशेंट को देखने में ज्यादा रूचि लेते है।