झुंझुनूलेख

स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला बलिदानी क्रांतिकारी प्रीतिलता वाद्देदार

5 मई/ जयंती विशेष।।।।।।लेखक – धर्मपाल गाँधी

झुंझुनू, प्रीतिलता वाद्देदार देश की आजादी के लिए अल्पायु में अपने प्राणों आहुति देने वाली क्रांतिकारी थीं। वह स्वतंत्रता संग्राम में शहादत देने वाली प्रथम महिला थीं। अपनी पढ़ाई के दौरान वह एक प्रतिभावान छात्रा थीं। प्रीतिलता ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की थी। ‘चटगाँव शस्त्रागार काण्ड’ की घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्रांतिकारी मास्टर सूर्य सेन के दल की सदस्यता ले ली थी। 24 सितम्बर 1932 को प्रीतिलता वाद्देदार ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर यूरोपीय क्लब पर हमला किया था। ब्रिटिश शासन काल के दौरान बंगाल के चटगाँव में एक यूरोपियन क्लब था, उसके बाहर लिखा था- ‘डॉग्स एंड इंडियंस नॉट अलाउड’, यानी कुत्तों और भारतीयों की एंट्री नहीं है। इस यूरोपियन क्लब को क्रांतिकारी प्रीतिलता वाद्देदार ने बम से तबाह कर दिया था। अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की अमर मिसाल प्रीतिलता वाद्देदार ने मात्र 21 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिसमें देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अदम्य साहस, वीरता, धैर्य और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। ऐसे कुछ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में स्थान दिया गया, जबकि अधिकतर को उचित पहचान नहीं मिल सकी। जिसके कारण मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानी भी गुमनामी में चले गये। ऐसा ही एक नाम है, स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला बलिदानी प्रीतिलता वाद्देदार।

भारतीय स्वतंत्रता संगाम की महान क्रांतिकारी प्रीतिलता वाद्देदार का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (अब बांग्लादेश) में स्थित चटगाँव के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जगबंधु वाद्देदार और माता का नाम प्रतिभा देवी था। उनके पिता नगरपालिका में क्लर्क थे। उन्होंने सन् 1927 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। इसके बाद सन् 1929 में उन्होंने ढ़ाका के इडेन कॉलेज में प्रवेश लिया और इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं। दो वर्ष बाद प्रीतिलता ने कलकत्ता के बेथ्यून कॉलेज से दर्शनशास्त्र से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से कलकत्ता विश्वविद्यालय के ब्रितानी अधिकारियों ने उनकी डिग्री को रोक दिया। उन्हें 80 वर्ष बाद मरणोपरान्त यह डिग्री प्रदान की गयी। 2012 में प्रीतिलता और क्रांतिकारी बीना दास को मरणोपरांत उनके योग्यता प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया।

प्रीतिलता ने 10 साल की उम्र में स्कूल में दाखिला लिया था। इससे पहले उनके माता-पिता घर पर ही उन्हें पढ़ाया करते थे। आय कम होने के कारण परिवार का मुश्किल से गुजारा चलता था। भले ही परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, लेकिन जगबंधु वाद्देदार ने अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दी। वह अक्सर बेटी प्रीतिलता से कहते थे, “मेरी उम्मीदें तुमसे जुड़ी हुई हैं”। प्रीतिलता ने पहली बार चटगाँव के खस्तागीर बालिका विद्यालय में एक छात्रा के तौर पर अपनी विलक्षण बुद्धि का प्रदर्शन किया था। वह एक मेधावी छात्रा थीं। वह बचपन से ही न्याय के लिए निर्भीक विरोध के लिए तत्पर रहती थी। स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने शिक्षा विभाग के एक आदेश के विरुद्ध दूसरी लडकियों के साथ मिलकर विरोध किया था। इसीलिए उन सभी लडकियों को स्कूल से निकाल दिया गया। प्रीतिलता जब क्रांतिकारी सूर्यसेन से मिली, तब वे अज्ञातवास में थे। उनका एक साथी रामकृष्ण विश्वास कलकत्ता के अलीपुर जेल में था। उनको फाँसी की सज़ा सुनाई गयी थी। उनसे मिलना आसान नहीं था। लेकिन प्रीतिलता उनसे कारागार में लगभग चालीस बार मिली और किसी अधिकारी को उन पर संशय भी नहीं हुआ। यह था, उनकी बुद्धिमत्ता और बहादुरी का प्रमाण। इसके बाद वे सूर्यसेन के क्रांतिकारी संगठन इंडियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनिक के रूप में शामिल हो गई। मास्टर सूर्य सेन जब कॉलेज में थे, तभी से देश की आजादी के लिए काम करने लगे थे। उन्होंने ग्रेजुएशन करने के बाद अध्यापक की नौकरी भी की। किन्तु, ज्यादा दिनों तक नौकरी नहीं कर सके बल्कि चित्तरंजन दास, शरतचंद्र बोस सरीखे स्वाधीनता सेनानियों के साथ काम करने लगे। लेकिन, तब तक वह गुमनाम ही थे। वह सुर्खियों में तब आए, जब ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के चलते उन्हें 1926 में गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उन्हें रिहा किया गया। रिहाई के दौरान ही पहली बार प्रीतिलता ने सूर्य सेन को देखा और उनसे प्रभावित होकर वह भी देश की आजादी में आहुति देने की तैयारी करने लगीं। प्रीतिलता ने आंदोलनों से जुड़े साहित्य इकट्ठा करना शुरू किया। वह पढ़ाई के साथ ही चुपके-चुपके क्रांतिकारी गतिविधियों में भी हिस्सा लेने लगीं। सूर्य सेन ने प्रीतिलता पर गहरा प्रभाव डाला था, जिसका रंग दिनों-दिन गहराता जा रहा था। वह जब स्नातक की डिग्री के लिए कलकत्ता के बेथ्यून कॉलेज में पहुंचीं, तो उनकी गतिविधियां और बढ़ गईं। कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने अलीपुर जेल में बंद स्वाधीनता सेनानी रामकृष्ण विश्वास से कई बार मुलाकात हुई। इन मुलाकातों ने उन्हें भी हथियारबंद आंदोलन की ओर प्रेरित किया। प्रीतिलता चोरी-छिपे चटगाँव के क्रांतिकारियों को कलकत्ता से हथियार भेजने लगीं। स्नातक के बाद चटगाँव में ही उन्हें टीचर की नौकरी मिली, तो यह उनके लिए मांगी मुराद पूरी होने जैसा था। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम स्कूल नंदनकानन अपर्णाचरण माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक की नौकरी की और क्रांतिकारी गतिविधियों में निरंतर सक्रिय रहीं। मास्टर दा सूर्य सेन को प्रीतिलता ने बस देखा भर था। कभी मुलाकात नहीं हुई थी। चूंकि वह (प्रीतिलता) भी चोरी-छिपे आंदोलन में शामिल थीं और बाद में चटगाँव भी लौट आई, तो सूर्य सेन गाहे-ब-गाहे उनका नाम सुना करते थे, लेकिन उन्हें अपने दल में शामिल करने के पक्ष में नहीं थे। हालांकि, जब सूर्य सेन को देश के प्रति प्रीतिलता के समर्पण का अहसास हुआ, तो उन्होंने उन्हें अपने दल में शामिल कर लिया। प्रीतिलता के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने कई दफे अंग्रेजों पर हमले किये और कामयाबी हासिल की। एकबार पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रांतिकारियों को पुलिस ने घेर लिया था। घिरे हुए क्रांतिकारियों में अपूर्व सेन, निर्मल सेन, प्रीतिलता और सूर्य सेन आदि कई क्रांतिकारी शामिल थे। सूर्य सेन ने लड़ाई करने का आदेश दिया। दोनों तरफ की गोलाबारी में क्रांतिकारी अपूर्व सेन और निर्मल सेन शहीद हो गये। सूर्य सेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया। खतरे को भांपते हुए सूर्य सेन और प्रीतिलता लड़ते-लड़ते भाग गये। क्रांतिकारी सूर्य सेन पर 10 हजार रूपये का इनाम घोषित था। दोनों क्रांतिकारी एक सावित्री नाम की गरीब महिला के घर गुप्त रूप से रहे। वह महिला क्रांतिकारियों को आश्रय देने के कारण अंग्रेजों का कोपभाजन बनीं। सूर्य सेन ने अपने साथियों का बदला लेने की योजना बनाई। योजना यह थी की पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच-गाने में मग्न अंग्रेजों को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया जाये। प्रीतिलता वाद्देदार के नेतृत्त्व में कुछ क्रांतिकारी वहाँ पहुंचे। 24 सितम्बर 1932 की रात इस काम के लिए निश्चित की गयी थी। हथियारों से लैस प्रीतिलता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था। पूरी तैयारी के साथ वह क्लब पहुंची। बाहर से खिड़की में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कांपने लगी। नाच-रंग के वातावरण में एकाएक चीखें सुनाई देने लगीं। 13 अंग्रेज़ जख्मी हो गये और बाकी भाग गये। इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी। थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी। गोली लगने से प्रीतिलता घायल हो गईं। उन्होंने अपने साथियों को वहां से बच निकलने को कहा। वे स्वयं भी घायल अवस्था में भागीं, लेकिन घायल होने की वजह से गिर गई और गिरफ्तारी से बचने के लिए पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। प्रीतिलता वाद्देदार के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों को तलाशी लेने पर जो पत्र मिले, उनमें एक छपा हुआ पत्र था। इस पत्र में छपा था कि- “चटगाँव शस्त्रागार काण्ड के बाद जो मार्ग अपनाया जायेगा, वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगा”।​

मास्टर सूर्य सेन ने इस घटना को लेकर बताया, “मैं आत्महत्या में विश्वास नहीं करता। लेकिन जब वह अंतिम विदाई लेने आईं तो उन्होंने मुझसे जबरन पोटैशियम सायनाइड ले लिया। वह बहुत जल्दबाजी में थीं और युद्ध के दौरान फँस जाने की स्थिति में इसकी आवश्यकता के बारे में अच्छे तर्क कर रही थीं। मैं उसके आगे टिक नहीं सका। मैंने उसे पोटेशियम सायनाइड दे दिया।”

अपने बलिदान के जरिये प्रीतिलता वाद्देदार ने बंगाल की महिलाओं को संदेश दिया कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती हैं। उनकी क्रांतिकारी सहयोगी कल्पना दत्त अपनी किताब में बताती हैं कि कैसे प्रीतिलता वाद्देदार के बलिदान के कारण उनके माता-पिता तबाह हो गये थे। वह लिखतीं हैं कि “चटगाँव के लोग प्रीतिलता या उनके महान बलिदान को नहीं भूले हैं। वे उनके पिता की ओर इशारा कर किसी भी अजनबी को बताते हैं- ये उस पहली लड़की के पिता हैं, जिसने हमारे देश की आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।”
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों के साथ कई महिला क्रांतिकारियों ने भी देश की आजादी के लिए बंदूक उठाई थी। क्रांतिकारी प्रीतिलता वाद्देदार भी ऐसी ही महान क्रांतिकारी थी, जिन्होंने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया और देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।

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