श्रीराम मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन रविवार को संत प्रह्लाद महाराज ने कहा कि सच्चा मित्र वही है जो संकट में काम आए। संत ने कृष्ण व सुदामा चरित्र पर चर्चा करते हुए कहा कि सुदामा कान्हा के बाल सखा थे। सुदामा गरीब थे लेकिन वे भगवान के परम भक्त थे इसलिए उन्हें आभाव में भक्ति भाव नजर आते थे। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण और सुदामा की तुलना की जाए तो उसमें अन्तर नजर आता है लेकिन यह बाह्य अंतर है लेकिन अन्तरंगता में समानता है। एक अवतार है तो दूसरे भक्त है। भक्त है तो भगवान है जो विविध रूप में संसार में आते है। किसी के पिता, भाई तो किसी के मित्र बनकर कृष्ण मानवीय मूल्यों की स्थापना और मर्यादि जीवन जीने की सीख देते हैं। उन्होंने कहा कि जब सुदामा की पत्नी ने कृष्ण से मिलने पर जोर दिया और वे मान भी गए लेकिन उनके मन में शंका हो गई पता नहीं कृष्ण उन्हें मिलेंगे या नहीं। इसी असंमजसता के स्थिति में द्वारिका पहुंच गए और उन्होंने कृष्ण का घर पूछा तो बताने वाले भी उनकी दशा देखकर आश्चर्यचकित रह गए लेकिन सुदाम तो केवल कृष्ण की रट लगाए चलते जा रहे थे। ज्योंही उनके महल में पहुंचे तो द्वारपालों ने कृष्ण को सुदामा के मिलने की खबर तो वे पैदल ही भागते हुए पुकारने लगे कहा है मेरा मित्र सुदामा। उन्होंने कहा कि इससे भगवान ने मानव समाज को सीख दी कि चाहे कोई कितना बड़ा हो जाए लेकिन मित्रधर्म को बखुबी निभाना चाहिए। कथा संपन्न होने के बाद श्रीराम मंदिर से शोभायात्रा निकाली गई। मंदिर से शुरू हुई शोभायात्रा गोपालजी के मंदिर पहुंचकर विसर्जित हुई।