दांतारामगढ़ कस्बे के राधेश्याम कुमावत को
दांतारामगढ़(प्रदीप सैनी) अकेला ही चला था जानिबे मंजिल, लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया। इस शेर को चरितार्थ कर रहा है दांतारामगढ़ का एक युवक। हालांकि डेढ़ माह बाद भी युवक के साथ अभी कारवां नहीं जुटा है लेकिन इसके बावजूद वह अकेला ही मंजिल की ओर बढ़ रहा हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं दांतारामगढ़ के एक ऐसे युवक की जिसे श्मशान घाट में श्रमदान का जुनून चढ़ा हुआ हैं। उक्त युवक करीब डेढ़ महीने से प्रतिदिन 4 से 5 घंटे श्मशान भूमि पर श्रमदान कर साफ-सफाई कर रहा हैं। दांतारामगढ़ कस्बे का राधेश्याम कुमावत प्रतिदिन सुबह 6 बजे से लेकर 8 बजे तक तथा शाम को करीब 4 बजे से लेकर 7 बजे तक अणतपुरा रोड स्थित श्मशान भूमि में श्रमदान कर रहा हैं। राधेश्याम कुमावत अकेला ही इस सफाई अभियान में जुटा हैं। कभी-कभार उसके साथी भी उसके साथ आते हैं लेकिन उसकी यह नियमित दिनचर्या बनी हुई हैं। कुमावत सुबह 6 बजे श्मशान भूमि पर पहुंच जाते हैं और पेड़ों में पानी डालने के साथ ही साफ-सफाई का कार्य कर रहे हैं। यही क्रम उनका शाम को रहता हैं। राधेश्याम कुमावत ने बताया कि वह अकेला ही इस अभियान में जुटा है कभी-कभी उसके साथी उनके साथ श्रमदान करते हैं। कुमावत ने बताया कि उसका मुख्य ध्येय यह है कि जिस श्मशान भूमि में वह साफ-सफाई में जुटे हैं वह श्मशान भूमि दांतारामगढ़ क्षेत्र में देखने लायक बने और वह श्मशान घाट न होकर गार्डन के रूप में विकसित हो ताकि लोग वहां घूमने के लिए आए। उन्होंने बताया कि मानव का अंतिम पड़ाव यही है तो इसको साफ सुथरा व गार्डन के रूप में विकसित करना उनका उद्देश्य है और वे ऐसा करके ही दम लेंगे।