झुंझुनू के तीन जिला कलेक्टर के सामने उठा जाँच का मुद्दा, नतीजा वही ढाक के तीन पात
अब आरटीआई आवेदन पत्र की गोपनीयता भंग होने का मामला पंहुचा प्रदेश स्तर पर
झुंझुनू, लोक सूचना अधिकारी, जिला कलेक्टर झुंझुनू के समक्ष लगाए गए एक आरटीआई आवेदन पत्र की गोपनीयता भंग होने की जांच में शिथिलता एवं अनियमिता का मामला अब प्रदेश स्तर के शासक एवं प्रशासकों तक पहुंच चुका है क्योकि तीन अलग अलग झुंझुनू के जिला कलेक्टर को इसके बारे में अवगत करवाने पर कोई विशेष प्रगति देखने को नहीं मिली। हालांकि तत्कालीन जिला कलेक्टर बचनेश कुमार अग्रवाल द्वारा इस मामले को लेकर शुरूआती तौर पर कुछ एक्शन देखने को जरूर मिला था जिसमे परिवादी को भी पत्र भेजकर सूचना दी गई थी। उसके बाद विधान सभा चुनाव की व्यस्तता या अन्य कोई कारण कुछ भी रहे हो वह भी इस पूरे मामले को अंजाम तक नहीं पंहुचा सके। तत्कालीन कलेक्टर डॉ खुशाल यादव के समय से यह मामला चलता आ रहा है इसमें यदि यह भी कहे कि कलेक्टर डॉ खुशाल यादव ने इस मामले पर संजीदगी नहीं दिखाते हुए पर्दा डालने का ही काम किया तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। वही वर्तमान जिला कलेक्टर को भी इस पूरे मामले से अवगत करवाने पर भी अभी तक कोई हलचल देखने को नहीं मिली जिसके चलते मन में संशय पैदा होना भी स्वभाविक है। हम बात कर रहे है पत्रकार नीरज कुमार सैनी द्वारा लोक सूचना अधिकारी, जिला कलेक्टर झुंझुनू से आरटीआई कानून के अंतर्गत सूचना मांगने से जुड़े मामले की जिसके आवेदन के कुछ दिन बाद ही सोशल मीडिया के व्हाट्सएप ग्रुप में मूल आवेदन की फोटो खींचकर वायरल कर दिया गया था तथा उसके साथ-साथ पत्रकार सैनी के खिलाफ अशोभनीय बातें लिखी गई थी और उन पर लगातार दबाव बनाकर प्रताड़ित करने का प्रयास किया गया था। इस पूरे मामले को लेकर तत्कालीन जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया था जिसकी प्रति मुख्य न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय खंडपीठ जयपुर, सूचना आयुक्त सूचना आयोग जयपुर, मुख्य सचिव राजस्थान सरकार जयपुर, प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली, केंद्रीय सूचना आयुक्त केंद्रीय सूचना आयोग नई दिल्ली, जिला पुलिस अधीक्षक झुंझुनू को भी भेजी गई थी। जिसके चलते झुंझुनू जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा इसकी कंप्लेंट कोतवाली में दर्ज करवाई गई। वहीं जिला कलेक्टर द्वारा 10 /8 /2023 को जांच उपखंड अधिकारी झुंझुनू को सौंपी गई थी लेकिन इस मामले में उस समय कोई कार्रवाई नहीं होने पर समय-समय पर पुनः तत्कालीन झुंझुनू जिला कलेक्टर्स को ज्ञापन दिए गए थे। साथ ही 20 /10 /2023 को तत्कालीन जिला कलेक्टर बचनेश कुमार अग्रवाल के द्वारा पत्रकार सैनी को पत्र भेजा गया था जिसमें एक बार पुनः उपखण्ड अधिकारी झुंझुनू को इस मामले की जांच की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए लिखा गया था। इस मामले में अभी तक जांच में क्या प्रगति हुई है इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई गई है। वहीं वर्तमान में झुंझुनू जिला कलेक्टर को भी ज्ञापन सौंप कर प्रकरण से अवगत करवा दिया गया है लेकिन अभी तक इस कार्य में कोई प्रगति देखने को नहीं मिली है। आखिर क्या मजबूरी है कि झुंझुनू के तीन जिला कलेक्टर इस मामले से मुखातिब हो गए पर जाँच है की आगे बढ़ती ही नहीं है। जांच कहीं पर रुकी तो इसे गति प्रदान कर संपूर्ण मामले की निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। तत्कालीन सरकार के समय में इस मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया गया था। इस मामले से जुड़े हुए लोग झुंझुनू के प्रशासन से भी संबंध रखते हैं और उस समय पुलिस जांच को भी इन्होंने प्रभावित किया गया था।
झूठ का पुलिंदा साबित हुई पुलिस जाँच
झुंझुनू कोतवाली पुलिस ने इस मामले में जो जाँच रिपोर्ट बनाई वह महज प्रशासन में बैठे हुए एवं आवेदन को वायरल करने वाले लोगो को बचाने में झूठ का पुलिंदा ही साबित हुई है। इसकी प्रगति जानने का प्रयास पत्रकार सैनी द्वारा किया गया लेकिन सैनी को उस समय कोतवाली पुलिस ने कोई जानकारी देने से मना कर दिया गया। जिसके चलते इसको लेकर भी आरटीआई के अंतर्गत आवेदन किया गया लेकिन इसमें भी जानकारी नहीं मिलने पर क्रमश : प्रथम अपील और सूचना आयोग में जब द्वितीय अपील लगाई गई तब इस दौरान लोक सूचना अधिकारी जानकारी भेजी गई। पुलिस जांच में वास्तविक तथ्यों को अनदेखा करके झूठी जांच रिपोर्ट तैयार की गई है क्योंकि आरटीआई के जिस मूल आवेदन को सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था उसकी फोटो और कोतवाली पुलिस में आरोपियों द्वारा प्रस्तुत की गई आरटीआई आवेदन की कॉपी जिसको आरटीआई से ही प्राप्त करना बताया गया। उन दोनों के मिलान करने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। लेकिन पुलिस ने भी जानबुझकर इसको अनदेखा किया। आरटीआई आवेदन को वायरल पहले किया गया था और इन लोगों ने अपने बचाव के लिए जल्दबाजी में आरटीआई के अंतर्गत वह कॉपी प्राप्त करना दिखाया गया था। क्योकि इस आरटीआई की जानकारी जो मांगी गई थी वह सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी झुंझुनू से भी जुडी हुई थी और मजे की बात देखिये इन्ही अधिकारी द्वारा वायरल करने वाले लोगो को आरटीआई के अंतर्गत आवेदन की कॉपी उपलब्ध करवा दी गई पुलिस को देने के लिए। लेकिन वायरल किये गए आवेदन और इनके द्वारा प्रस्तुत किये गए आवेदन की दोनों फोटो का मिलान करने पर नॉन मैट्रिक व्यक्ति भी फरियादी को न्याय प्रदान कर सकता है लेकिन झुंझुनू का प्रशासन और पुलिस अभी तक नाकाम साबित हुए है। इसमें सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह यह भी है कि आरटीआई के आवेदन कर्ता को तो जानकारी नहीं दी जाती है उससे पहले ही किसी तृतीय पक्ष को यह कॉपी उपलब्ध करवा दी जाती है कि आरटीआई कार्यकर्ता ने इसमें क्या जानकारी मांगी है। वही आरटीआई की गोपनीयता भंग होने पर पत्रकार को प्रताड़ित करने से भी यह मामला जुड़ा हुआ है। इस पूरे मामले की पुलिस एवं प्रशासनिक स्तर पर शीघ्र निष्पक्ष जांच करवा कर आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए । इस पूरे आरटीआई से जुड़े मामले में सैनी को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया गया और धमकियां भी अप्रत्यक्ष रूप से इन लोगों द्वारा दी गई । सैनी ने ज्ञापन में भी बता दिया था कि उनको इस मामले में किसी भी प्रकार की शारीरिक और या मान सम्मान में कोई क्षति पहुंचती है तो सीधे-सीधे झुंझुनू जिला प्रशासन इसका जिम्मेदार होगा।
नॉन मेट्रिक व्यक्ति भी दस्तावेज देख कर सकता है दूध का दूध और पानी का पानी
फिर फिर प्रशासन क्यों बन बैठा धृतराष्ट्र ?
एक तरफ इस आरटीआई की गोपनीयता भंग होने से जुड़े मामले में पुलिस जांच झूठ का पुलिंदा साबित हुई है। वहीं झुंझुनू जिला कलेक्टर द्वारा उपखंड अधिकारी को इसकी जांच करने के लिए आदेशित किया गया था। इस पूरे मामले को अभी तक लटका के रखा हुआ है। जबकि 3 – 3 जिला कलेक्टर के सामने मामला आ गया लेकिन नतीजा शिफर ही देखने को मिला है। कैसी है यह शासन और प्रशासन की पारदर्शिता और संवेदनशीलता ? पिछली सरकार में झुंझुनू जिला सूचना जनसंपर्क अधिकारी खुद को खुदा मान कर काम करते आ रहे थे हालांकि वर्तमान झुंझुनू जिला कलेक्टर ने उनकी निरंकुशता पर अंकुश जरूर लगा दिया है। लेकिन अभी तक इस मामले में जांच के नाम पर कोई प्रगति देखने को नहीं मिली है। सवाल खड़ा होता है जब झुंझुनू के जिला मुख्यालय के पत्रकार को ही आरटीआई के अंतर्गत सीधे तौर पर सूचना उपलब्ध नहीं करवाई जाती बल्कि गलत तरीके से मूल आवेदन की फोटो खींचकर वायरल करके उसके बाद प्रताड़ित करने का खेल लंबे समय तक इन लोगों द्वारा खेला जाता रहा है तो आम जनता के प्रति ये लोग कितने संवेदनशील और जबाबदार होंगे ?वही आपको बता दें कि झुंझुनू जिला सूचना जनसंपर्क अधिकारी के संबंध में इस आरटीआई में सूचना मांगी गई थी कि निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के यहां पर प्रथम अपील की सुनवाई होनी थी उस दिन सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी नहीं पहुंचे थे उन्होंने इसका कारण झुंझुनू जिला कलेक्टर द्वारा किसी आवश्यक कार्य में ड्यूटी लगाना बताया था। इसी संबंध में झुंझुनू जिला कलेक्टर के लोक सूचना अधिकारी से यह जानकारी मांगी गई थी कि क्या आपके द्वारा ड्यूटी लगाई गई है या नहीं इसके संबंध में दस्तावेज भी मांगे गए थे लेकिन मजे की बात तो देखिए लोक सूचना अधिकारी जिला कलेक्टर झुन्झनू से यह आवेदन सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू को फॉरवर्ड कर दिया गया और यही से वायरल करने का खेल तो शुरू हुआ ही वही झुंझुनू जिला कलेक्टर जो सूचना जनसंपर्क अधिकारी की ड्यूटी लगाते हैं उनको ही नहीं पता कि उन्होंने इस दिन सूचना जनसंपर्क अधिकारी की क्या ड्यूटी लगाई थी शायद इसलिए उनको ही सूचना देने के लिए कहा गया। वहीं इसमें दूसरा बिंदु जो था वह झुंझुनू जिला कलेक्ट्रेट में बैठे हुए अधिकारी और कर्मचारियों से जुड़ा हुआ है कि ऐसे कितने अधिकारी और कर्मचारी हैं जो डेपुटेशन पर कार्यरत हैं उनके बारे में जानकारी मांगी गई थी और प्रशासन के पास डेपुटेशन के कर्मचारियों को लेकर क्या निर्देश अभी तक प्राप्त हैं लेकिन पत्रकार सैनी को इस मामले में जानकारी तो उपलब्ध नहीं करवाई गई। बल्कि प्रथम अपील की सुनवाई की सूचना तक उनको नहीं पहुंचाई गई और महज कागजों में ही तत्कालीन प्रथम अपीलिय अधिकारी एवं झुंझुनू जिला कलेक्टर खुशाल यादव ने अपील अपीलार्थी को अनुपस्थित दिखाकर सारे मामले को दबाने का प्रयास किया। फिर सैनी द्वारा इसकी अपील राज्य सूचना आयोग में लगाई गई तो यहां पर लोक सूचना अधिकारी जिला कलेक्टर जो की अतिरिक्त जिला कलेक्टर होते हैं। उन्होंने अपने प्रतिनिधि के रूप में सूचना जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू को उपस्थित होने के लिए निर्देशित किया लेकिन उनके स्थान पर सहायक सूचना जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू सुनवाई में पहुंचे। जहां पर सूचना आयुक्त लाठर ने उनका कोर्ट में ही फटकार लगाते हुए मौके पर ही सूचना देने के लिए निर्देशित किया। इसके बाद से इस मामले को लेकर सूचनाए देने का दौर झुंझुनू जिला प्रशासन द्वारा शुरू हुआ लेकिन वायरल करने वालों पर अभी भी कोई कार्रवाई देखने को नहीं मिली। वहीं कोतवाली पुलिस को वायरल करने वाले संबंधित लोगों ने कहा कि उनका यह आरटीआई का आवेदन सूचना के अधिकार के अंतर्गत ही प्राप्त हुआ है जिसको हमने वायरल किया था लेकिन वायरल किए गए मूल आवेदन की फोटो और कोतवाली पुलिस को जमा करवाए गए आरटीआई के अंतर्गत प्राप्त किए गए आवेदन की फोटो को यदि मिलान करें तो एक नॉन मेट्रिक व्यक्ति भी बता सकता है की सच्चाई क्या है लेकिन हाय रे झुंझुनू की पुलिस और प्रशासन जो जानबूझकर या किसी मजबूरी के चलते आंखों पर पट्टी बांधकर धृतराष्ट्र बन बैठे हैं।
सूचना देने में सुस्त खुद को बचाने में चुस्त ये अधिकारी –
10 / 07 / 2023 को आरटीआई के अंतर्गत लोक सूचना अधिकारी को आवेदन डाक से भेजा
13 /07 /2023 को मान लीजिए रजिस्टर्ड डाक पहुंची
इसके बाद वायरल
24 /07 /2024 को सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी हिमांशु सिंह द्वारा जारी किये गए आरटीआई के आवेदन की प्रति कोतवाली पुलिस को बचाव के लिए दी
अभी तक पत्रकार सैनी को कोई सूचना उपलब्ध नहीं करवाई गई बल्कि तृतीय पक्ष को त्वरित गति से क्या सूचना मांगी गई है उसके मूल आवेदन की प्रति वायरल करने वालो को बचाव के लिए उपलब्ध करवा दी गई
7 /02 /2024 को आरटीआई के मामले में राज्य सूचना आयोग में सुनवाई, प्रत्यर्थी पक्ष को लताड़ पड़ी और सूचना देने का दिया गया आदेश
6 /03 / 2024 तक झुंझुनू जिला कलेक्टर कार्यालय द्व्रारा सूचना भेजने का सिलसिला चलता रहा
अब जनता ही करे फैसला क्योकि लोकतंत्र में जनता ही वास्तविक शासक होती है। इतने लम्बे समय तक और यह कहे कि अभी पत्रकार सैनी प्रताड़ित होते हुए भी शासन में बैठे इन दबंगो से लड़ रहे है अपने लिए इन्साफ की लड़ाई लेकिन जाँच है कि आगे बढ़ती ही नहीं। इस मामले में आरटीआई के कानून का तो मखौल उड़ाया ही गया है वही अब न्याय का गला घोटने का षड्यंत्र भी चल रहा है। किसी ने कहा है की कानून से बड़ा होता है न्याय ……ना कानून की सही तरीके से पालना और ना ही मिला अभी तक फरियादी को न्याय…….. कानून की सर्वोच्चता और न्याय की मांग के लिए ही है बस यह लड़ाई।