शौर्य भूमि शेखावाटी पर देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का हुआ त्रिवेणी संगम
सैकड़ों सालों तक प्रेरणा देते रहेंगे प्रदेश के शहीद लोक देवता के रूप में
झुंझुनू, शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा……… किसी भी शहीद की प्रतिमा को देखकर बरबस ही इस कविता की पंक्तियां जहन में गूंजने लगती हैं। आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं देश की सीमाओं के आकार को सुरक्षित रखने के लिए देश के जिन रणबांकुरो ने अपनी जान को बलिदान कर दिया। राजस्थान यानी राजपूताने की मिट्टी में कण-कण में शौर्य समाया हुआ है और आजादी के बाद जितने भी भारत भूमि के लिए शहीद हुए थे इनकी प्रतिमा गांव गांव ढाणी में लगाने का काम पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजोर द्वारा किया जा रहा है। लेकिन इन शहीदों की प्रतिमाओं का आकार देने का काम जो कलाकार और मूर्तिकार कर रहा है। आज हम आपको उनसे रूबरू करवाने जा रहे हैं। जी हां, झुंझुनू की माटी ने जहां शूरवीरों को जन्म दिया है इन शूरवीरों की मूर्तियों को आकार देने का काम जो मूर्तिकार कर रहे हैं वह भी झुंझुनू जिले से हैं। झुंझुनू जिले के खुडानिया ग्राम के वीरेंद्र शेखावत जो अब तक हजारों की संख्या में मूर्तियों का निर्माण कर चुके हैं। देश के विभिन्न राज्यों में उनके द्वारा अनेकों मूर्तियां बनाई जा गई हैं। राजस्थान के पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजोर द्वारा आजादी के बाद जितने भी शहीद हुए हैं उनकी मूर्तियों बनवाने का कार्य भी मूर्तिकार वीरेंद्र शेखावत को सौंपा गया है। इन शहीदों की 1170 मूर्तियां बनाने का ऑर्डर इन्हें मिल चुका है जिसमें लगभग 400 से ज्यादा मूर्तियां लगाई जा चुकी हैं। सिर्फ एक मूर्ति को बनाने के लिए पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजोर द्वारा एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्चा किया जा रहा है इसके साथ ही जो अन्य लागत है वह अलग है। इस प्रकार से करोड़ों रुपए खर्च कर बाजौर साहब ने शहीदों की मूर्तियां लगाने का बीड़ा उठाया है। वहीं उन्होंने हाल ही में घोषणा की है कि जितने भी स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं उनकी भी मूर्तियां प्रदेश भर में लगाई जाएंगी। इसी क्रम में एक स्वतंत्रता सेनानी की मूर्ति लगाई भी जा चुकी है। वही इन आधुनिक लोक देवताओं की मूर्तियों को तैयार करने के लिए जो कलाकार वीरेंद्र लगे हुए हैं उन्होंने अपनी प्रतिभा और कलाकारी का लोहा पूरे देश भर में मनवाया है। 10 जुलाई 1973 को जन्मे दसवीं कक्षा तक पढ़े वीरेंद्र सिंह शेखावत तीसरी क्लास से ही स्केचिग बनाने शुरू कर चुके थे। उन्हें कलाकारी के सिवा और कोई कुछ भी नहीं भाता था। अपने इस शौक के प्रति उनकी लगन समर्पण और जुनून के चलते आज इनका नाम जहां किसी परिचय का मोहताज नहीं हुआ वही झुंझुनू जिले के छोटे से गांव खुडानिया को भी इन्होने प्रसिद्धि दिलवाई है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर देशभर में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। वही खुडानिया ग्राम के मूर्तिकार वीरेंद्र सिंह के वर्कशॉप के बाहर खड़ी है मूर्तियां बरबस ही राहगीरों का ध्यान भी अपनी ओर खींच लेती है। इनकी बनाई मूर्तियां इतनी सजीव प्रतीत होती हैं जिन के बीच में जाने पर लगता है कि आप किसी फौज की पलटन के बीच खड़े हो। वही शहीदों से जुड़ी यादों को चिर स्थाई करने में यह जो दो शख्सियते जुटी हैं इनसे आज का युवा प्रेरणा ले सकता है। एक तो पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजोर जिन्होंने अपने जीवन भर की पूंजी के द्वार शहीदों के लिए खोल दिए। वहीं दूसरी शख्सियत इन वीर शहीदों की मूर्तियां बनाने का जिन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह है वीरेंद्र शेखावत। जिनसे युवा प्रेरणा ले सकता है काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता उसे पूरा करने का जुनून और जज्बा है तो वही आपको एक दिन बुलंदियों तक पहुंचाता है।