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रहिमजी ने कहा है रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून। हम जब स्कूल मे जाते थे तब बताया गया कि यहा पर ‘पानी‘ शब्द का प्रयोग मनुष्य की प्रतिष्ठा के लिए किया गया है। जिस प्रकार पानी हमारे लिए आवश्यक है। उसके बिना जीवन की परिकल्पना भी नही की जा सकती वैसे ही मनुष्य के जीवन को बिना प्रतिष्ठा या इज्जत के पशु के समान माना गया है। वर्तमान मे एक बार फिर से बोतल के जिन्न के समान नहर का मुद्दा सामने आ गया हैं। पानी या नहर शेखावाटी के लिए लाइफ लाईन साबित होगी इसमे कोई दो राय नही है। यदि ये मामला इतना महत्वपूर्ण था तो सालो से इस मुद्दे पर लोग अपनी राजनितिक रोटिया क्यो सेकते रहे ? आज भी नहर आने पहले ही इसका क्रेडिट लेने की होड सी सोशल मिडिया मे देखी जा रही है। इससे जुडा हर व्यक्ति तथ्यों को अपने हिसाब से सामने रखकर ये दर्शाने मे लगा है। कि देखों हमने इसको कर दिखाया। जबकि दिल्ली अभी दूर है। आज क्षेत्र के लोग जिस तरह से पेयजल की समस्या से जूझ रहे है। नहर वास्तव मे इस क्षेत्र के लिए वरदान साबित होगी इसमे भी कोई दो राय नही है। लेकिन जो लोग ये दर्शाना चाहते है कि देखो हमने कर दिखाया। क्या वो जनता के दुख मे दुबले हो रहे है या फिर अपना राजनितिक मजमा लगाने के लिए बेताब है। यह हमारे सामने यक्ष प्रश्न है। बहरहाल नहर के मामले मे लग रहा है कही ऐसा न हो कि प्रक्रिया अपने हिसाब से आगे बढ रही हो और सिस्टम अपना काम कर रहा हो और राजनितिक लोग अपना काम कर रहे हो। वही पानी का काम ‘पानी‘ के लिए ही आगे बढ रहा हो।