दिव्यांगता की कमी को छोड़ा पीछे
रतनगढ़ के दो युवाओं की है यह अनूठी कहानी.
दोनों युवक ओपन बोर्ड से दे रहे हैं कक्षा 10 की परीक्षा.
रतनगढ़, [सुभाष प्रजापत ] आसमान की बुलंदियों को पाने के लिए हौसलों की उड़ान जरूरी होती है, फिर चाहे जो भी कमियां हो वे बौनी साबित हो जाती है। ऐसी ही उड़ान रतनगढ़ के दो युवाओं ने भरी है। अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़ दोनों ही युवा जीवन में आगे बढ़ने की सीढ़ियों को चुन लिया है और अब वे पीछे मुड़कर देखना भी नहीं चाहते। आइए हम आपको रतनगढ़ के ऐसे ही दो सख्स से मुलाकात करवाते हैं। छह वर्ष की आयु में रतनगढ़ तहसील के गांव कांगड़ निवासी गीधाराम के हाथ खेत में बिजली के करंट से झुलस गए। उसका उपचार भी करवाया गया, लेकिन उसे दोनों हाथ खोने पड़े और दो साल तक वह घर पर ही रहा। हाथों की कमी खली, तो उसने पैरों से लिखना शुरू किया और आज वह इसमें पूर्णतया पारंगत है तथा लिखावट भी सुंदर है। 18 वर्षीय गीधाराम पैरों के माध्यम से मोबाइल भी आसानी से चला लेता है। वहीं रतनगढ़ के वार्ड संख्या 18 का 23 वर्षीय खिराज मेघवाल जन्म से देख नहीं सकता। खिराज ने माउंटआबू की ब्लाइंड स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान में वह मुंबई की नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहा है। दोनों ही युवक आज रतनगढ़ की राजकीय भुवालका बालिका उच्च माध्यमिक स्कूल में स्थापित ओपन बोर्ड के परीक्षा केंद्र में कक्षा 10 की परीक्षा दे रहे हैं। परीक्षा देने आए सभी परीक्षार्थियों ने इन दोनों युवकों के हौसलों को देखकर दंग रह गए।