सेवानिवृत्त शिक्षक ओमप्रकाश तंवर के प्रयासों से बदली चूरू जेल की तस्वीर
चूरू, सुबह-सुबह कोई भजन-कीर्तन में डूबा है तो कोई प्राणायाम-योगाभ्यास में। कोई माला फेर रहा है, ध्यान लगा रहा है तो कोई पक्षियों को चुग्गा डाल रहा है। कुछ लोग पेड़-पौधों की देखभाल में व्यस्त हैं। दिन चढ़ने के साथ ही अब सबके हाथों में अपनी-अपनी रूचि की किताबें हैं। कोई महापुरुषों की जीवनी पढ़ रहा है तो कोई धार्मिक संतों के प्रवचन। बाकी भी अपने-अपने हिसाब से कहानियां, कविताएं, गजलें, भजन, गीत और चुटकुले न केवल पढ़ रहे हैं, अपितु दूसरों को भी सुनाकर उनका मनोरंजन कर रहे हैं। जिनकी पेंटिंग में रूचि है, उन्होंने परिसर की दीवारों पर ऎसे सुंदर भित्ति चित्र बनाए हैं कि देखने वाले हैरान रह जाते हैं। यह खूबसूरत और मोहक दृश्य किसी आश्रम या हॉबी क्लास का नहीं, अपितु चूरू के जिला कारागार का है, जहां एक सेवानिवृत्त शिक्षक ओमप्रकाश तंवर की सोच के साथ शुरू हुए नवाचार ने सारी तस्वीर ही बदल दी है। अब यह जेल किसी सुधार गृह या आश्रम जैसी नजर आती है, जहां बंदीजन किसी न किसी रचनात्मक काम में जुटे रहते हैं। जेल उपाधीक्षक कैलाश सिंह शेखावत बताते हैं कि चूरू के इस जिला कारागृह में लगभग दो सौ पचास बन्दी हैं। ये सभी विचाराधीन हैं। इनसे किसी भी प्रकार श्रम नहीं करवाया जा सकता। इसलिए नींद लेने, खाना खाने और धमा-चौकड़ी मचाने तथा आपस में ऊधम करने के अलावा इनके पास और कोई काम नहीं होता था। चूंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है, इसलिए फुरसत में ये बन्दी भी अपनी रूचि के समूह में बैठकर अपराध जगत के अपने अनुभव साझा करते थे। अपराध करने के नये-नये तरीके एक दूसरे से सीखते थे। जेल में इनमें आपस में संघर्ष हो जाता था। छोटी-छोटी बात को लेकर प्रशासन को शिकायतें लिखना और स्टाफ से उलझना आम बात थी। नौसिखिये अपराधी, मंजे हुए अपराधियों से नये-नये अनुभव लेकर एक शातिर अपराधी के रूप में जेल से छूटकर बाहर निकलते और फिर पहले से ज्यादा संगीन अपराध को अंजाम दिया करते। आज से करीब अढाई साल पहले 22 अक्टूबर 2019 को राजस्थान के जेल महानिदेशक की अनुमति से तत्कालीन जिला कलक्टर संदेश नायक, पुलिस अधीक्षक तेजस्वनी गौतम और जिला एवं सत्र न्यायाधीश अयूब खान के सान्निध्य में हुए कार्यक्रम में पुरस्कृत शिक्षक फोरम के सचिव तथा सेवानिवृत्त व्याख्याता ओमप्रकाश तंवर ने जिला कारागार को एक हजार पुस्तकें और दो बड़ी आलमारी भेंट कर वाचनालय गतिविधि शुरू की। उसके बाद से इन बंदियों की दिनचर्या ही बदल गई है। अब स्वाध्याय, योग, प्राणायाम, पेंटिंग, समूह-चर्चा, पेड़ों-पक्षियों की देखभाल यहां की मुख्य गतिविधियां हो गई हैं। वर्तमान में जिला कारागृह में जनसहयोग से चार बड़ी आलमारियां, लगभग दो हजार पुस्तकें, बैठकर पढ़ने के लिए फर्नीचर और दरी की सुविधा है। पुस्तकों के आदान-प्रदान के लिए एक प्रहरी को नियुक्त किया गया है। माह में औसतन 150 पुस्तकों का लेन-देन होता है। समय-समय पर फोरम की ओर से निबन्ध लेखन, कविता लेखन, भाषण, क्विज, मेहन्दी मांडणा, रंगोली मांडणा, चित्र बनाना आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिनमें बन्दी उत्साह व रूचि के साथ भाग लेते हैं। श्रेष्ठ प्रतियोगियों को फोरम की ओर से पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाता है।
इस नवाचार, यहां की आवश्यकता और बंदीजनों के उत्साह को देखते हुए स्थानीय विधायक राजेंद्र राठौड़ द्वारा विधायक कोष से दस लाख पचास हजार रुपये की राशि से पुस्तकालय कक्ष बनाने की घोषणा की गई है। पुस्तकालय कक्ष अलग बन जाने से बन्दी एकान्त में सुविधाजनक स्थान पर बैठकर पुस्तकें पढ़ सकेंगे। भादरा विधायक बलवान पूनिया ने यहां की व्यवस्थाओं से प्रभावित होकर अपनी ओर से पुस्तकें खरीदने के लिए एक हजार रुपए दिए। उन्होंने राजस्थान विधानसभा में इस पुस्तकालय की चर्चा कर भादरा जेल में अपनी ओर से पुस्तकालय स्थापित करने की बात कही और सभी विधायकों से अपने-अपने विधायक कोष से संबंधित क्षेत्रों में पुस्तकालय खोलने की अपील की। जिला कारागृह में निरक्षर बन्दियों की पहचान कर जिला साक्षरता एवं सतत शिक्षा विभाग और पुरस्कृत शिक्षक फोरम के संयुक्त प्रयास से साक्षरता की नियमित कक्षा लगाने का निर्णय करते हुए जिला कलक्टर सिद्धार्थ सिहाग निरक्षर बन्दियों को 6 अप्रैल, 2022 को साक्षरता किट वितरित किए। अब 20 बंदी साक्षरता विभाग की इन कक्षाओं में शामिल हो रहे हैं।
जिला कारागृह में संचालित गतिविधियों सकारात्मक परिणामों से होकर पुरस्कृत शिक्षक फोरम द्वारा उप कारागृह राजगढ़ और उपकारागृह, रतनगढ़ में भी एक-एक बड़ी आलमारी और पांच-पांच सौ पुस्तकें भेंटकर वहां के बन्दियों के लिए भी पुस्तकालय की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। इस कार्य में फोरम के जिलाध्यक्ष सूर्यप्रकाश त्रिवेदी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओमप्रकाश फगेड़िया, चैनरूप दायमा, कुलदीप व्यास, लक्ष्मणराम नैण व फोरम के अन्य सदस्यों तथा भामाशाहों का विशेष योगदान रहा है। बहरहाल, कहा जा सकता है कि चूरू का यह कारागृह अब एक सुधार गृह और आश्रम जैसा दिखाई देता है। निस्संदेह ऎसे प्रयास बंदियों को सकारात्मक सोच की ओर प्रेरित करेंगे। देश-प्रदेश की अन्य जेलों में यह प्रयोग अपराधों की संख्या घटाने, पुलिस प्रशासन और न्यायालय का भार कम करने की दिशा में कारगर साबित हो सकता है।