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भक्ति तो समर्पण का प्रतिबिम्ब है- संत प्रह्लाद महाराज

श्रीराम मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में शनिवार को कथावाचक संत प्रह्लाद महाराज ने कहा कि निस्वार्थ भक्ति करने वालों के पास परमात्मा चलकर आते है। इसलिए हमें परमात्मा की भक्ति निष्काम भाव से करनी चाहिए। संत ने रूकमणी विवाह प्रसंग पर कहा कि राजा भीष्मक ने अपने बड़े पुत्र की इच्छा अनुसार रूकमणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहा। जबकि लक्ष्मीस्वरूपा रूकमणी कृष्ण की भक्त थी। उन्होंने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति मान लिया। वे रात दिन प्रार्थना करती की हे नंदनंदन मैंने आपका पति के रूप में वरण कर लिया है। रूकमणी भगवान से कहती है कि वह किसी दूसरे के साथ विवाह नहीं कर सकती। कृष्णा से प्रेम करने वाली रूकमणी ने इतनी बड़ी बात कह दी कि उन्होंने मुझे स्वीकार नहीं किया तो वह उनके चरणों में प्राणों का परित्याग कर देगी। संत ने कहा कि कृष्ण ने अपने भक्त की पुकार कैसे नहीं सुनते और उन्होंने रूकमणी से विवाह कर लिया। संत ने उधव चरित्र पर चर्चा करते हुए कहा कि बृहस्पति के शिष्य उधव परम ज्ञानी थे। संत प्रह्लाद ने कहा कि केवल उपदेश से भक्ति भाव नहीं आते है बल्कि भक्ति तो समर्पण का प्रतिबिम्ब है। तभी तो उधव ने परमात्मा में लीन होकर उनके सखा बन गए। महाराज ने भक्ति और शक्ति पर चर्चा करते हुए कहा कि कलियुग में भगवान की भक्ति में लीन होना बड़ा कठिन है फिर भी भारत वर्ष में धर्म आत्यात्म और संस्कृति जिंदा है जिससे यह देश दुनिया में अपनी पहचान रखता है। इस अवसर पर आयोजक बजाज परिवार के श्रवण बजाज ने बताया कि रविवार को 11 बजे कथा शुरू होगी जिसका समापन दोपहर बाद तीन बजे होगा। इससे पहले सूर्यप्रकाश बजाज, चन्द्र प्रकाश, कृष्णकांत, ताराचंद, लखन, सुभाषचंद्र, सुरेश व नरेश बजाज सहित श्रद्धालुओं ने भावगत जी की आरती की।

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