स्वतंत्रता सेनानी तेज बहादुर सप्रू और क्रांतिकारी महिला अंजलाई अम्मल को भी याद किया
सूरजगढ़। आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गाँधी के सहयोगी रहे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान और देश की आजादी व दलितों के उत्थान के लिए जीवन समर्पित करने वाले महान सामाजिक कार्यकर्ता, संविधान सभा के सदस्य व स्वतंत्रता सेनानी अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर उर्फ ठक्कर बाप्पा की पुण्यतिथि मनाई। आजाद हिंद फौज का मुकदमा लड़ने वाले सुप्रसिद्ध वकील और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी तेज बहादुर सप्रू और महात्मा गांधी के साथ स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी अंजलाई अम्मल को भी उनकी पुण्यतिथि पर याद किया। भारत ने एक लंबे संघर्ष के बाद स्वाधीनता जरूर हासिल की, पर बात अगर जीवन और समाज की करें तो धर्म से लेकर संस्कृति तक तमाम क्षेत्रों में शील और आदर्श की ऊंचाई हमने देश में औपनिवेशिक सत्ता के अंत से पहले ही प्राप्त कर ली थी। ठक्कर बाप्पा ऐसा ही एक बड़ा नाम है, जिसने अपने जीवन को सेवा का पर्याय बनाकर भारतीय समाज के सामने एक प्रेरक और अनुकरणीय आादर्श रखा। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “जब-जब निस्वार्थ सेवकों की याद आयेगी, ठक्कर बाप्पा की मूर्ति आंखों के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।” हालांकि हमने ठक्कर बाप्पा जैसे महान देशभक्तों को भुला दिया है। जिस दलित समाज के लिए ठक्कर बाप्पा ने अच्छी खासी सरकारी नौकरी छोड़कर अपना जीवन दलित वंचित शोषित समाज के उत्थान में लगा दिया; आज वह दलित समाज भी उनका नाम लेना उचित नहीं समझता है।वास्तव में ठक्कर बापा ने अपना सारा जीवन जिस दलित शोषित समाज पर न्योछावर किया। आज वही जब उन्हें भूल चुके हैं तो बाकी का भूलना कोई बड़ी बात नहीं है। ठक्कर बाप्पा त्याग, सेवा, बलिदान तथा करुणा के साक्षात् पर्याय थे। उनका संपूर्ण जीवन पीड़ित मानवता की सेवा के लिए ही समर्पित था। संसार की सबसे बड़ी सेवा मानव सेवा ही है; ऐसा आदर्श हमें सेवा की प्रतिमूर्ति ठक्कर बाप्पा के जीवन से मिलता है। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी व्यक्ति किस तरह अपने सेवा कार्यो से महान् बन जाता है, यह ठक्कर बापा के जीवन से सीखने को मिलता है। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने कहा- आज जब देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न, कई स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा और राजनैतिक चेतना का अभाव दिख रहा है, ऐसे में ये ज़रूरी हो जाता है कि हम इतिहास में जाकर वो परिस्थितियां और उन लोगों के बारे में भी जानें, जिन्होंने समझौता किये बिना अपना जीवन पूरी बहादुरी के साथ लोकतान्त्रिक और अहिंसात्मक मूल्यों में भरोसा रखते हुए जिया और एक उदाहरण बन गये। ऐसी ही तमाम शख्सियत में एक थे सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें बादशाह खान और फ्रंटियर गांधी के नाम से भी जाना जाता है। खान अब्दुल गफ्फार खान एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब संविधान सभा के प्रेसिडेंट बने तो उनके स्वागत में 7 लोगों ने अंग्रेजी में भाषण दिया। बादशाह खान अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने हिंदी में भाषण दिया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में खान अब्दुल गफ्फार खान का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने अपने लंबे जीवन की लगभग आधी उम्र जेल में बिताई। उन्होंने भारत विभाजन का पुरजोर विरोध किया था। मौजूदा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों को सरहदी गाँधी और ख़ुदाई ख़िदमतगार के देश की आज़ादी के लिए अंजाम दिए गए कारनामों, दमन और क़ुर्बानियों को जानना बहुत ज़रूरी है। इस सब को जानकर ही वे समझ पाएंगे की हमने बेदर्दी से जो इस प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और समतामूलक विरासत की अनदेखी की है, वह हमें कितनी कुर्बानियों और किन मूल्यों पर प्राप्त हुई थी। इतिहास में सीमांत गांधी का योगदान हमें यह बताने के लिए जीवित रहेगा कि शांति और अहिंसा की कहानियां केवल पुस्तकों या आध्यात्मिकता के लिए नहीं हैं, बल्कि महात्मा गांधी और खान अब्दुल गफ्फार खान के रूप में इस उप-महाद्वीप व दुनियां के आधुनिक इतिहास में जमीन पर प्रयोग करने एवं मानवीय मूल्यों में योगदान देने के लिए हैं। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर दुनिया को शांति का संदेश देने वाले महापुरुषों को नमन करते हैं। इस मौके पर आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी, पूर्व पंचायत समिति सदस्य श्रीमती चाँदकौर, सुमेर सिंह धींवा, पिंकी नारनोलिया, सुनील गांधी, अमित कुमार, अंजू गांधी, माहिर, सोनू कुमारी, दिनेश कुमार आदि अन्य लोग मौजूद रहे।