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चैत्र के नवरात्रों में 9 दशकों से हो रहे हैं नौ दिवसीय अखंड पारायण के पाठ

महाभारत कालीन सिद्ध पीठ श्री खेड़ापति बालाजी धाम दांता

दांतारामगढ़,[संकलनकर्ता – लिखा सिंह सैनी ] कोरोनावायरस के बचाव हेतु केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा जारी दिशा निर्देशों व राजस्थान में धारा 144 लागू होने के कारण दर्शनार्थियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए श्री खेड़ापति बालाजी धाम व नृसिंह मंदिर दांता के दर्शन 14 अप्रैल तक बंद रहेंगे। पुजारी रमाप्रकाश शर्मा ने बताया कि मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार दर्शनार्थियों व भक्तों के लिए बंद रहेगा। बुधवार से नवरात्रों में पूजा अर्चना व रामायण पुजारी परिवार के चार सदस्यों द्वारा दिन-रात नौ दिनों तक पढ़ी जा रही हैं। सीकर व नागौर जिलों की संगम स्थली पर स्थित पंचगिरी दांता की पहचान पहाड़ी पर स्थित दो दुर्गों के अलावा ” ग्राम देवता” के रूप में दक्षिण दिशा में स्थित श्री खेड़ापति बालाजी मंदिर के कारण भी हैं। प्राचीन तीर्थ स्थलों में मां जीण भवानी के मंदिर जीणमाता धाम व कलयुग के अवतारी बाबा श्याम के मंदिर खाटूधाम के मध्य स्थित महाभारत कालीन यह मंदिर जीणमाता व खाटूश्यामजी के मेलों पर आने वाले भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। यहां पर चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के दिन विशाल मेला भरता है जिसमें हाजिरी देने के लिए लोग दूर-दूर से बाबा के दरबार में आकर अपनी मुरादें पूरी करते हैं।
नाम की महिमा :-
क्षेत्र के लोगों की रक्षा करने के कारण इन्हें “क्षेत्रपति” यानी खेड़ापति कहा जाता हैं। यह बालाजी का मंदिर “ग्राम देवता” के नाम से प्रसिद्ध हैं। रियासत काल के तत्कालीन शासकों द्वारा भी इस मंदिर को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया था।
महाभारत कालीन सबसे पुराना मंदिर :-
हजारों साल पुराना यह मंदिर महाभारत कालीन हैं। इसका उल्लेख “पृथ्वीराज रासो” जैसे प्राचीन ग्रंथ में भी हैं। वनवास काल के दौरान पांडव पांडुपोल अलवर, लोहार्गल, पंचगिरी दांता आदि स्थानों पर आए थे। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल में यहां गुरु द्रोणाचार्य के सानिध्य में यज्ञ किया था। उस समय यह मूर्ति जमीन से स्वयं प्रकट हुई थी जिसे भीम ने खोदकर निकाला था। बालाजी महाराज के आदेश से इसे यहां पर ही स्थापित कर दिया गया था। मूर्ति के एक तरफ सूरज और दूसरी तरफ चांद स्थापित हैं। विशाल मुख्य प्रवेश द्वार से बालाजी महाराज की मूर्ति 9 फीट नीचे विराजमान हैं। बालाजी महाराज के सेवक उनको वाल्मीकि रामायण सुनाने वाले पं. हनुमान प्रसाद शास्त्री के अनुसार बालाजी महाराज का यह मंदिर काफी पुराना महाभारत युद्ध से पहले का हैं। वनवास से लेकर युद्ध तक हनुमानजी महाराज (खेड़ापति बालाजी) उनके साथ रहे। यहां जात जडूला करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
सिद्धि स्थल :-
श्री खेड़ापति बालाजी धाम प्राचीन काल में सिद्ध पीठ रहा हैं। यहां साधु महात्माओं ने कठोर अनुष्ठान एवं तपस्या करके सिद्धियों की प्राप्ति की है व अपने तपोबल से इस स्थान को इतना पवित्र बनाया है कि यहां आने मात्र से ही मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां ध्वजा, पताका व नारियल बांधकर मन्नत मांगो तो वह शीघ्र पूरी होती हैं।
महान विभूतियों की तपोभूमि :-
दांतारामगढ़ क्षेत्र की महान विभूति “परमहंस बाबा परमानंदजी” के भी आराध्य देव श्री खेड़ापति बालाजी ही थे। वे घंटों तक परिक्रमा करते व घंटों तक मूर्ति को निहारते रहते थे एवं मुस्कुराते रहते थे। बाबा परमानंद बालाजी महाराज से साक्षात वार्तालाप करते रहते थे। इस क्षेत्र की दूसरी महान विभूति “बाबा जयपाल गिरी” ने भी कुछ वर्षों तक यहां रहकर तपस्या की थी। बालाजी के पुजारी पं. मोहनलाल दाधीच ने भी कठोर अनुष्ठान व तपोबल के द्वारा कुछ सिद्धियां प्राप्त की थी।
9 दशकों से चल रहे 9 दिवसीय अखंड पारायण पाठ :-
सन 1930 से लगातार 90 वर्षों से आश्विन व चैत्र नवरात्रों में अखंड पारायण संघ दांता के तत्वावधान में अखंड पारायण के पाठों का संचालन हो रहा हैं। निरंतर व निर्विघ्न लंबे समय से अखंड पारायण के पठन का अपने आप में एक रिकॉर्ड हैं। अखंड पारायण संघ द्वारा संचालित यह पठन लोगों में धर्म व संस्कृति के प्रति आस्था प्रदान करके सद् मार्ग व सदाचार को बढ़ावा देता हैं। 31 दिसंबर 2017 से यहां प्रतिदिन अखंड पारायण पाठ शुरू किया गया था जो निर्विघ्न चल रहा हैं। प्रत्येक शनिवार व मंगलवार को बालाजी महाराज का विशेष श्रृंगार करके आभूषणों व सुंदर वस्त्रों द्वारा मूर्ति को चित्ताकर्षक बनाया जाता हैं। शनिवार व मंगलवार को दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है व सवामणियां होती हैं।
मन्नते पूरी हुई व पर्चे दिए, खोई हुई नेत्र ज्योति वापस आई :-
दांता के चितावत परिवार के एक सदस्य की नेत्र ज्योति चली गई थी। उनकी पत्नी ने बाबा के दरबार में अर्जी लगाई तथा बाबा के प्रताप से उनकी नेत्र ज्योति वापस आ गई जो कि एक चमत्कार ही था। बाद में इस परिवार द्वारा बाबा के मंदिर के चारों तरफ पक्के परकोटे का निर्माण कराया गया। जब परकोटे का निर्माण चल रहा था तो पूर्व व दक्षिण दिशा का परकोटा कोने में पांच फीट कम रहने से आयताकार नहीं हो रहा था इसलिए कोने में पांच फीट सरकारी जमीन पर नींव खोद दी जिसकी शिकायत चौबदार ने गढ़ में जाकर ठा. गंगा सिंह जी से कर दी। ठा. गंगा सिंह जी ने पुजारी पं. मोहनलाल जी को बुलाकर पांच फीट जमीन से नींव हटाने को कहा और ग्यारह रुपये दंड के रूप में ले लिए। पुजारी पं. मोहनलाल जी घर नहीं जाकर सीधे बालाजी के दरबार में अनुष्ठान में बैठ गए। रात्रि को बारह बजे हनुमानजी की गर्जना हुई व घोड़ों के अस्तबल जहां घोड़े बंधते थे वहां सात बारीकों की पट्टियां टूट कर गिर गई। चमत्कार यह हुआ जिनमें घोड़े बंदे थे वो सही सलामत रही और जिनमें घोड़े नहीं बंधे थे उन सात बारीकों की पट्टियां टूट कर गिर गई। ठा. गंगा सिंह जी ने सुबह पुजारी जी को गढ़ में बुलाकर अपनी गलती का पश्चाताप किया व दंड के ग्यारह रुपये वापस किए एवं ग्यारह रुपये प्रसाद चढ़ाने के लिए भी दिए और नींव को खोदने के लिए जमीन की छूट दे दी। इसी तरह बालाजी ने ठाकुर साहब को सिंह के रूप में दृष्टांत दिया जिसकी पालना में उन्होंने गेट के दोनों तरफ शेर बनवाए।
पुत्र रत्न की प्राप्ति :-
खेतान परिवार दांता के भूरमल खेतान के पुत्र योग नहीं होने से बालाजी महाराज की शरण लेकर मंदिर कार सेवा में लग गए। बालाजी के आशीर्वाद से पुत्र रत्न हुए जिनके नाम महावीर व बाला ही रखा। इसी तरह रींगस के भजन गायक संतोष व्यास के पुत्र नहीं होने से सभी जगह इलाज कराने पर भी सफलता नहीं मिली। अंत में बालाजी की शरण में आकर पूजा अर्चना करने पर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बहुत से अन्य भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति भी बाबा के दर्शन मात्र से हुई हैं।
स्व. ठाकुर मदन सिंह दांता :-
दांता रियासत के अंतिम शासक रहे ठा. मदन सिंह जी को नवरात्रि में बनने वाले हलवे व चने के प्रसाद को ग्रहण करने का शौक था। वे बड़े चाव से बाबा के दरबार में आकर पंक्ति में बैठकर प्रसाद ग्रहण करते थे तथा अपने आप को धन्य मानते थे। उन्होंने ही बालाजी के मंदिर को सिद्ध स्थान के रूप में मान्यता प्रदान की थी।
स्वर्गीय पंडित मोहनलाल दाधीच :-
देवी उपासक व सिद्ध पुरुष पंडित जी ने सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए बालाजी की सेवा पूजा करके कठिन अनुष्ठानों द्वारा सिद्धियां प्राप्त की। पंडित जी ने राज महाराज की उपाधि होते हुए भी पूरा जीवन सादगी से बिताया। उनके लिए बालाजी ही सब कुछ थे। वे केवल उनकी ही चाकरी करते थे। उनके द्वारा शुरू की गई अखंड पारायण आज भी 90 साल से चल रही हैं। पं. मोहनलाल जी हर साल करणी कोट करणी माता मंदिर के सामने दोनों नवरात्रों में शतचंडी अनुष्ठान करते थे। वहां भक्त शायर माताजी जिनको सभी भक्त करणी माता के रूप में मानते थे, उनको माला धारण करवाई थी। पंडित जी पर करणी माताजी की भी विशेष कृपा थी। शायर माताजी श्री बालाजी का अन्नकूट प्रसाद पाकर ही अन्न ग्रहण करते थे।
पं. हनुमान प्रसाद जी शास्त्री :-
पं. हनुमान प्रसाद जी शास्त्री का जीवन भी संघर्षमय रहा। शास्त्री जी पर पंडित मोहनलाल जी की असीम कृपा थी। शास्त्री जी की पढ़ाई से लेकर नौकरी तक का श्रेय पंडित मोहनलाल जी को ही जाता हैं। शास्त्री जी बालाजी मंदिर परिसर में पूर्व में संचालित संस्कृत पाठशाला के छात्र रहे। श्री शास्त्री जी ने मंदिर में सेवा पूजा से लेकर वाल्मीकि रामायण के अनेकों पठन किए। इनके द्वारा रचित भजन “म्हाकों जी महाराज खेड़ापति जन्म सुधारो जी शरणों थांको जी” भजन गाकर मंडलिया बाबा को रिझाने का प्रयास किया करते थे।
स्व. सेठ रामगोपाल जी खेतान :-
सेठजी अपने दिनचर्या का प्रारंभ ही बालाजी महाराज के दर्शन से करते थे। इनके पुत्र नंदलाल बताते हैं कि उनको रामचरितमानस कंठस्थ थी तथा वे अखंड पारायण के पठन में आठ-आठ घंटों की लंबी ड्यूटी देते थे। उन्होंने मंदिर की सेवा पूजा व विकास हेतु अथक प्रयास किए।
स्व. ओम प्रकाश सैनी ग्राम सेवक :-
सैनी मेले आदि विभिन्न अवसरों पर होने वाले सभी कार्यक्रमों में भंडारे की व्यवस्था संभालते थे तथा अखंड पारायण में कर्मठ पठनकर्ता की भूमिका निभाते थे। सैनी का छोटी उम्र में ही हृदय गति रुक जाने से होने वाले नुकसान की पूर्ति अखंड पारायण संघ नहीं कर पाया हैं। उनके पुत्र प्रदीप सैनी अपने स्वर्गीय पिताजी के स्थान पर ड्यूटी दे रहे हैं।
इनका भी रहा काफी योगदान :-
स्व. मांगीलाल कुमावत पढ़े-लिखे नहीं थे फिर भी बाबा की मूर्ति के सामने जुलूस में घंटों तक नृत्य किया करते थे। उनके पश्चात उनके पुत्र भंवरलाल जी ने भी इस परंपरा को निभाया। वर्तमान में उनके छोटे पुत्र बिरदीचंद बाबा के दरबार में दोनों समय आरती में आकर दर्शनों का लाभ उठा रहे हैं। दादलिका परिवार सीकर भी बालाजी महाराज के प्रत्येक आयोजन में सेवा देते आ रहे हैं व साल में एक बार बाबा का कीर्तन व भंडारे का आयोजन करते हैं। स्व. हरिप्रसाद जी नौकरी ने भी बहुत रामचरितमानस के पाठों से रिझाया। बाबा की कृपा से उनके पुत्र विनोद खेतान सीए के पद पर होते हुए बालाजी के हर कार्यक्रम में समय निकालकर सेवा देते हैं। इनके अलावा नवरात्रों में निकलने वाले जुलूस में भजनों की प्रस्तुति देने वाले बाबा ओलिया बक्स, गुलाबदास जी स्वामी, चुन्नीलालजी महंत, नारायणजी राणा ने भी बखूबी अपनी भूमिका निभाई थी। नायक समाज जुलूस में निःशुल्क बैंड बाजे की सेवा देते थे।
वर्तमान स्थिति :-
वर्तमान में मंदिर को आकर्षक रूप प्रदान कर दिया गया हैं। मंदिर में राम दरबार की मनमोहक संगमरमर की मूर्तियों के दर्शन करने से मन नहीं भरता। मंदिर में बड़े शिव मंदिर का भी निर्माण किया गया हैं। आश्विन व चैत्र मास की पूर्णिमा को भव्य मेला भरता है जिसमें भजन संध्या, अभिषेक, हवन व भंडारा आदि का आयोजन किया जाता हैं। मुंबई, कोलकाता, सूरत, दिल्ली, अहमदाबाद व अन्य दूर-दूर के स्थानों से पदयात्री आकर बाबा को निशान चढ़ा कर अपने जीवन को धन्य कर रहे हैं। बाबा सबकी झोली को खुशियों से भर देते हैं। भक्तगण नाचते, गाते, झूमते हुए आते हैं व बाबा को रिझा कर चले जाते हैं। वर्तमान में श्री रमाप्रकाश जी दाधीच (पुजारी जी) के अथक प्रयासों से मंदिर निर्माण, धार्मिक प्रवचन व भंडारों के आयोजन हो रहे हैं। श्री बालाजी महाराज के यहां सात अखंड ज्योत चौबीस घंटे चलती रहती हैं।

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