ताजा खबरसीकर

रामगढ़ के रामेश्वर अब ऐसे सरपंच ऐसे नेता कहां

विद्यार्थीजी यूही नही कहलाते थे रामगढ़ के रामेश्वरजी

दांतारामगढ़(लिखासिंह सैनी) रामेश्वर विद्यार्थी का जन्म  9 जून सन् 1932 में हुआ था। दसवीं तक शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी ने अपना जीवन अपने गांव के चहुंमुखी विकास के लिए समर्पित कर दिया था। विद्यार्थी के बारे में प्रो. राजकुमार चेजारा ने बताया की ग्राम पंचायत संचालन का जो आदर्श  उदाहरण विद्यार्थी ने रखा, वह काबिले तारीफ और अनुकरणीय है। आज के निर्वाचित सरपंच यदि विद्यार्थी द्वारा स्थापित मानकों का कुछ प्रतिशत भी अनुकरण करे तो वह गांव में सम्मान का पात्र बन सकता है।

  1. विद्यार्थी ने सदा सामूहिक नेतृत्व की महत्ता समझी,  महत्वपूर्ण फैसलों एवं निर्णयों के लिए उन्होने ग्राम न्याय पंचायत बना रखी थी। गांव में उत्पन्न किसी भी समस्या पर यह न्याय पंचायत बैठकर विचार-विमर्श करती और समस्या का निराकरण करते थे। उनके 28 वर्ष के दीर्घ कार्यकाल में एक भी मसला थाने में नहीं जाने दिया। थाने में पहले ही बता दिया जाता कि हमारा कोई भी मामला बिना हमारी अनुमति के रजिस्टर्ड नहीं किया जाये, हम स्वयं हमारे स्तर पर निपटा लेगे।
  2. गांव के विकास संबंधी चर्चा पूरे गांव की मिटिंग बुलाकर मुख्य चौक में स्थित गट्टे पर जाजम लगाकर किया जाता था। सुझाव सबके लिए जाते और फिर सर्वसम्मत फैसला किया जाता था । मन अत्यंत दुःखी होता है जब उनके बाद के सरपंचो की कार्य प्रणाली पर विचार करते है। आज के सरपंच छोटी छोटी बातों पर थाने में जाने की राय देते है और दोनों पार्टियों को बरगला कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। सार्वजनिक चोक में बैठकर निर्णय के बजाय घर में बैठकर निर्णय लिखते है और पंचो के घर रजिस्टर भिजवाकर हस्ताक्षर करवाते हैं। हम समझ सकते हैं ये फैसले विकास के न होकर बेईमानी और भ्रष्टाचार के  ही होंगे।
  3. विद्यार्थीजी सदा निष्पक्ष भाव से कार्य करते थे। चाहे कोई उनका वोटर है या नहीं वे कभी भी पक्षपात नहीं करते थे। यह प्रवृति आजकल बिल्कुल उलट-पलट होकर बोट न देने वाले को जानी दुश्मन मानकर मेंढे की तरह बदला लेने की फिराक मे रहते हैं और पक्ष के आदमी के फायदे के लिए सड़क के नाम पर नदी के बहाव क्षैत्र में अवैध कब्जा और भूमाफियाओं से आम रास्तों पर कब्जा करवा दिया जाता है।
  4. स्व• सरपंच सा• का विश्वास था गांव का काम पूर्ण ईमानदारी से बिना एक भी पैसे की गफलत के किया जाय। वे चुनाव भी पूरी सादगी से बिना भ्रष्ट तरिके अपनाए और बिना किसी खर्च के लड़ते थे। आजकल बाजार में सरपंच उम्मीदवारी की बात पर लोग 10-10 लाख रुपए खर्च करने की बात करते हैं।क्यों बतौर  स्व• राजीव गांधी  बजट का कवल 15{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} ही खर्च होता है बाकी का पैसा भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की भैंट चढ जाता है।
    5.विद्यार्थी ने गलत परम्पराओं को हटाकर अनेक स्वस्थ परंपराए डाली जैसे होली यानि धुलंडी पर पहले घातक रंगो, कीचड़ का प्रयोग किया जाता। इसे सख्ती से रोका गया और केवल गुलाल से होली पूरे बाजार व उपस्थित सरकारी अधिकारियों से ढप और ढोलक की थाप पर नाचते गाते खेलते हुए थाने में जाकर विसर्जन होता था। उनके कार्यकाल के साथ ही इन स्वस्थ परम्पराओ की भी होली मंगल हो गयी।
    6.विद्यार्थी ने बड़े और जटिल कामों को भी सामूहिक श्रमदान से आसान बना दिया था। जब स्कूल मिडिल से सैकण्डरी क्रमोन्नत हुयी तब स्कूल के पास में गहरा खड्डा था तथा बहुत मोटा डोल मिट्टी की दीवार थी। उस डोल को हटाने और खड्डे को भरने के लिए कई दिनों तक श्रमदान चला था। इसी तरह तेजा तालाब की खुदाई और मरम्मत के लिए गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य श्रमदान के लिए गया था। क्या सोच थी, बिना खर्च काम और सब व्यक्तियों स्वयं के योगदान का स्वाभिमान।
  5. यद्यपि हमारे प्यारे गांव में सामाजिक समरसता एवं साम्प्रदायिक सदभाव बहुत पहले से रहा है। यहां हिन्दु और मुसलमान वार त्योंहार बड़े प्रेम से मनाते हैं। शादी समारोह में एक दूसरे का परिवार की तरह हाथ बंटाते है और छुआछूत व जातिगत भेदभाव अन्य स्थानों के बनिस्बत कम रहा है। यदि किसी में थोडी बहुत भावना रही हो तो विद्यार्थी के व्यवहार से वह भी छोड़ने को मजबूर हो गया। आजादी के समय ही यहां के निम्न तबके को सार्वजनिक कुओं पर पानी भराने के आंदोलन चले थे। विद्यार्थी के समय में एक बार एक हज्जाम ने हरिजन के बाल काटने से मना कर देने पर विद्यार्थी  के पास चला गया। विद्यार्थी ने उसे इंसान के प्रति भेदभाव के लिए बुरी तरह  लताडा और स्वयं उस नाई की दुकान पर जाकर हरिजन के बाल कटवाये।
    8- विद्यार्थी बहुत बडे़ समाज सुधारक थे।

Related Articles

Back to top button