आने को है त्यौहार तो अलवर का सिंथेटिक माल भी आपकी थाली में पहुंचने के लिए तैयार
झुंझुनू, नवरात्र से ही विभिन्न धार्मिक आयोजन के साथ त्यौहारी सीजन का भी आगाज हो जाता है और लंबे समय से सुस्त पड़े बाजार में भी रौनक देखने को मिलती है। बात खाद्य सामग्री से जुड़ी करें तो चाहे धार्मिक आयोजन, त्योहार और विवाह हो इनकी मिठाइयों के बिना तो कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन झुंझुनू में जब पूछताछ और सूत्रों से जो जानकारी निकलकर सामने आई वह चौंकाने वाली थी। जिस दूध से बनी हुई मिठाई को पौष्टिक समझ कर खाया जाता है वह मिलावट से भी बढ़कर सिंथेटिक रूप से तैयार की जाने लगी है। जिसे खाने वाला अच्छा खासा स्वस्थ व्यक्ति भी गंभीर रोग का शिकार हो सकता है। पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी एसएन धौलपुरिया ने जयपुर में बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया था जिसमें अलवर से आयातित नकली सिंथेटिक पनीर भारी मात्रा में पकड़ा गया था। उसमें पूछताछ में सामने आया कि सप्लायर अलवर से सिंथेटिक पनीर को 160 रुपए में खरीदता और थोक के भाव में 190 रुपए किलो में छोटे दुकानदारों को बेचना बताया। जबकि 1 किलो पनीर को तैयार करने में जितना दूध लगता है उतनी लागत भी इसमें वसूल नहीं होती है। वहीं जानकार लोगों का मानना है कि अलवर में दो तरह की खाद्य सामग्री रूप से समांतर तैयार की जा रही हैं जिसमें एक तो दूध से निर्मित होती है वहीं दूसरे प्रकार की सिंथेटिक घातक रसायनों के मिश्रण से तैयार की जाती हैं। जिसमें पनीर, मिल्ककेक, कलाकंद, मावा और आजकल रसगुल्ला और राजभोग भी सिंथेटिक रूप से तैयार किए जाने लगे हैं। बात झुंझुनू शहर की करें तो यहां के कुछ बड़े व्यापारियों के तार भी अलवर से जुड़े हुए हैं जिसके चलते त्यौहारी और शादी विवाह के सीजन में अलवर से सिंथेटिक इस खाद्य सामग्री को लाकर बड़ी मात्रा में खपाया जाता है। सामान्यतः जो पनीर400 रु की रेट के लगभग मिलता है वह सिंथेटिक पनीर अलवर से डेढ़ सौ रुपए के भाव से यहां पर लाया जाता है और कई बार तो देखा गया है की शादी विवाह जैसे आयोजनों में व्यापारी इनको 200 रु में भी उपभोक्ताओं को दे देते हैं। इसी सस्ते के चक्कर में बहुत सारे ग्रामीण या भोले भले लोग जो इसके घातक प्रभाव से अनजान होते है वे फस जाते हैं और यह आकलन नहीं करते की 1 किलो पनीर को तैयार करने के लिए जितना दूध लगता है इतने भाव में तो उसकी लागत भी वसूल नहीं होती है। अपनी ही दुकान पर सामान तैयार करने वाले लोगों ने जानकारी देते हुए बताया कि मुश्किल से पनीर में एक किलो पर 30 से 40 रु अधिकतम मार्जन ही सही तरीके से तैयार करने पर निकलकर आता है। अलवर के मिल्ककेक के जायके तो सब दीवाने है। यह सिंथेटिक मिल्क एक भी बड़ी मात्रा में अलवर से तैयार होकर झुंझुनू में सप्लाई के लिए आता है। यदि सूत्रों की माने तो यह डेढ़ सौ रुपए प्रति किलो के हिसाब से यहां के व्यापारी लेकर आते हैं जबकि सामान्य मिल्क केक का भाव ₹300 से कम नहीं देखा जाता है। ऐसी ही बात कलाकंद की करें तो 320 रु प्रति किलो के भाव से ऊपर ही शुद्ध मिल्ककेक बाजार में मिलता है लेकिन अलवर से 160 रुपए के आसपास यह व्यापारियों को मिल जाता है। वहीं मावे से तैयार होने वाली मिठाइयों का दीपावली के त्यौहार के साथ-साथ शादी विवाह में भी अच्छी मांग रहती है और सामान्यतः यहां पर जो मावा है 350 रुपए के आसपास रहता है लेकिन बीकानेर से बड़ी मात्रा में जो सिंथेटिक रूप से तैयार किया हुआ मावा है वह 200 रु किलो भी व्यापारियों को दे दिया जाता है। वही मिठाई व्यापार से जुड़े हुए लोगों की माने तो रसगुल्ला और राजभोग जैसी मिठाइयां भी अब सिंथेटिक रूप से तैयार करके झुंझुनू के बाजार में आने लगी हैं।
जिम्मेदार जान बूझकर अनजान !
मिलावट और सिंथेटिक उत्पादों को रोकने की जिम्मेदारी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग पर है। त्यौहारी सीजन में या फिर शुद्ध के लिए युद्ध जैसे स्लोगन के साथ समय-समय पर कार्यक्रम तो चलाए जाते हैं लेकिन धरातल पर नतीजा ज्यादा कुछ सामने नहीं आ पाता हैं कितने सैंपल लिए जाते हैं जयपुर लैब में जांच के लिए कितने भेजे जाते हैं क्या नतीजा आता है कितने समय में आता है फ़ैल होने पर प्रभावी कार्रवाई क्या रही इसमें भी ज्यादा पारदर्शिता देखने को नहीं मिलती है। इसमें गंभीर बात यह भी है की सैंपलिंग के लिए जाने वाली टीम सैंपल के नाम पर बड़े व्यापारियों से ऐसी चीजों की सैंपलिंग करके ले आती है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की होती हैं जबकि स्थानीय स्तर पर तैयार की गई सामग्री की वह सैंपलिंग नहीं करते हैं। इस प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से बड़े व्यापारियों को सैंपलिंग के टीम एक तरह से बचाने का काम ही करती है। झुंझुनू में यह सैंपलिंग महज कागजी खानापूर्ति ही बनकर रह जाती है। छोटे हलवाइयों की बनिस्पत जो बड़े स्तर पर इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं उनके द्वारा सीजन के अंदर मांग बढ़ने पर बाहर से सामग्री मंगवाई जाती है और आजकल तो जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बड़ी मात्रा में सिंथेटिक रूप से तैयार की हुई मिठाइयों और कच्ची सामग्री को खपाया जाने लगा है। जिला मुख्यालय की बड़ी मछलियों पर तो जाल फेकने का प्रयास भी अभी तक सामने नहीं आया है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की टीम जो सैंपलिंग लेकर आती है उनके क्या नतीजा होते हैं कितनो के खिलाफ मिलावट पाए जाने पर क्या कार्रवाई सामने आती है झुंझुनू में अभी तक ऐसा कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया है लेकिन छानबीन और जानकारी से यह बात सामने आई है कि झुंझुनू शहर के कुछ बड़े व्यापारियों के तार सीधे अलवर से जुड़े हुए हैं।
चाट के शौकीन भी हो जाए खबरदार
वही चाट के शौकीन जो लोग हैं उनके लिए भी कुछ अच्छी खबर नहीं है क्योंकि ज्यादातर चाट की दुकानों पर जो फ्राई करने के लिए तेलीय पदार्थ इस्तेमाल किए जाते हैं। उनमें ही बार-बार खाद्य सामग्री को तला जाता है लेकिन इन दुकानों की समय-समय पर जांच झुंझुनू में नहीं की जाती है हालांकि सीकर जिले में कई बार यह देखने को सामने आया है की चाट की दुकानों पर चिकित्सा में स्वास्थ्य विभाग की टीम फ्राई करने वाले तेलिय पदार्थों को लेकर पाबंद करती है कि एक निश्चित अवधि के बाद इन्हें डिस्ट्रॉय करना होता है। अधिक बार एक ही तेल में फ्राई करने से वह गुणवत्ता विहीन तो ही जाता है साथ खाद्य पदर्थो पर भी इसके घातक परिणाम होते है।