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लाम्बा कोचिगं कालेज में भगवान महावीर का महानिर्वाण दिवस मनाया

7 नवम्बर को दिवाली के शुभ अवसर पर भगवान महावीर का 2545 वाँ महानिर्वाण दिवस लाम्बा कोचिगं कालेज परिसर में समारोह पूर्वक मनाया गया। पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी लियाकत अली खान, शिक्षाविद् टेकचन्द शर्मा, संस्था निदेशक शुभकरण लाम्बा, प्रो0 रतनलाल पायल, प्रमोद पूनियाँ, सुरेन्द्र सोहू व सेना भर्ती अभ्यर्थियों ने भगवान महावीर के चित्र पर श्रद्धापूर्वक माल्यार्पण किया और श्रद्धासुमन अर्पित किये। संस्था निदेशक शुभकरण लाम्बा ने अपने सम्बोधन में कहा कि भगवान महावीर ने सारी दुनियाँ को अहिंसा परमोधर्म का संदेश दिया था। जो आज पुरे विश्व में प्रासांगिक है। उन्होनें कहा कि दुसरों से लड़ना बहुत आसान है किन्तु अपने आप से लड़ना युद्ध करने से भी ज्यादा कठिन है। महावीर का जीओं और जीने दो का सन्देश मानव जाति को बचाने के लिए है। उन्होनें कहा कि मानव आज अपनी जगह छोड़ रहा है और गुमराह हो रहा है। त्याग और संयम की जगह विलासिता का जीवन जी रहा है जिसकी पूर्ति के लिए देश में नित्य लुटपाट, हत्याएँ, बलात्कार और अनैतिकताएँ बढ़ रही हैं। देश का हर व्यक्ति अपने स्वार्थ में लिप्त है। जिनके हाथों में देश का नेतृत्व है वे भयंकर विवादों में है। आज जरूरत है भगवान महावीर को ढुढ़ने की, उनको समझनें की और उनके दर्शन को आत्मसात करने की। पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी लियाकत अली खान ने अपने सम्बोधन में कहा कि भगवान महावीर ने जो कहा उसका सरोकार भारतीय धर्म – संस्कृति – दर्शन एवं रोजमर्रा की जिंदगी से है। खान ने कहा महावीर का धर्म पुरूषार्थवादी है, नियतिवादी नहीं। वह किसी नियति की ओट में – अकर्मण्यता का समर्थन नहीं करता वरन् एक वैज्ञानिक की भाँति आत्मा की प्रयोगशाला में अनुसंधान करके ही किसी तत्व को स्वीकारता है। शिक्षाविद टेकचन्द शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि महावीर का धर्म हमें तोड़ना नहीं जोड़ना सिखाता है। महावीर जैन तत्त्व का ज्ञाता नहीं बाल्कि विश्व तत्त्व के ज्ञाता है। प्रो0 रतनलाल पायल ने अपने सम्बोधन में कहा कि महावीर जैन का मानना था कि चींटीं में भी वो प्राण है जो मनुष्य जाति में है। उपर्युक्त शब्द असली जीवन जीने की सीख देते है। प्रमोद पूनियाँ ने अपने संक्षिप्त सम्बोध्ंान में कहा कि भगवान महावीर स्वामी के तीन लोक कल्याणकारी सिद्धान्त थे: अंहिसा, अपरिग्रह और अनेकान्त। इन सिद्धान्तों के बिना व्यक्ति, समाज और राष्ट्र जीवित नहीं रह सकते इसलिए आज उनकी प्रांसागिकता उतनी ही है जितनी आज से 2500 वर्ष पहले थी।

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