पशुओं को शुरुवाती दुग्धावस्था में बाईपास-फैट देना फायदेमंद
डॉ. योगेश आर्य, पशुपोषण विशेषज्ञ, नीम का थाना
बाईपास फैट:- बाईपास फैट अधिक दूध उत्पादन देने वाले पशुओ को गर्भावस्था के अंतिम दिनों और शुरुवाती दुग्धावस्था के दौरान देने पर सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं| पशुओ को पशु आहार मे बाईपास फैट देने पर बाईपास फैट रुमन मे अपघटित नही होती हैं, बल्कि एबोमेजम की अम्लीय पी.एच. पर इसका पाचन होता हैं| अर्थात ये रुमन को बाईपास कर जाती हैं| बाईपास फैट का मेल्टिंग सूचकांक ज्यादा होता हैं, इस कारण से भी ये रुमन मे अपघटित नही होती हैं| प्रिल्ड वसा, बाईपास फैट का ही एक प्रकार होता हैं| कच्चा खाद्य-तेल देने की बजाय बाईपास फैट देने से रूमन की पाचन क्रिया मुख्यतः रेशेदार आहार का किण्वन एवं पाचन भी प्रभावित नही होता हैं| कई खाद्य पदार्थो मे प्राकृतिक रूप में कुछ मात्रा बाईपास फैट की पायी जाती हैं जैसे- बिनौला सीड, सोयाबिन इत्यादि|
बाईपास फैट तैयार करने की विधियाँ:-
फैट का हाइड्रोजनीकरण करके
लंबी श्रन्खला वाले वसीय अम्लो के “कैल्सियम साबुनीकृत लवण” बनाकर
तेल वाले बीजों का फार्मेल्डिहाइड उपचार करके
फ्यूजन विधि
लंबी श्रन्खला वाले वसीय अम्लो के “कैल्सियम साबुनीकृत लवण” बनाने की विधि:- सामान्यतया लंबी श्रन्खला वाले वसीय-अम्लो के “कैल्सियम साबुनीकृत लवण” वाली बाईपास फैट बनाना ज्यादा प्रचलित हैं| इस विधि मे वसीय-अम्लों की क्रिया कैल्सियम-हाइड्रोक्साइड से करवा कर “कैल्सियम साबुनीकृत लवण” तैयार कर लिए जाते हैं| इसके लिए सर्वप्रथम वसीय-अम्लो के स्त्रोत मे पानी और कैल्सियम-ऑक्साइड मिलाया जाता है, इससे बना कैल्सियम-हाइड्रोक्साइड, वसीय-अम्ल से क्रिया करके “कैल्सियम साबुनीकृत लवण” बना लेते हैं| इस पूरी क्रिया मे ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया होने से तापमान बढ़ जाता हैं अतः इसको ठंडा करके, छान कर सुखा लेते हैं|
बाईपास फैट 6 से अधिक पी.एच. पर रुमन में ये अक्रिय रहती हैं जबकि एबोमेजम की अम्लीय 2.5 पी.एच. पर फैट और कैल्सियम मे टूट जाती हैं|
बाईपास फैट हल्के भूरे या क्रीम रंग का दानेदार पाउडर होता हैं| जिसमे फैट की मात्रा लगभग 80 फीसदी, कैल्सियम की मात्रा लगभग 8 फीसदी होती हैं और इसमे वसा घुलनशील विटामिन्स भी पाये जाते हैं|
बाईपास फैट खिलाने के फायदे:-
बाईपास फैट पशु को पॉज़िटिव ऊर्जा बेलेन्स मे रखती हैं और पशु मे नेगेटिव ऊर्जा बेलेन्स से होने वाले रोग अथवा उपापचयी रोग जैसे कीटोसिस और मिल्क फीवर इत्यादि नही होते है|
पशु की शारीरिक दशा एवं स्वास्थ्य मे सुधार होता हैं|
पशु की प्रजनन क्षमता मे वृद्धि होती हैं|
पशुओ का दूध उत्पादन बढ़ता हैं|
दूध मे फैट की मात्रा बढ़ती हैं|
बछड़े-बछड़ियों का अच्छा शारीरिक विकास होता हैं|
पशु को दी जाने वाली बाईपास फैट की मात्रा:-
बाजार मे अलग अलग ब्रांड के बाईपास फैट उपलब्ध हैं जैसे- केमिन, मेगालेक और डेयरीलेक इत्यादि| पशुपालक को उच्च गुणवत्ता वाला बाईपास फैट ही खरीदना चाहिए| बाईपास फैट की 100 ग्राम- 400 ग्राम मात्रा प्रति गाय, प्रतिदिन की दर से खिलाया जा सकता हैं| इसकी मात्रा का निर्धारण इसके ब्रांड और गाय की दूध उत्पादन क्षमता के हिसाब से करते हैं| पशु के ट्रांजिशन पीरियड मे बाईपास फैट खिलाकर निश्चित तौर पर पशुपालक अधिक दूध उत्पादन और बछड़े- बछड़ियों मे अच्छी शारीरिक विकास दर प्राप्त कर लाभ कमा सकते हैं|
नवम्बर माह में पशुपालकों के लिए सलाह:- सर्दियां शुरू हो चुकी हैं ऐसे में पशुओँ के आवास एवम प्रबंधन पर विशेष ध्यान देवें। रात को पशुओँ को अंदर बांधे और सुबह-शाम बाहर रखते वक्त टाट/बोरी ओढ़ाकर रखें। संतुलित आहार की देवें और दाना मिश्रण की मात्रा शारीरिक अवस्था एवम वजन के हिसाब से बढ़ाये। हर तीन माह में कृमिनाशन करवाने हेतु गाय-भैंस के लिए “हाईटेक बोलस” का प्रयोग करें जबकि छोटे पशुओँ को “निलजान” अथवा “अल्बोमार” दिया जा सकता हैं। पशुओँ की पाचन संबंधित समस्याओं के लिए तथा लीवर-टॉनिक के रूप के “ब्रोटोन-वेट” दिया जाना चाहिए। पशुओँ को ब्याने के बाद उपापचयी रोगों से बचाने हेतु उसके ब्याने से पहले “मेटाबोलाइट मिक्स” और नेगेटिव ऊर्जा बेलेंस से बचाने हेतु ब्याने के बाद “एनाबोलाइट मिक्स” का उपयोग अच्छे परिणाम देता हैं। सर्दियों के मौसम में छोटे बछड़े बछड़ियाँ न्यूमोनिया का शिकार जल्दी हो जाते हैं ऐसे में वेटरनरी डॉक्टर से तुरंत इलाज करवाये।