चिकित्सालेखसीकर

पशुपालन – गाय-भैंस का टीकाकरण कलेण्डर

डॉ. शंकर चौधरी

पशुपालकों को अपने सभी पशुओं का समय पर टिकाकरण और कृमिनाशन करवाना चाहिए| गाय-भैंस का हर 3 माह मे कृमिनाशन करवाना आवश्यक होता हैं| पशु रोगों से बचाव के लिए, स्वस्थ पशुओं का निम्नानुसार टिकाकरण करवाना चाहिए-

टीकाकरण-कलेण्डर

बीमारी पशु की उम्र टीकाकरण का उपयुक्त मौसम/महिना
मुहंपका-खुरपका रोग 3 माह से बड़े सभी पशु मार्च और सितम्बर (वर्ष में दो बार)
गलगोठूँ 3 माह से बड़े सभी पशु मई-जून (मानसून से पूर्व)
लंगड़ा बुखार 3 माह से बड़े सभी पशु मई-जून (मानसून से पूर्व)
एंथ्रेक्स 3 माह से बड़े सभी पशु वर्ष मे एक बार
ब्रूसेलोसिस 6-9 माह की बछड़ी/पाड़ी को जीवन काल मे केवल एक बार
थिलेरियोसिस 3 माह से बड़े पशु वर्ष मे एक बार (केवल विदेशी/ संकर -नस्ल के पशुओं का टिकाकरण)
आई.बी.आर.

Infectious-Bovine-Rhinotracheitis (I.B.R.)

1 माह से बड़े पशु, इसके 3 माह बाद बूस्टर डोज़ लगाए वर्ष मे एक बार

 

गाय भैंसों मे होने वाले कुछ रोग और उनसे बचाव के तरीके:-

-:मुंहपका-खुरपका रोग:-

“मुंहपका-खुरपका रोग” एक ज़ूनोटिक रोग हैं जो पशुओं से मनुष्यों में भी फ़ैल सकता हैं|मुंहपका खुरपका रोग विषाणु (पिकोरना वायरस) जनित संक्रामक रोग हैं जिसका फैलाव हवा द्वारा, या बीमार पशु के झूठे पशुआहार, पानी और दूषित पदार्थो के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओ में हो सकता है|| संकर नस्ल के पशुओं में यह रोग ज्यादा तेजी से फैलता है| मुंहपका खुरपका रोग होने पर पशु के दूध उत्पादन में अचानक से गिरावट आ जाती हैं| मुंहपका खुरपका रोग के कारण देश में प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार करोड़ रूपये की आर्थिक हानि होती हैं| मुंहपका खुरपका रोग हो जाने के बाद पशु गर्मियों में ज्यादा हांफने लगते हैं|

रोग के लक्षण:-

  • तेज बुखार (104-106 डिग्री फॉरेनहाइट)
  • पशु खाना पीना बंद कर देता है
  • दूध उत्पादन में अचानक से गिरावट
  • मुंह, जीभ और मसूड़ों पर छाले हो जाते हैं
  • लगातार लार गिरती रहती हैं
  • खुरों के बीच छाले हो जाने से पशु लंगड़ा कर चलता हैं
  • कभी कभी थनों पर भी छाले हो जाते हैं

रोग से बचाव:-

सभी पशुओं का वर्ष में 2 बार सामान्यतया मार्च और सितम्बर में, मुंहपका खुरपका रोग का टीकाकरण अवश्य करवाए |बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| मुंहपका खुरपका रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए| बीमार पशु के छालों और घावों की प्रतिदिन लाल दवा के हल्के घोल से सफाई करें|  घाव में कीड़े पड़ जाने पर फिनाइल अथवा नीम के पत्ते उबालकर उसके पानी से घाव साफ करे| मृत पशु का निस्तारण गहरा गड्डा खोदकर उसमे चूना या नमक डालकर करे|

-:गलघोटू रोग:-

गलघोटू रोग जीवाणु (पाश्चुरेला मल्टोसीडा) से होता हैं| यह एक संक्रामक रोग है जिसका फैलाव हवा द्वारा, या बीमार पशु के झूठे पशुआहार, पानी और दूषित पदार्थो के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओ में हो सकता है| बछड़ो में बीमार मादा पशु के दूध से हो सकता है| यह रोग लम्बी दूरी की यात्रा से थके पशुओ में भी हो जाता है|

रोग के लक्षण:-

  • तेज बुखार (104-107 डिग्री फॉरेनहाइट)
  • सूजी हुई लाल आँखे
  • मुँह से अधिक लार और आँख-नाक से स्त्रवण
  • पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है
  • पेट दर्द और दस्त
  • सिर ,गर्दन या आगे की दोनों टांगो के बीच सूजन
  • पशु के श्वास लेते समय घुर्र-घुर्र की आवाज आना
  • श्वास लेने में कठिनाई के चलते दम घुटने से पशु की मौत

रोग से बचाव:-

हर साल  मानसून से पूर्व ही, 3 माह से बड़े सभी पशुओं का गलघोटू रोग का टीकाकरण जरूर करवाए| पशुओ को लम्बी यात्राओं पर ले जाने से पूर्व भी टिका अवश्य लगवाए|  बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| गलघोटू रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए| मृत पशु का निस्तारण गहरा गड्डा खोदकर उसमे चूना या नमक डालकर करे|

-:लंगड़ा बुखार:-

लंगड़ा-बुखार रोग जीवाणु (क्लोस्ट्रीडियम चौवोई) से होता है| यह एक संक्रामक रोग है जो बीमार पशु से दूषित पशुआहार, के सेवन से हो सकता है| यह रोग खुले घाव द्वारा भी पशुओ में फेल जाता हैं| इस रोग में बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों  जैसे- कंधे, पुट्ठे और गर्दन पर “गैस से भरी सूजन” आ जाती है|

रोग के लक्षण:-

  • तेज बुखार (106-108 डिग्री फॉरेनहाइट)
  • पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है
  • बढ़ी हुई श्वास-दर
  • लाल आँखे
  • शरीर के विभिन्न भागो में जकड़न
  • बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों जैसे- कंधे, पुट्ठे और गर्दन पर “गैस से भरी सूजन”  जिसको दबाने पर चट-चट की आवाज होना
  • पशु पहले तो लंगड़ाने लगता है फिर चलने में पूर्णतया असमर्थ हो जाता हैं
  • अंत में पशु के शरीर का तापमान गिर जाता है और पशु मर जाता हैं

रोग से बचाव:-

हर साल  मानसून से पूर्व ही, 3 माह से बड़े सभी पशुओं का लंगड़ा-बुखार रोग का टीकाकरण जरूर करवाए| बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| लंगड़ा-बुखार रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए|

फूट-रॉट/ खुर-गलन-

बारिश के पानी मे खड़े रहने से पशुओं के खुर गल जाते हैं| ये जीवाणु जनित रोग हैं जिसमे खुरों मे घाव और अल्सर हो जाते हैं| पशु लंगड़ा कर चलने लगता हैं| ऐसा होने पर खुरों को लाल दवा के घोल या एंटीसेप्टिक विलयन से धोना चाहिए|

तीन दिवसीय बुखार/ एफीमेरल बुखार-

वर्षा ऋतु के बाद होने वाले, वाइरस जनित इस रोग के वाहक मच्छर या रेत-मक्खी होते हैं| नाम के अनुरूप ही इस रोग मे पशु सामान्यतया 3 दिन तक तेज बुखार से पीड़ित रहता हैं| पशु लंगड़ाने लगता हैं और खाना पीना बंद कर देता हैं| कभी कभी पशु काँपने लगता है, पेशीय संकुचन होता हैं, अधिक लार गिरती हैं और जमीन पर लेट जाता हैं| पशु को सोडियम-सेलिसीलेट देने से राहत मिल सकती हैं|

 

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