चिकित्सालेखसीकर

पशुपालन विशेष -पशुओं में प्रसव के लक्षण

डॉ. नरेश मिठारवाल [विशेषज्ञ -पशु प्रसूति एवम  मादा रोग, पाटन (सीकर)]
पशुओं में अगर प्रसव के लक्षण पशुपालक को सही तरीके से पता हो तो कठिनाईपूर्वक प्रसव से बचा जा सकता है| सर्वप्रथम पशुपालक को पशु की कृत्रिम या प्राकृतिक गर्भाधान की दिनांक का पता होना चाहिए तथा इसके बाद पशु के गर्भकाल का पता होना चाहिए जैसे कि  गाय का गर्भकाल 9 माह±9 दिन; भैंस का 10 माह±10 दिन;  भेड़ बकरी का 5 माह ±5 दिन; घोड़ी का 11 माह ±11दिन होता है| प्रसव के कुछ दिन पूर्व श्रोणि के लिगामेंट शिथिल होने लगते हैं ,योनि मुख फूलने लगता है तथा अयन व थनो का विकास होने लगता है| मुख्यतः प्रसव की तीन अवस्थाएं हैं| प्रथम अवस्था- इसमें पशु बेचैन, भूख न लगना,पेट दर्द, उठना बैठना, योनि मुख से थोड़े तरल का बहार आना जैसे लक्षण दिखाता है| इस अवस्था में योनि व सर्विक्स मार्ग चौड़ा होने लगता है| पशु का ताप  भी 1-2 डिग्री फारेनहाइट बढ़ जाता है| गाय भैंस में यह समयावधि सामान्यतः 2 से 6 घंटे की होती है| लेकिन कई बार इस अवस्था में 12 से 24 घंटे भी लग जाते हैं इस अवस्था में प्रथम वाटर बैग फट जाता है| प्रसव  की द्वितीय  अवस्था में फिट्स के पैर श्रोणि गुहा में आ जाते हैं| इस अवस्था में ऑक्सीटोसिन के प्रभाव में संकुचन से द्वितीय वाटर बैग भी फट जाती है व फ़ीटस/बछड़ा बाहर आ जाता है| अगर बछड़े के श्वसन में कोई समस्या हो तो उसके पीछे के पैर ऊपर उठा लेने चाहिए जिससे नाक में गया हुआ तरल वापस बाहर आ जाता है तथा बछड़े के नाक व  कानों को अच्छी तरीके से साफ कर देना चाहिए| यह अवस्था गाय भैंस में आधे से 3 घंटे की होती है अगर मां के सभी प्रयास विफल हो तो तुरंत पशु चिकित्सक को सूचना देनी चाहिए नहीं तो बछड़े की श्वसन क्रिया प्रभावित होकर मरने का अंदेशा रहता है| तृतीय अवस्था- इस अवस्था को जेर का गिरना भी कहते हैं| गाय भैंस में यह अवस्था 6 से 12 घंटे से पहले पूर्ण हो जाती है| अगर इस अवस्था में जेर ना गिरे तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए नहीं तो मां के गर्भाशय में संक्रमण होने की संभावनाएं प्रबल रहती हैं| घोड़ी में यह सभी अवस्थाएं छोटी होती हैं तथा घोड़ी में प्रसव से 6 से 48 घंटे पूर्व ही मां का प्रथम दूध कोलस्ट्रम बाहर आने लग जाता है तब घोड़ी पालक को घोड़ी पर विशेष ध्यान रखते हुए उसे शांत वातावरण में रखना चाहिए क्योंकि घोड़ी का प्रसव मुख्यत: रात में ही होता है|

 

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