सूरजगढ़, राष्ट्रीय साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थान आदर्श समाज समिति इंडिया द्वारा गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की खोज को आगे बढ़ाते हुए ग्राम पंचायत काजड़ा की सरपंच मंजु तंवर के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानी आशा देवी आर्यनायकम और अंजलाई अम्मल की तस्वीर का विमोचन किया। दोनों ही महिला स्वतंत्रता सेनानियों को महात्मा गांधी के सानिध्य में देशसेवा करने का मौका मिला। दोनों का आजादी की लड़ाई में विशेष योगदान रहा है। इस मौके पर संस्थान के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी, शिक्षाविद् मनजीत सिंह तंवर, रायसिंह शेखावत, होशियार सिंह, अशोक कुमावत आदि अन्य लोग मौजूद रहे। इस अवसर पर देश की प्रथम महिला फोटोग्राफर जर्नलिस्ट होमी व्यारावाला को उनकी जयंती पर याद किया। पद्म विभूषण से सम्मानित प्रथम महिला फोटोग्राफर होमी व्यारावाला ने 1947 में आजादी के हसीन लम्हों को अपने कमरे में कैद किया था। महिला स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी देते हुए आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने बताया कि आशा देवी आर्यनायकम का जन्म-1 जनवरी 1901 को लाहौर में हुआ था। वह देश के लिए एक समर्पित महिला थीं, जिन्होंने अनभिज्ञता को दूर करने और ज्ञान, प्रेम और विश्वास से भरी दुनिया बनाने की कोशिश की। वह एक अच्छी शिक्षाविद् थीं, जो हमेशा नये और नये तरीकों की तलाश में रहती थीं जो उनके छात्रों के मन में रुचि पैदा करे। वह महात्मा गाँधी की नई तालीम या बुनियादी शिक्षा या सीखने की कार्यप्रणाली से आकर्षित थीं। वह अपने छात्रों से प्यार करती थीं और वे उन्हें ‘माँ’ कहते थे। आशा देवी आर्यनायकम का परिवार रविंद्रनाथ टैगोर के करीब था और शांतिनिकेतन उनके लिए उनके घर जैसा था। शांतिनिकेतन के शांत वातावरण में आशादेवी ने गांधीजी की पुकार सुनी। वह समझती थीं कि शांतिनिकेतन में गरीबों के बच्चों के लिए कोई जगह नहीं थी। इसलिए वह और उनके पति शान्तिनिकेतन छोड़कर वर्धा चले गये, जहाँ उन्होंने पहले मारवाड़ी विद्यालय में काम किया और फिर बापू से जुड़े और नई तालीम के मुख्य आधार बन गये। बापू की मृत्यु के बाद आशा देवी आर्यनायकम फरीदाबाद चली गईं और उन्होंने फरीदाबाद में शरणार्थियों की देखभाल की। बच्चों के लिए स्कूल शुरू किये। इसके बाद उन्होंने विनोबा भावे के ‘भूदान आंदोलन’ में भाग लिया। वर्ष 1954 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया। आशा देवी आर्यनायकम देश की पहली पद्मश्री पुरस्कार विजेता हैं। वह महात्मा गाँधी के सेवाग्राम और विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से गहराई से जुड़ी थीं। स्वतंत्रता सेनानी अंजलाई अम्मल के बारे में धर्मपाल गाँधी ने बताया कि अंजलाई अम्मल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ‘असहयोग आंदोलन’ से की थी यही कारण है कि अंजलाई अम्मल को 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ में भाग लेने वाली पहली दक्षिण भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। इस आंदोलन का हिस्सा बनने के बाद वह कभी भी पीछे नहीं हटीं। उन्होंने अपनी पारिवारिक भूमि और घर बेचकर सारा पैसा भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में खर्च कर दिया। देश की आजादी के लिए उन्होंने जेल में बहुत सी यातनाएं भोगी। 1947 में भारत की आजादी के बाद वह तीन बार तमिलनाडु विधानसभा की सदस्य चुनी गई। 20 जनवरी 1961 को उनका निधन हो गया। सरपंच मंजु तंवर ने कहा- आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में 1 जनवरी को स्वतंत्रता सेनानी आशा देवी आर्यनायकम की जयंती और 20 जनवरी को स्वतंत्रता सेनानी अंजलाई अम्मल की पुण्यतिथि मनाई जायेगी। देश की आजादी के लिए जीवन समर्पित करने वाले गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की खोज आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार द्वारा अनवरत जारी रहेगी।