कल अस्पताल में एक मित्र मिले। दूर से देखने पर लगा, मुंह बंद कर स्माइल दे रहे हैं। पास जाने पर देखा-वह जो भी थी, जैसी भी थी, यथावत थी। मामला कुछ असामान्य सा लगा। डॉक्टर ने मेरी हैरानी भांपकर बताया, यह अत्यधिक सेल्फीरत रहने का परिणाम है। असल में ज्यादा सेल्फी लेते-लेते यह स्थाई सेल्फी मुद्रा बन गई है। आजकल हर दूसरा, तीसरा बंदा सेल्फी में मग्न है। लोग अपनी ऐसी-ऐसी सेल्फी ले रहे हैं कि एकबारगी खुद भी खुद को देखकर भौंचक्के रह जाएं, यार इसको कहीं देखा है!
डॉक्टर की बात से याद आया, कुछ दिन पहले मैंने एक मित्र को उसी की सेल्फी वाली फोटो ‘नाइस’ प्रतिक्रिया वाली स्माइली के साथ भेजी, तो उलटे हैरत वाले स्टिकर के साथ उनका प्रतिप्रश्न आ गया, ‘नाइस है, मगर है किसकी और यह मुझे क्यों भेज रहे हो’! कमाल है, सेल्फी की सोहबत में चेहरे बदल रहे हैं। मुद्रा बदल रही है। भाव-भंगिमाएं बदल रही हैं। कइयों के होठ अब अधर नहीं रहे, अधीरता में आगे तक बढ़ आए हैं। कुछ सपाट गाल म्युनिसिपाल्टी की सडक़ों की तरह परमानेंट गड्ढ़ायुक्त हो गए हैं, तो कुछ गर्दनें स्थाई रूप से टेढ़ी होकर बांग्लादेश की तरह लटक गई हैं। कुल मिलाकर चेहरे पर सेल्फी की जबर्दस्त मार दिखती है, गोया- मैं और मेरी सेल्फी अक्सर तन्हाई में ये बातें करते हैं, तुम ऐसे आती, तो कैसा लगता, तुम वैसे आती तो ऐसा लगता। हाय, जैसा भी लगे, लेकिन अभी यह लग रहा है कि सेल्फी की राह में बड़े खतरे हैं। मुंह टेढ़े-मेढ़े होने का खतरा पैदा हो गया है। बुरी नजर वाले का मुंह काला हो सकता है, तो सेल्फी वाले का मुंह टेढ़ा क्यों नहीं हो सकता। अति सर्वत्र वर्जयते!
कुछ समय बाद ऐसे सीन अपेक्षित हैं, यदि किसी का खुला मुंह बंद नहीं हो रहा हो और बंद का खुल नहीं रहा हो, तो कोई जरूरी नहीं ये किसी असाध्य रोग के लक्षण हों, यह अत्यधिक सेल्फी की वजह से भी हो सकता है। ऐसे पैशेंट से डॉक्टर यह पूछना नहीं भूलेंगे कि दिन में सेल्फी कितनी लेते हो? हर समय मुंह बाए और बनाए रखना कोई आसान काम नहीं।
गनीमत है, अभी ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है, जिसमें किसी ने बार-बार मुंह बनाने से बचने के लिए स्थाई रूप से सर्जरी करवाकर चेहरा सेल्फीयुक्त बना लिया हो। हालांकि संभव है, किसी को इस आइडिया की भनक लग गई, तो अभी इश्तिहार आ जाएगा- बार-बार मुंह बनाने की परेशानी से मुक्ति पाएं, वाजिब दामों में सेल्फी अनुकूल चेहरा बनवाएं! उफ्, यह हो क्या रहा है। हर तरफ जोर-शोर से बताया जा रहा है कि एक अच्छी सेल्फी कैसे लें! सेल्फी लेते समय किन-किन बातों का ध्यान रखें। ऐसी सेल्फी लें कि लोग आपको देखते ही फौरन फ्रेंडातुर हो उठें। बाढ़, भूकम्प, आग वगैरह में सबसे पहले सेल्फी की क्रिया सम्पन्न की जाती है, फिर बचाव की प्रक्रिया आरम्भ होती है। सेल्फी ऐसी-ऐसी दुर्गम जगह ली जा रही हैं कि चेहरा बनाने के चक्कर में जान पर बन रही हैं। इस बात की भी प्रबल संभावना है कि सेल्फी क्रेज को भुनाने के लिए बहुत जल्द बेहतर सेल्फी के लिए कोई इंस्टीट्यूट या क्रेशकोर्स टाइप कुछ शुरू हो जाए। आखिर हमारा भुनाने का तवा हमेशा गर्म ही रहता है।
आज शोले का ठाकुर होता, तो डाकुओं को पकडऩे से ज्यादा सेल्फी ना ले पाने के लिए परेशान रहता- गब्बर के लिए तो मेरे पांव ही काफी हैं, लेकिन सेल्फी के लिए हाथ कहां से लाऊं! अर्से से डीपी चेंज नहीं की।
मैंने अस्पताल से निकलते समय देखा, एक डॉक्टर प्रेग्नेंट लेडी को चेतावनी दे रही थी कि इत्ती ज्यादा सेल्फी हर्गिज नहीं चलेंगी, अपना नहीं तो कम से कम शिशु का तो खयाल करो, ऐसा-वैसा चेहरा आया, तो हमारी जिम्मेदारी कतई नहीं होगी। बहुत मुमकिन है, फ्यूचर में पैदा होने वाले शिशु दुनिया में आते ही किलकारी नहीं, सेल्फी के लिए क्रंदन करें। आने वाली पीढिय़ों को इस बात का बड़ा रंज होगा कि उनके पुरखों की सेल्फी क्रीड़ा की पीड़ा आज उन्हें बिगड़े चेहरे के रूप में भुगतनी पड़ रही है। जैसे जीन होंगे, वैसे ट्रांसफर तो होंगे।
अनुमान तो यह भी है कि भविष्य में किसी का एक हाथ अपेक्षाकृत लंबा देखकर कतई ऐसा नहीं कहा जा सकेगा कि अपराधियों के गिरेबान तक पहुंचने के लिए हाथ लंबा होता है, ऐसा उचककर, खींच-खांचकर सेल्फी लेने से भी हो सकता है।
सेल्फी के इन्हीं आसन्न खतरों के मद्देनजर फेसहित में कतिपय सुझाव हैं:-
– सेल्फी लेने की संख्या निर्धारित की जाए। ज्यादा लेने पर प्रथम बार चेतावनी, दूसरी बार स्मार्ट फोन जब्त कर लिया जाए। ना रहेगा फोन, न ले पाएगा सेल्फी।
– स्मार्ट फोन में कंपनियां ऐसा सॉफ्टवेयर फिट कर दें कि तय सीमा से अधिक सेल्फी लेते ही सुदर्शन चेहरे भी गधे, ऊंट, जिराफ, हाथी जैसे नजर आने लगें।
– सरकार ‘सेल्फी सैस’ जैसा कुछ लगा सकती है। लगाने में उसे कौनसा भविष्यफल पूछना पड़ता है।
– पुलिस का अलग से कोई सेल्फी दस्ता हो, जो निरंतर गश्त करे और जो सेल्फी लेता पाया जाए, उस पर इतना जुर्माना ठोक दें कि कुछ दिन तक बिगड़ी शक्ल सेल्फी लेने लायक ही न रहे।
– तरह-तरह से मुंह बिगाडक़र सेल्फी लेने को भी नेचर के साथ अर्थात् चेहरे के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ माना जाए।