खेत-खलियानलेख

मानसून के बाद पशुपालन

पशुपालकों को पशुरोगों से बचाव हेतु अग्रलिखित सलाह दी जाती हैं-

डॉ योगेश आर्य, नीम का थाना, सीकर
1)परजीवी रोग:-
पशुओं मे अंतः परजीवी और बाह्य परजीवी हो सकते हैं| अन्तः परजीवी जैसे गोलकृमि, पर्णकृमि और फीताकृमि हो जाने पर पशु कम खाने लगता हैं, जल्दी थक जाता हैं, दूध उत्पादन कम हो जाता हैं और शारीरिक भार कम होने लगता हैं| पशु की खाल भी खुश्क हो जाती हैं| इनसे बचाव के लिए हर 3 माह मे पशु का कृमिनाशन करवाना चाहिए| बछड़ों-पाड़ो को कृमिनाशन के लिए ‘क्लीवर्म सस्पेंशन’ और गाय-भैंसों को ‘इलीमिन-डीएस’ बोलस दिया जा सकता हैं।

पशु पर बाह्य परजीवी जैसे जूं, चिचड़ और माइट्स इत्यादि भी हो सकते हैं| पशुओ पर पाये जाने वाले चिचड़ ही “क्रीमीयन काँगो हैमरेजिक फीवर” रोग के ‘रोगकारक’ के वाहक होते हैं| इसी प्रकार पशुओ पर पाये जाने वाले माइट्स ही “स्क्रब टाइफस” रोग के ‘रोगकारक’ के वाहक होते हैं| इन बाह्य परजीवी से बचाव के लिए बाह्य परजीवीनाशक दवाओ का छिड़काव करना चाहिए| इसके लिए ‘पोरोन’ अथवा ‘बुटोक्स’ का प्रयोग किया जाना चाहिए।

2) तीन दिवसीय बुखार/ बोवाइन एफीमेरल बुखार :-
वर्षा ऋतु के बाद होने वाले, वाइरस जनित इस रोग के वाहक मच्छर या रेत-मक्खी होते हैं| नाम के अनुरूप ही इस रोग मे पशु सामान्यतया 3 दिन तक तेज बुखार से पीड़ित रहता हैं| पशु लंगड़ाने लगता हैं और खाना पीना बंद कर देता हैं| कभी कभी पशु काँपने लगता है, पेशीय संकुचन होता हैं, अधिक लार गिरती हैं और जमीन पर लेट जाता हैं| पशु को ‘पी-रिलीफ’ 2-2 बोलस सुबह शाम देने से राहत मिल सकती हैं|

3) अपच /पाचन सम्बंधित समस्याएँ :-
हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के कारण पशु सूखा चारा खाना बंद कर देता हैं। बारिश के बाद काफी पौधे ऐसे उग आते हैं जिनमे ‘प्रति-पोषक-पदार्थ’ पाएं जाते हैं। साथ ही पशुआहार में अचानक से बड़ा परिवर्तन कर देने पर पशुओँ को पाचन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। ऐसे में पाचन दुरुस्त करने के लिए ‘रुमीफर बोलस’ अथवा ‘रुमीफर पाउडर’ काम मे लिया जाना चाहिए।

4)दुधारू पशुओँ के लिए सलाह:-
कभी कभी पशु ब्याने के बाद ‘नेगेटिव एनर्जी बेलेंस’ के कारण कीटोसिस से ग्रसित हो जाता हैं। इससे बचाव के लिए ‘वीगर-मैक्स-पाउडर’ का उपयोग करने से पशु कीटोसिस और मिल्क-फीवर से बच जाता हैं, साथ ही इसमे बाईपास-फेट और बाईपास प्रोटीन होने के कारण दुग्ध उत्पादन में भी वॄद्धि होती हैं। अगर पशु के ब्याने के बाद जेर पड़ने में समस्या रही हो तो ‘गर्भाक्लीन-लिक्विड’ का प्रयोग अच्छा उपाय हैं। कुछ पशुओँ में दूध उतारने संबंधित समस्या होती हैं उनको ‘केप्सिन-बोलस’ दिया जा सकता हैं। थनैला रोग से बचाव और थनों को सम्पूर्ण देखभाल के लिए ‘केप्सिन-एच-लिक्विड’ दिया जा सकता हैं। दुधारू पशुओँ में मिनरल-विटामिन्स की कमी को दूर करने के लिए ‘केप्सिन-गोल्ड-पाउडर’ दिया जाता हैं। पशुओँ के ब्याने के 2-3 माह बाद कृत्रिम गर्भादान करवा लेना चाहिए। अगर पशु को गर्भधारण में कोई समस्या आ रही हो तो वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर ‘प्रेगाप्रोजेन-पाउडर’ का उपयोग किया जा सकता हैं।

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