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जगदम्बा श्री करणी मां का पूर्ण कळा अवतार माना जाता है दांता करणीकोट की सायर माँ को

किनियां कुळ की दसवी पीढ़ी मे हुआ था अवतार

दांतारामगढ़, [लिखा सिंह सैनी] किनियां कुळ की दसवी पीढ़ी मे मातेश्वरी श्री करणी माँ का अवतार हुवा था एवम्  उसी किनियां कुळ की चोबीसवीं पीढ़ी में भगवत्ती सायर माँ का “किनियां चारणवास” (हुडील) मे रतनदान जी किनियां के घर अवतार हुआ व आपकी माता  का नाम चन्द्रकुंवर जी बीठू है, सायर माँ का अवतार वि.स. 1986 मे मिगसर  मास शुक्ल पक्ष चवदस  शनिवार को प्रातः 5 बजे  हुआ । सायर माँ अवतार  समय के ग्रह नक्षत्र  बहुत हि अलोकिक थे एवं इनके जन्म का नाम भी रिधु बाई आया। सायर माँ को जगदम्बा श्री- करणी माँ का पूर्ण कळा अवतार  माना जाता है | सायर माँ ने अवतार के समय तथा बचपन मे कई अलोकिक परचै दिये जिस कारण सायर माँ के प्रति जन मानस मे आस्था व प्रसिद्धि चारो और बढ़ने लगी |
दांता  कस्बा  के पास पूर्व – पश्चिमी पहाड़ी पर एक गढ़ बना हुआ था जो कि अभिशप्त होने कारण सूना पडा हुआ था व मान्यता थी  कि इसीलिए  दांता ठाकुर की वंश वृद्धि रुकी हुई थी तथा पांच पीढी से दाँता ठिकाना मे वारिस गोद आरहे थे। दांता ठाकुर मदन सिह ने अपने गुरू परमहंस सन्त परमानंद बाबा से वंश वृद्धि  हैतु निवेदन किया तो  उन्होंने मदन सिह जी को कहा कि अगर अपने वंशवृद्धि चाहता है तो करणी माँ  के अवतार सायर माँ को यह गढ़ भैट कर दे यदि सायर माँ  यहा पधार कर बिराजना स्विकार करले तो  तेरी सारी समस्या का समाधान  हो जायेगा,तथा ठाकुर मदनसिंह अपने साथ चारण वास सायर माँ के दरशनार्थ ले गये व वंश वृद्धि  हैतु सायर माँ का ईष्ट रखने के लिये प्रेरित किया तो सायर माँ की कृपा से उनको पुत्र की प्राप्ति हुई। तब सायर माँ को आभार स्वरूप गढ भैंट करने हैतु बार, बार निवेदन किया तो सायर माँ उनके विशैष अनुरोध को स्वीकार करके वि.स. 2008 माघ मास  सुदि तैरस को सुबह गढ मे पधारे तथा दूसरे दिन सायर माँ ने  स्वयं अपने  कर कमलो से श्री करणी माँ के मढ की नीव लगायी तथा गढ़ का नाम श्री करणी कोट रखा, एवम वि. स. 2009  की आसोजी नवरात्री की एकम को मंढ़ में  श्री करणी माँ की  मूर्ति  की प्राण प्रतिष्ठा की। माता जी ने अपना अधिकांश समय यही बिराज कर श्री करणी माँ की आराधना की। सायर माँ ने श्री माँ करणी के परम थाम गडियाळा  पथार कर वि. स. 2015 कार्तिक पूर्णिमा  को अपने हाथों से श्री करणी  माँ के म॔ढ़ की नींव रखी। सायर माँ अत्यंत सरल स्वभाव के थे। तथा लोग उनको  जय जय  मां के नाम से  भी सम्बोधित करते हे। सायर माँ आजीवन ब्रह्मचारिणी रहे एवं उनकी बहन वह बहनोई  शिवदान सिंह व मोहन कुवर आजीवन माताजी की सेवा में रहे, माताजी ने उनके बहन के बेटे श्री बलवीर सिंह को दत्तक पुत्र के रूप मे गोद लिया। विक्रम संवत 2062 मिक्सर सुदी तीज को सायर माँ  निज परमधाम पधारे। बलवीर सिंह  ने विक्रम संवत् 2063  मे सायर माँ का भव्य  मन्दिर बनाकर  माघ सुदि तैरस शनिवार प्रात: शुभ महुरत में सायर माँ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। जहा आज भी प्रतिवर्ष माघ सुदी तेरस को  जागरण तथा चवदस व दोनो नवरात्रो का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहां देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु आते हैं।

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