…और बारिश रुक गई : लहूँ की बूंद-बूंद से आज़ादी को सींचने वाले योद्धा थे नेताजी सुभाषचंद्र बोस
गांधी जी से वैचारिक मतभेद के बावजूद उनकी चिट्ठी को आदेश माना नेताजी ने राष्ट्रहित ही सर्वोपरि समझते थे सुभाष चंद्र बोस
लेखक – मनोज मील, अध्यक्ष उपभोक्ता आयोग झुंझुनूं
झुंझुनूं, मातृभूमि की आजादी के ख़ातिर भारतवर्ष की सीमाओं से परे जाकर भी जंग-ए-आज़ादी की अलख से रणबाकुरों की आजाद हिन्द फौज खड़ी कर ब्रिटिश हुकूमत को ऐलानिया ललकारने वाले आजादी के दीवाने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर हरेक भारतीय गर्व करने के साथ ही उनके जुनून, साहस की गाथाओं से गौरवान्वित महसूस करता है और सदियों अपना इक़बाल बुलन्द रखने का मजबूत हौंसला भी पाता रहेगा।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण किस्सा आज उनके जन्मदिवस के मौके पर याद करना बहुत ही न्यायोचित व सार्थक है, क्योंकि देश में गाहे-बगाहे राजनीति ने आजादी के दीवानों को भी अपने फ़ायदों के लिए भाषा, प्रान्त इत्यादि के हिसाब से भुनाने का चलन शुरू कर रखा है।
जबकि शाश्वत सत्य यह है कि महात्मा गाँधी के हृदय में नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे, वहीं नेताजी बोस के दिलोदिमाग में महात्मा गाँधी जी थे। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस छोड़ चुके थे। उसके बावजूद भी आजादी से पहले 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से महात्मा गांधी को एक नया संबोधन दिया गया ‘राष्ट्रपिता’। गांधीजी के लिए राष्ट्र के इस सर्वोच्च सम्मानजनक शब्द उपाधि का प्रयोग करने वाले प्रथम व्यक्तित्व महान योद्धा थे नेताजी सुभाषचंद्र बोस।
इसके अलावा एक दृष्टांत और है, जब भारतीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होना था और महात्मा गाँधी ने अपनी ओर से पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदवार बना दिया था। पट्टाभि सीतारमैया जो कि पहले वामपंथी विचारधारा से जुड़े हुए थे और महात्मा गाँधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस जॉइन की थी तथा आजीवन गांधीवादी बन कर देश सेवा में जुटे रहे। जिनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बार-बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस से अनुरोध किया और कार्यकर्ताओं के कहने पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने चुनाव लड़ा तथा वह चुनाव जीता भी। इस चुनाव परिणाम में मिली जीत को महात्मा गाँधी जी व कार्यकर्ताओं को समर्पित करते हुए कुछ समय बाद नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अध्यक्ष पद छोड़ते हुए कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और अपना अलग दल बना कर आजादी का जनसंघर्ष तेज कर दिया।
इसी कड़ी में दक्षिण भारत के इलाके में संयोगवश या यों कहें कि अनजाने में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस व महात्मा गांधी की जनसभा रखी गई थी। जो एक ही दिन व एक ही समय तय हो गई थी।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी जनसभा को सम्बोधित करने उस शहर में पहुंच चुके थे। कार्यकर्ताओं ने गाँधी जी को बोला कि एक ही समय में उस मैदान पर दो जनसभा होने से सन्देश सही नहीं जायेगा।इसलिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस को बोल कर समय बदलवाना चाहिए।
महात्मा गाँधी जी ने कार्यकर्ताओं को बोला कि पहले मीटिंग नेताजी कर लेते है। हम बाद में कर लेंगे। जिस पर कार्यकर्ताओं ने चिन्ता जाहिर करी कि यदि पहले सभा को नेताजी ने सम्बोधित किया तो फिर हमारी सभा कमजोर हो जायेगी और जनता इतनी देर तक रुकेगी भी नहीं।
महात्मा गाँधी जी ने भारी मन से कार्यकर्ताओं के अनुरोध पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को चिट्ठी भिजवाई। जिसमें लिखा था कि प्रिय सुभाष चन्द्र बोस, आज जो सभा तय की गई है। उसके समय में बदलाव करते हुए आपकी सभा को कांग्रेस की सभा के बाद करने का मेरा अनुरोध स्वीकार कीजिए।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने महात्मा गांधी के उसी पत्र पर लिखा कि परम् आदरणीय बापू ,
प्रणाम।
आपका अनुरोध नहीं है बल्कि मेरे लिए आदेश है और शिरोधार्य है।
आपकी सभा पहले होने और आपकी वाणी सुनने का अवसर मुझ से लिया जाना मेरा सौभाग्य है।
ठीक समय पर कांग्रेस की जनसभा हुई। महात्मा गाँधी जी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस का नाम लेकर आभार जताया कि उनकी वजह से सही समय पर जनता व कार्यकर्ताओं को सम्बोधित कर पा रहा हूँ। मीटिंग में काफी खुसर-फुसर भी हुई और महात्मा गाँधी के जन सभा से जाते ही स्थानीय नेताओं ने ऐलान कर दिया कि इस मैदान से सभी झण्डे,पोस्टर इत्यादि हटा लिए जाये और सभी अपने घरों को लौट जाये क्योंकि हमारी सभा समाप्त हो चुकी है। धीरे-धीरे सारा मैदान खाली हो गया।
ठीक समय पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सभा जुटी और इतनी भारी भीड़ उमड़ी की सुबह की सभा से कई गुना ज्यादा जनता नेताजी को सुनने जोश-खरोश से भारत माता की जय, नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिंदाबाद के गगनभेदी नारों से मैदान को गुंजायमान कर रही थी।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस सभा को सम्बोधित करने के लिए माइक पर आये ही थे कि बारिश शुरू हो गई। लोग उठने लगे थे।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपनी जोशीली आवाज़ में बोला कि मेरे मुल्क की सरजमीं तो आजाद नहीं है, लेकिन उन्मुक्त आजाद आकाश को साक्षी मान कर कहता हूँ कि बारिश नहीं होगी, नहीं होगी, नहीं होगी।
एक जबरदस्त मेघ गर्जना आकाश में हुई और वास्तव में बारिश रुक गई।
दिनभर लोगों में महात्मा गाँधी के द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस से पहले सभा करने का समय मांगने की चर्चा के साथ ही नेताजी बोस की ये सिंह गर्जना कि उन्मुक्त आजाद आकाश को साक्षी मानते हुए कहता हूं कि बारिश नहीं होगी, नहीं होगी, नहीं होगी।
तीन बार बोलना और बारिश रुक गई।
इसकी जनचर्चा कई दिनों तक लोगों में आजादी की अलख व जोश भरती रही।
उक्त दोनों ही घटनाओं का ज़िक्र एक अंग्रेज अफसर ने अपनी किताब में किया है।
जो विद्यार्थी के भेष में उस जनसभा में उपस्थित था और अंग्रेजो के बनाये जासूसी विभाग के अधिकारी के रूप में अपनी गोपनीय ड्यूटी निभा रहा था।
महात्मा गाँधी जी एवं नेताजी सुभाषचंद्र बोस की दोनों सभाओं के बाद उस अंग्रेजी अफसर ने अपनी सेवा से त्याग पत्र ये कहते हुए दिया था कि महात्मा गाँधी जो कि एक फकीर व्यक्ति का जीवन जी कर अपने देश की आजादी के लिए अहिंसा के सहारे जनांदोलन कर रहे है। जो वैचारिक मतभेद से अलग हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस को चिट्ठी लिखे और नेताजी सुभाषचंद्र बोस तुरन्त सहर्ष महात्मा गाँधी की चिट्ठी को आदेश मानते हुए गौरवान्वित महसूस करता हो।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसा जोशीला नौजवान जिसकी एक आवाज़ पर क़ायनात भी बारिश रोकने पर मजबूर हो जाये।
उस मुल्क को कोई आज़ाद होने से नहीं रोक सकता है और ऐसा स्नेह व आदर भारतीय संस्कृति में ही देखने को मिल सकती है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर नमन करते हुए युवा पीढ़ी को आह्वान करना अपना फर्ज समझते हुए इतना ही कहना है कि जंग-ए-आजादी के दीवानों को हमारे मस्तक का ताज रखिये। स्वतंत्रता सेनानियों का जीवन पढ़ना और उस पर मनन करना हमारे लिए सच्ची ईश वन्दना अर्थात ईश्वर की प्रार्थना के समान है। जिससे हकीकत में रूबरू होकर गाते रहिये।
भारतीय इतिहास को पढ़िये और भारतवर्ष की अनमोल धरोहर “वसुधैव कुटुम्बकम” को बार-बार चरितार्थ करते रहिये।
आज हमें इन महापुरुषों स्वतंत्रता सेनानियों, जंग-ए-आजादी के दीवानों को अपने इबादतगाह, प्रार्थना स्थलों में संजोने की महत्ती आवश्यकता है ताकि राष्ट्र की एकता व अखण्डता का लौहा पूरा विश्व मानता रहे।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रिय कथन नारे “जय हिन्द”
के शब्दों की मशाल आपको समर्पित करते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस को शत शत नमन। वन्दन।।
जय हिन्द।