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झुंझुनू नगर परिषद और अतिक्रमण पर कार्रवाई : बाम्बी कूटे बावरे सर्प न मारा जाये

झुंझुनू, हाल ही में झुंझुनू नगर परिषद और यातायात पुलिस द्वारा झुंझुनू शहर में आवागमन को सुचारू बनाने के लिए अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। झुंझुनू शहर में इस अतिक्रमण अभियान को लेकर कई प्रकार के पक्ष और विपक्ष के रूप में तर्क भी सामने आए थे। किसी भी शहर में नगर निकाय की शहर का सौंदर्यकरण, आवागमन को सुचारू रखने और अतिक्रमण जैसे मामले पर कार्रवाई करना प्रमुख जिम्मेदारी है, यह होना भी चाहिए। लेकिन हाल ही में जो अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई देखने को मिली उसमें लोगों की जो प्रतिक्रिया सामने आई विशेष रूप से सोशल मीडिया पर वह भी गौर करने लायक है। किसी भी छोटे शहर से लेकर प्रदेश की राजधानी तक रेहडी और ठेले वाले सामान्य रूप से देखने को मिलते हैं। राजधानी में भी एक बीच का रास्ता ही अख्तियार किया जाता है क्योंकि सरकार भी जानती है कि रेहडी और ठेले से प्रदेश के लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। वैसे रेहडी और ठेले वालों पर नगर निकाय और अन्य एजेंसी कभी भी कार्रवाई कर सकती है इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन नगर परिषद क्षेत्र में जो नियम विपरीत स्थाई और पक्का निर्माण होता है वह देर से ही सही शहर के विकास के लिए आने वाले समय में बाधक बनता है। नगर परिषद का इन नियम विपरीत होने वाले पक्के निर्माण कार्यों की तरफ ध्यान नहीं जाता। नगर परिषद क्षेत्र में पक्के निर्माण को लेकर जो मानदंड निर्धारित होते हैं उनके पालन सही ढंग से की गई है या नहीं, यह देखरेख करना भी निकाय की ही जिम्मेदारी होती है लेकिन निकाय इस प्राथमिक जिम्मेदारी पर कितना खरा उतर रहा है यह बात लोगों से छुपी हुई नहीं है। झुंझुनू शहर की आवासीय कॉलोनियों में बड़ी-बड़ी व्यावसायिक बिल्डिंगे कुकरमुत्ते की तरह दनादन उगती जा रही है। वही सड़क से सटकर काम्प्लेक्स भी झुंझुनू शहर में बने हुए हैं, इनके पास किसी भी प्रकार की पार्किंग व्यवस्था नहीं है। निकाय क्षेत्र में किसी भी व्यवसायिक इमारत को तैयार करने के लिए जो मानदंड होते हैं उसमें पार्किंग व्यवस्था सबसे प्रमुख होती है लेकिन जिम्मेदारों का निर्माण के दौरान इस मामले में ध्यान नहीं जाता जिसके चलते काम्प्लेक्स या बड़ी इमारते तैयार हो जाती है और इसमें व्यावसायिक गतिविधियां भी शुरू हो जाती है तो वहां पर पार्किंग नहीं होने के चलते हालात बिगड़ने लगते हैं।

बात झुंझुनू जिला मुख्यालय की करें तो शहर की आवासीय कॉलोनियों में बड़े-बड़े अस्पताल के भवन पहले तैयार हो भी चुके हैं और वर्तमान में कुछ का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। झुंझुनू शहर में इनकी इमारतें मानदंडों के अनुसार तय की गई ऊंचाई को भी पार कर चुकी है लेकिन इस तरफ भी जिम्मेदारों का ध्यान नहीं जा रहा। व्यावसायिक इमारत के निर्माण के साथ अग्नि सुरक्षा को लेकर फायर एनओसी किन शर्तों पर जारी की गई है और भवन निर्माण के दौरान उनकी कितनी पालना हुई है यह भी देखरेख और कार्रवाई करने का विषय है। लेकिन जहां पर आवासीय क्षेत्र में बड़ी-बड़ी व्यावसायिक इमारतें खड़ी कर दी जाती हैं वह भी बिना किसी पार्किंग की सुविधा के और बिना किसी नगर निकाय के द्वारा जारी किए गए निर्देशों की अनुपालना के। वहा फायर सेफ्टी की पालना को कितनी संजीदगी से लिया जाता होगा यह भी समझने वाली बात है। पिछले दिनों मंडावा मोड़ की एक बिल्डिग में अग्नि कांड हो चूका है। जब कोई हादसा घटित होता है तो कुछ समय के लिए ही यह लोगो में चर्चा का और समाचारो का विषय बनता है। बाकि इस मामले को तब तक के लिए भुला दिया जाता है जब तक कोई दूसरा हादसा न हो जाए। बड़ी-बड़ी व्यावसायिक इमारते कई स्थानों पर सड़क बाउंड्री तक को भी निगल लेती हैं लेकिन इस तरफ निकाय के अधिकारियों का ध्यान नहीं जाता और जब शहर के सामने अतिक्रमण और यातायात व्यवधान की स्थिति बनती तो रेहडी और ठेले वालों पर ही कार्रवाई ज्यादा देखने को मिलती है जिसके चलते बरबस ही ख्याल आता है बाम्बी कूटे बावरे सर्प न मारा जाये।

पिछले दिनों झुंझुनू के मंडावा मोड़ पर इस इमारत लगी थी आग, नहीं थे इमारत में को भी अग्नि सुरक्षा के उपकरण – जिम्मेदारों से कैसे छुपी रही यह इमारत ?

झुंझुनू हवाई पट्टी क्षेत्र में अतिक्रमण दस्ते पर उठे थे सवाल

शहर में पिछले दिनों अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई के दौरान जब नगर परिषद और यातायात पुलिस की संयुक्त टीमें अतिक्रमण हटाने के लिए पहुंची तो स्थानीय लोगों ने यातायात प्रभारी से वहां पर बने हुए एक निजी अस्पताल की बाहर निकली हुई सीढ़ियों को लेकर भी शिकायत की थी जिसके चलते यातायात प्रभारी ने अस्पताल के मालिक को बातचीत करने के लिए नीचे बुलाया लेकिन उसी दौरान नगर परिषद के एओ जेपी लामोरिया ने मौके पर कहा था कि इस पर बिल्डिंग बाई लॉ के अनुसार कार्रवाई होगी। ऐसे कार्रवाई नहीं कर सकते। आज हम मुख्य रास्तों से अतिक्रमण हटाने के लिए निकले हैं जिस पर मीडिया कर्मियों ने कहा कि हवाई पट्टी पर वीआईपी लोगों का आगमन होता है क्या यह मुख्य रास्ता नहीं है तो उनका कहना था इस पर बिल्डिंग बाय लॉ के अनुसार ही कार्रवाई होगी। जब उनसे पूछा गया कि यह सही है या गलत तो उनका कहना था कि आज यह हमारे यह संज्ञान में आया है इस पर कार्रवाई करेंगे। जब उनसे बार-बार पूछा गया की कार्रवाई कितने दिन में देखने को मिलेगी तो उनका कहना था कि 15 दिवस में हम इनको नोटिस देकर कार्रवाई करेंगे। सवाल यह भी खड़ा होता है कि बिल्डिंग बनकर खड़ी हो जाती हैं और नगर निकाय के मानदंडों के अनुसार उनका निर्माण हुआ है या नहीं हुआ है यह देखने की जिम्मेदारी किसकी है ?

देखने वाली बात…….

  • शहर में बिल्डिंग का निर्माण नगर निकाय के प्लान के अनुसार हुआ है या नहीं
  • बिल्डिंग सड़क बाउंड्री में तो नहीं
  • व्यावसायिक बिल्डिंग है तो पार्किंग की व्यवस्था पर विशेष ध्यान
  • अस्पताल का निर्माण निकाय के मानदंडों के अनुसार हुआ है या नहीं, फायर सेफ्टी की व्यवस्था
  • इमरजेंसी में पेशेंट आता है तो उसका वाहन अस्पताल के गेट तक सुचारू रूप से पहुंच पाता है या नहीं
  • अस्पताल की बिल्डिंग के साथ पर्याप्त पार्किंग व्यवस्था है या नहीं
  • बड़ी बिल्डिंगों के साथ और विशेष रूप से अस्पतालों में अग्निकांड जैसा हादसा हो जाए तो आपातकाल गेट [निकास ] की व्यवस्था है या नहीं
  • सड़क को खाती सीढ़िया
  • इत्यादि मामले में यदि लापरवाही या उदासीनता जिम्मेदारों द्वारा देखने को मिलती है तो क्या उन पर कभी कार्रवाई होती है ?

वही इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता

पिछले दिनों सीकर में मास्टर प्लान में आने वाली बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों को भी धराशाई किया गया था और आगामी समय के लिए भी प्रशासन ने सड़क बाउंड्री में आने वाली बिल्डिंगों को लेकर भी दिशा निर्देश जारी किया हुआ है। आज नगर निकाय की उदासीनता या लापरवाही या अन्य किसी कारण से किसी भी प्रकार से आम व्यक्ति नगर निकाय के मानदंडों के विपरीत अपना पक्का निर्माण कार्य कर भी लेता है तो शहर के लोगों को तो वर्तमान में ही उसकी कीमत चुकानी पड़ती है लेकिन जिस तेजी से विकास का पहिया आगे बढ़ रहा है आने वाले समय में इन बिल्डिंग मालिकों को भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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