जिला परिषद के सीईओ रामनिवास जाट ने बताया कि ग्रामीण क्षत्रों में सड़क, नाली, स्वच्छता परिसम्पतियों के रख-रखाव आदि स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वित्त आयोग की अभिशंषा पर केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा जनसंख्या के अनुपात में राशि सीधे ग्राम पंचायतों को आवंटित की जाती है। किश्तों में दी जाने वाली यह राशि वित्तीय वर्ष के अन्त तक खर्च करनी होती है। जिला परिषद स्तर पर हुई समीक्षा के दौरान ध्यान में आया है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 तक आवंटित राशि में से 76 करोड़ रूपये अभी तक ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों व जिला परिषद के खातों में अवशेष पड़े है। यह राशि प्रति पंचायत करीब 22 लाख रूपये होती है। जनसंख्या के आधार पर आवंटित इस राशि में से 75 प्रतिशत ग्राम पंचायतों, 20 प्रतिशत पंचायत समितियों व 5 प्रतिशत जिला परिषद को मिलती है। अप्रयुक्त इस राशि में से जिला परिषद व पंचायत समिति सदस्यों की अभिशंषा पर स्वीकृत किये गये 630 कर्यों की 8.00 करोड़ राशि भी शामिल है। कतिपय सरपंचों द्वारा स्थानीय कर्मचारियों से तालमेल न होने के करण जान बूझकर कार्य नहीं करवाये जा रहे है जबकि पंचायती राज अधिनियम के तहत सरपंच कार्यालयाध्यक्ष होने के नाते ग्राम पंचायत के कार्यकलापों के लिये सीधे जिम्मेदार है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रभारी का भी दायित्व है कि ऐसे निर्वाचित प्रतिनिधियों के विरूद्ध विधिक कार्यवाही करें जो सरकारी योजनाओं की क्रियान्विति में बाधा डालते हो । मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा जिले की 23 ग्राम पंचायतों के सरपंचों को पंचायती राज अधिनियम की धारा 38 में नोटिस दिये गये है तथा इस प्रकार के अक्षम व मनमानी करने वाले सरपंचो के विरूद्ध प्राप्त शिकायतों पर प्राथमिकता से कार्यवाही करने का निश्चिय किया गया है।